भारत के शहरी इलाकों में मिली तितलियों की 202 प्रजातियां, बेंगलुरू में सबसे अधिक

बेंगलुरु के अलग-अलग इलाकों में इनमें से 182 प्रजातियां थीं, जबकि बाकी को मैसूर, चेन्नई, मुंबई, पुणे, दिल्ली और कोलकाता सहित अलग-अलग शहरों में देखा गया
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, राइसन थम्बूर, गोल्डन एंगल बटरफ्लाई (कैप्रोना रैनसोनेटी)
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, राइसन थम्बूर, गोल्डन एंगल बटरफ्लाई (कैप्रोना रैनसोनेटी)
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दुनिया भर में तितलियों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ जलवायु में बदलाव और मानवजनित कारणों से खतरे की कगार में हैं। तितलियां हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में अहम भूमिका निभाती हैं, इनमें से एक फसलों को परागित करना है।    

भारत की तितली आबादी पर चल रहे एक अध्ययन ने देश की शहरी हरियाली वाले इलाकों में लगभग सभी तितली प्रजातियों का एक चित्र सहित संकलन तैयार किया है।

अध्ययन के मुताबिक, शोध संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों और नागरिक विज्ञान समूहों के सहयोग से बने बटरफ्लाइज ऑफ इंडिया कंसोर्टियम ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया है। जिसमें वास्तविक वन क्षेत्रों को छोड़कर पूरे भारत के शहरी ग्रीन इलाकों का विस्तार किया गया।

नए संकलन में 202 प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया गया है। बेंगलुरु के अलग-अलग इलाकों में इनमें से 182 प्रजातियां थीं, जबकि बाकी को मैसूर, चेन्नई, मुंबई, पुणे, दिल्ली और कोलकाता सहित अलग-अलग शहरों में देखा गया था।

अध्ययन में बताया गया है कि, तितली की प्रजातियों की पहचानी गई छवियों और प्रमुख पहचान सुविधाओं के साथ, संकलन बच्चों सहित लोगों के लिए सुलभ है। इसका उद्देश्य तितलियों की आबादी के बारे में जागरूकता में सुधार करना और राज्य वन विभागों द्वारा शहरी क्षेत्रों में कमजोर प्रजातियों को बनाए रखने में मदद करने के लिए संरक्षण प्रयासों को सफल बनाना है।

नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (एनसीबीएस), इंडियन फाउंडेशन फॉर बटरफ्लाइज, तितली ट्रस्ट, बेंगलुरु बटरफ्लाई क्लब और अन्य संगठन इस कार्यक्रम में शामिल हैं, जिसके माध्यम से लोगों को तितली की पहचान, आबादी की निगरानी, जीवन-चक्र का अध्ययन, प्रवासन, तितली में पौधों की परस्पर क्रिया, आदि देखी जाती है।

अध्ययन में बताया गया है कि, संगठन बटरफ्लाइज ऑफ इंडिया की वेबसाइट के माध्यम से 2010 से भारतीय तितलियों के जीव विज्ञान के बारे में जानकारी संकलित कर रहे हैं।

एनसीबीएस के विशेषज्ञ ने कहा कि परियोजना ने लार्वा, पौधों, फूलों का रस, तितली आवासों और स्थानिक, दुर्लभ और लुप्तप्राय तितलियों सहित मौसमी और राष्ट्रव्यापी घटनाओं पर जानकारी दर्ज की है।

उन्होंने बताया कि, आउटरीच कार्यक्रमों और अन्य सामुदायिक-निर्माण प्रयासों के निष्कर्षों में तितलियों की कई नई प्रजातियों का वर्णन शामिल है जो विज्ञान के लिए नई थीं, कुछ जो भारत के लिए नई थीं और एक दर्जन से अधिक प्रजातियों की फिर से खोज की गई जो भारत में नहीं देखी गई थीं। 

उत्तराखंड की तितलियां

इस संगठन ने बेंगलुरु के राज्य वन विभाग के साथ नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज और इंडियन फाउंडेशन फॉर बटरफ्लाइज के साथ मिलकर 2018 में  ‘उत्तराखंड की तितलियां’ नामक पुस्तक का प्रकाशन किया। जिसमें 1880 के दशक से उत्तराखंड में पाई गई तितलियों की सभी 500 प्रजातियों को शामिल किया गया है।

इन प्रजातियों को तितलियों की 1,000 से अधिक तस्वीरों या डिजिटल छवियों के साथ चित्रित किया गया है। यह सभी प्रजातियों के प्राकृतिक इतिहास पर प्रमुख पहचान सुविधाएं और संक्षिप्त जानकारी प्रदान करता है। उत्तराखंड की तितलियों पर संदर्भों की एक विस्तृत सूची भी प्रदान की गई है।

यह मार्गदर्शिका उत्तराखंड में तितली पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए तैयार की गई थी, जो न केवल पर्यटक और प्रकृति मार्गदर्शक है, बल्कि शोधकर्ता, छात्र, शिक्षक और अन्य प्रकृति प्रेमी भी इस पुस्तक की मदद से तितलियों की दुनिया की खोज का आनंद ले सकते हैं।

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