जीवों के रहने की जगहों के नुकसान के कारण जीवों की आवाजाही में रुकावट आ जाती है, जो उभयचरों जैसे मेंढक आदि की तरह जलीय और स्थलीय दोनों जगह रहने वाली प्रजातियों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
लोगों द्वारा की जा रही गड़बड़ी, जैसे खेती तथा अन्य काम के लिए जंगलों को काटना, इस पर्यावरणीय नुकसान के प्रमुख कारण हैं। इन सब की वजह से वन्यजीवों में बीमारियां फैलती हैं।
पेन स्टेट एसोसिएट प्रोफेसर ऑफ बायोलॉजी के गुई बेकर के नेतृत्व में किए गए एक नए शोध के अनुसार, रहने वाली जगहों के नुकसान का उभयचर प्रजातियों के रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भारी प्रभाव पड़ता है। हो सकता है उभयचरों पर रहने वाले सूक्ष्म जीवों की संरचना में बदलाव के कारण, सामान्य प्रतिरक्षा प्रणाली का विकास रुकने से तनाव में वृद्धि होती है। इस जानकारी के साथ, बेकर की टीम का लक्ष्य बीमारी के खतरों को कम करने में मदद करने के नए तरीके खोजना है।
बेकर ने कहा, हमने कि कारणों का पता लगाया है, जिसके जिसकी वजह से रहने की जगहों का विभाजन या नुकसान वन्यजीवों की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित कर सकता है। लेकिन यह भी सुझाव है कि प्राकृतिक आवासों के कई वर्गों जैसे, स्थलीय-मीठे पानी, स्थलीय-समुद्री और समुद्री तथा मीठे पानी दोनों को जोड़ने के उद्देश्य से तय किए गए आवासों को फिर से बहाल करने की रणनीतियां, कशेरुकी प्रतिरक्षा प्रणाली प्रतिक्रियाओं को बढ़ा सकते हैं।
शोध में बेकर और उनके सहयोगियों ने त्वचा पर रहने वाले सूक्ष्म जीवों की तुलना की, जिसमें 43 खतरे वाली और 90 बिना खतरे वाली उभयचर प्रजातियों की त्वचा या त्वचा के माइक्रोबायोम में पता चला कि सूक्ष्म जीवों की प्रजातियां कम हो रही हैं।
बेकर द्वारा किए गए पिछले शोधों में पाया गया कि त्वचा पर रहने वाले सूक्ष्म जीव, मेंढक के जन्मजात प्रतिरक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और ये रोग के परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए,शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि विलुप्त होने के खतरे वाले उभयचरों में उनकी त्वचा में कम माइक्रोबायोम विविधता के कारण रोग सुरक्षा कमजोर हो सकती है। कुल मिलाकर, इन परिणामों से पता चलता है कि प्रजातियों के संरक्षण में उभयचर की त्वचा में सूक्ष्म जीव एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकते हैं।
बेकर ने बताया, हम रहने की जगहों के विभाजन के विभिन्न स्तरों के साथ रेडियो-ट्रैकिंग कर रहे हैं, जिससे पता चला कि सूक्ष्म जीवों में गड़बड़ी हो रही है। जो प्रतिरक्षा जीन को देखते हुए, तनाव हार्मोन के स्तर को मापते हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा कि आबादी में अहम भूमिका निभाने वाले कारणों को समझना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि जंगली जानवरों को बढ़ते जलवायु, रोगजनक और मानवजनित तनाव जैसे प्रदूषण और निवास स्थान के विभाजन या नुकसान का सामना करना पड़ता है।
पेन स्टेट माइक्रोबायोम सेंटर के निदेशक सेठ बॉर्डनस्टीन ने कहा, वन्यजीव आवासों में माइक्रोबियल विविधता का संरक्षण और प्रबंधन पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता के प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकिइन पर जलवायु परिवर्तन का भारी असर होता है।
बेकर की टीम यह समझने की की कोशिश कर रही है कि, है कि कैसे मानव और जलवायु में बदलाव से माइक्रोबियल और पशु विविधता और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा। यह अध्ययन बायोलॉजिकल रिव्यु नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।