जगलों को काटे जाने और जलवायु परिवर्तन से जुड़े तापमान में बढ़ोतरी के चलते उष्णकटिबंधीय इलाके गर्म होते जा रहे हैं। इससे लोगों की सुरक्षित तरीके से काम करने की क्षमता कम हो सकती है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि पिछले 15 वर्षों के दौरान पेड़ों के नुकसान से जुड़े स्थानीय तापमान में बदलाव के कारण उष्णकटिबंधीय इलाकों में रहने वाले लोगों के काम के घंटों का नुकसान हुआ है।
ड्यूक विश्वविद्यालय के जलवायु के शोधकर्ता ल्यूक पार्सन्स कहते हैं कि पिछले 15 या 20 वर्षों में जिन क्षेत्रों में पेड़ों को कटा गया है वहां लोगों के लिए गर्मी के खतरे से जुड़े सुरक्षित काम के घंटों में भारी कमी आई है। जलवायु परिवर्तन में होने वाला छोटा सा बदलाव, जो 15 वर्ष की अवधि में हुई है। लेकिन वनों की कटाई के सापेक्ष वनों में रहने वाले लोगों के लिए उमस से भरी गर्मी के खतरों में वृद्धि हाल के जलवायु परिवर्तन की तुलना में बहुत अधिक थी।
पिछले शोध से पता चला है कि पेड़ो का कटना स्थानीय तापमान में वृद्धि से जुड़ा है। पेड़ सूर्य के विकिरण को रोकते हैं और छाया प्रदान करते हैं। वे वाष्पीकरण के माध्यम से हवा को भी ठंडा करते हैं। एक प्रक्रिया जब पौधे मिट्टी से पानी ले जाते हैं और फिर पत्ती की सतह से पानी को वाष्पित कर देते हैं, यह उसी तरह है जैसे पसीना त्वचा को ठंडा करता है।
पार्सन्स कहते हैं कि उष्णकटिबंधीय इलाकों में पेड़ हवा तक पहुंचने वाले अधिकतम तापमान को सीमित करते हैं। एक बार जब हम उन पेड़ों को काट देते हैं, तो हमें पेड़ों से मिलने वाली शीतलता का नुकसान होता है और वह इलाका वास्तव में गर्म हो सकता है। उदाहरण के लिए ब्राजील के अमेजन में, जहां पिछले 15 या 20 वर्षों में वर्षावन के विशाल क्षेत्रों को साफ कर दिया गया है, जहां दोपहर का समय वन क्षेत्रों की तुलना में साफ किया गया इलाका 10 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो सकता है।
अध्ययन ने एक कदम आगे बढ़कर वनों को काटे जाने से जुड़े बढ़ते तापमान से प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की संख्या का अनुमान लगाया है। उपग्रह डेटा और मौसम संबंधी अनुमानों का उपयोग करते हुए, पार्सन्स और उनकी टीम ने 2003 से 2018 तक अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के देशों सहित उष्णकटिबंधीय जंगलों वाले 94 कम अक्षांश वाले देशों में स्थानीय तापमान और उमस या आर्द्रता का पता लगाया गया।
उन्होंने अनुमान लगाया कि हाल ही में जिन जगहों में पेड़ो को कटा गया था, उन जगहों पर लगभग 50 लाख लोगों ने प्रति दिन कम से कम आधे घंटे का सुरक्षित कार्य करने के समय को खो दिया है। यह वह समय है जब बाहर का मौसम सुरक्षित रूप से भारी श्रम करने के लिए बहुत गर्म और उमस वाला होता है। उनमें से, कम से कम 28 लाख लोग बाहरी श्रमिक हैं जो कृषि और निर्माण से जुड़े क्षेत्रों में भारी शारीरिक कार्य करते हैं।
भारी शारीरिक श्रम मानव शरीर के भीतर उत्पन्न गर्मी को बढ़ाता है, जो गर्म और उमस भरे वातावरण के साथ मिलकर, हीट स्ट्रेन और गर्मी से संबंधित बीमारियों के जोखिम को बढ़ाता है, जिसमें हीट स्ट्रोक भी शामिल है, जो स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है।
पार्सन्स कहते हैं कि वे उष्णकटिबंधीय स्थान पहले से ही जलवायु परिवर्तन के कारण सुरक्षित रूप से काम करने के लिए बहुत गर्म और उमस भरे हैं। पेड़ो का काटा जाना इन स्थानों को और भी असुरक्षित बना रहे हैं।
विशेष रूप से इस अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 1 लाख लोग ऐसे स्थानों में रह रहे हैं जहां पेड़ो के काटे जाने से जुड़े तापमान में वृद्धि के कारण प्रति दिन 2 घंटे से अधिक सुरक्षित कार्य का समय का नुकसान हो गया है। उनमें से 90 फीसदी से अधिक लोग एशिया में रहते हैं। पार्सन्स बताते हैं कि एशिया की अत्यधिक घनी आबादी के कारण अनुपातहीन वितरण की आशंका है।
पार्सन्स ने कहा मुझे लगता है कि शोध में एक सकारात्मक संदेश और एक नकारात्मक संदेश है। नकारात्मक संदेश यह है कि यदि हम पेड़ों को काटते हैं, तो हम न केवल पारिस्थितिकी तंत्र और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के लिए समस्याएं पैदा करते हैं। बल्कि हमें स्थानीय शीतलन सेवाओं का भी नुकसान होता है, जिससे काम करने के लिए आरामदायक और सुरक्षित स्थान नहीं मिलता है।
लेकिन सकारात्मक संदेश यह है कि यदि हमारे द्वारा वनों की हानि को रोका जा सकता है, हम वनों द्वारा प्रदान किए जाने वाले अन्य सभी लाभों के साथ-साथ शीतलन सेवाओं को बनाए रख सकते हैं। महत्वपूर्ण रूप से वनों के स्वास्थ्य और आस-पास के लोगों के बीच संबंध पेड़ों के नुकसान को रोकने के लिए एक अतिरिक्त, स्थानीय रूप से प्रासंगिक कारण प्रदान करता है। यह अध्ययन वन अर्थ जर्नल में प्रकाशित हुआ है।