लोगों द्वारा समुद्र में की जा रही गतिविधियों से वहां रहने वाले जीवों पर तेजी से असर पड़ रहा है, ये गतिविधियां पहले की तुलना में लगातार बढ़ रही है। हम समुद्र की जैव विविधता के बारे में बहुत कम जानते हैं, प्रजातियों की विविधता और उनके संतुलन से स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र आगे बढ़ता है। समुद्री जैव विविधता को समझना काफी कठिन है, इनमें रहने वाले जीवों पर लोगों के द्वारा पड़ने वाला असर हमेशा एक जैसा नहीं होता है, असर के विरुद्ध जीवों की प्रतिक्रिएं भी अलग-अलग होती हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, सांता बारबरा (यूसी सांता बारबरा) के निदेशक बेन हैल्पर ने कहा यह जानना बहुत मुश्किल है कि विशेष प्रजाति कितने दबाव में है। समय के साथ-साथ प्रभावों में भी बदलाव होते हैं और इन पड़ने वाले प्रभावों से होने वाले खतरे का आकलन किया जा सकता है।
इस अध्ययन में पहली बार, दुनिया भर में समुद्री जैव विविधता पर मानव प्रभावों के आकलन के साथ उनकी स्थिति अथवा वे किस दशा में हैं इसके बारे में आकलन किया गया है। अध्ययन के निष्कर्ष मे कहा गया है कि समुद्र में रहने वाले सबसे कमजोर जीवों को बचाने के लिए ठोस संरक्षण उपायों को लागू करना होगा।
ब्रेन स्कूल के डॉक्टरेट छात्र ओ'हारा ने कहा कि समुद्री प्रजातियों पर मानव गतिविधियों के प्रभावों, समय के साथ होने वाले परिवर्तनों को देखते हुए अपनी तरह का यह पहला अध्ययन है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज (आईयूसीएन) रेड लिस्ट की 1,271 खतरे वाली समुद्री प्रजातियों के आंकड़ों के आधार पर, शोधकर्ताओं ने 2003-2013 तक के लोगों के कारण खतरे में पड़ी प्रजातियों का आकलन किया। अध्ययन में कहा गया है कि समुद्र में पहले से ही खतरे में घोषित की गई 57 फीसदी प्रजातियां अब विलुप्ति के कगार पर हैं।
ओ'हारा ने कहा कि हमने 57 फीसदी के अलावा उन प्रजातियों पर भी नजर रखी जिन पर अब विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि संरक्षण के नजरिए से यह समझना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि कहां और कैसे हमारी गतिविधियां चलती रहती हैं। विभिन्न मानवीय गतिविधियों के माध्यम से कुछ प्रजातियां मछली पकड़ने के दबाव के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं, जबकि अन्य बढ़ते समुद्री सतह के तापमान या समुद्र के अम्लीकरण के लिए अधिक संवेदनशील होती हैं।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि समुद्री जैव विविधता पर लोगों का प्रभाव बढ़ रहा है, मछली पकड़ने का दबाव, भूमि और महासागर में अम्लीकरण का बढ़ना। लेकिन शोधकर्ताओं ने कुछ अप्रत्याशित खोजें भी की हैं।
खतरे वाली प्रजातियां किस हद तक मानवीय गतिविधियों के दबावों का सामना कर रही हैं, जिस गति से दबाव बढ़ रहा है और तेज हो रहा है, वह चिंताजनक है। प्रवाल (कोरल) इनमें से एक सबसे अधिक प्रभावित समुद्री जीव हैं।
ओ'हारा ने कहा कि मैं इस बात से हैरान था कि प्रवाल किस हद तक प्रभावित थे, प्रवाल की प्रजातियां बहुत अधिक प्रभाव का सामना कर रही हैं और उन प्रभावों को जलवायु संबंधी बदलाव और तेज कर रहे हैं। लेकिन हमारे परिणाम वास्तव में लोगों के द्वारा पड़ने वाले प्रभावों को सामने लाते हैं।
प्रवाल त्रिकोण की प्रजातियां इंडोनेशिया, फिलीपींस, पापुआ न्यू गिनी और सोलोमन द्वीपों को जोड़ने वाले उष्णकटिबंधीय जल में पाए जाते हैं। ये सभी मानव प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित हैं, ये मुख्य रूप से उत्तरी अटलांटिक, उत्तरी सागर और बाल्टिक सागर की प्रजातियां हैं।
साइंस पत्रिका में प्रकाशित इस शोध से मिली जानकारी से नीति निर्माताओं और निर्णयकर्ताओं को इस बात की गहरी समझ मिल सकती है कि मानव गतिविधियां समुद्री जैव विविधता को कहां और कैसे प्रभावित कर रहे हैं, जिससे इसे दूर करने के समाधान लागू किए जा सकते हैं।
उदाहरण के लिए, जहां मानव अधिक है, उन क्षेत्रों के बारे में पता लगा कर उस क्षेत्र में कई प्रजातियों के लिए संरक्षण के फायदों को बढ़ाया जा सकता है। प्रभावी संरक्षण के उपाय जलवायु परिवर्तन की घटनाओं जैसे समुद्र के अम्लीकरण या समुद्र के बढ़ते तापमान के दबाव को कम करने में मदद कर सकते हैं।