भोपाल शहर स्थित वन विहार नेशनल पार्क के तितली उद्यान में पिछले वर्ष करीब तीन दर्जन तितलियां देखी गई हैं। वर्ष 2014 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट (आईआईएफएम) के कैपस में हुए अध्ययन में तितलियों की 55 प्रजातियां देखी गई थी। जानकार मानते हैं कि शहरों के आस-पास प्रदूषण और खेती-बाड़ी के बदलते तरीकों की वजह से तितलियों की संख्या कम हो रही है। ऐसे में भोपाल से सटे जंगल से आया यह आंकड़ा जंगल की गुणवत्ता को लेकर क्या एक अच्छा संकेत है?
वर्ष 2007 में राष्ट्रीय स्तर पर एक अध्ययन किया गया जिसमें देशभर में 1641 प्रजाति की तितिलियां पाई गईं। इस अध्ययन में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कुल 174 प्रजातियों की तितलियां मिलीं थीं।
रातापानी के जंगल में तितलियों की प्रजाति और संख्या देखने के अलावा शोधकर्ताओं को एक और बात उत्साहित कर रही है, वह है दुर्लभ प्रजातियों की तितलियों का मिलना। इस सर्वे में लगभग 6 -7 दुर्लभ प्रजातियों की तितलियां दिखी हैं जिसमें से कुछ ऐसी हैं जो वर्षों बाद नजर आई हैं।
पचमढ़ी बुश ब्राउन, जो कि मध्यप्रदेश के हिल स्टेशन पचमढ़ी की तितली है, रातापानी के जंगल में देखी जा रही है। तितलियों के जानकार और सर्वे का हिस्सा रहे अभय उज़गरे कहते हैं कि पचमढ़ी में भी यह तितली पिछले 6 वर्षों से नहीं मिल रही है।
उज़गरे ने जलगांव, महाराष्ट्र से आकार इस सर्वे में हिस्सा लिया है। वह मानते हैं कि इस तितली का दिखना जंगल की जैव-विविधता को लेकर वाकई एक अच्छा संकेत है।
"रातापानी में इस तितली के दिखने का मतलब है कि अभयारण्य इस तितली के लिए अनुकूल परिस्थितियां प्रदान कर रहा है। "
औबेदुल्लागंज वन परिक्षेत्र के डीएफओ विजय कुमार ने डाउन टू अर्थ को बताया कि विभाग ने तितलियों की सूची तैयार की है जिसे आधार मानकर आगे भी सर्वे किए जाएंगे। इससे जंगल की गुणवत्ता का पता चलता रहेगा। "रातापानी में एक शोधकर्ता ने कुछ वर्ष पहले एक सर्वे किया था, तब यहां मात्र 60 प्रजाति की तितलियां मिली थीं। हम इस सर्वे में 70-80 प्रजाति की तितलियां मिलने की उम्मीद में थे, लेकिन पहले दिन ही 55 प्रजातियां मिली, तब हमको लगा कि संख्या काफी बढ़ने की संभावना है," कुमार ने कहा।
गैर लाभकारी संस्था तिनसा इकोलॉजिकल फ़ाउंडेशन ने इस सर्वे को वन विभाग के साथ मिलकर किया है। संस्था से जुड़े मेहुल सिंह तोमर ने कहा कि यहां इतनी तितलियों का होना जंगल की गुणवत्ता को दिखाता है।
"अभ्यारण्य में कई प्रकार की पारिस्थितिकी तंत्र देखने को मिलता है। यहां घास के मैदान, खेत, घने जंगल और झाड़ियां मौजूद हैं। इस वजह से तितलियों को हर तरह का माहौल मिलता है और तरह-तरह की प्रजातियां अपने अनुकूल ठिकानों पर रह रही हैं,"वह कहते हैं।
ब्लैक राजा , एंगल्ड पियरो, नवाब, कॉमन ट्रीब्राउन, ट्राई कलर्ड पाइड फ्लेट जैसी कई और दुर्लभ प्रजातियों की तितलियां भी यहा विशेषज्ञों को नजर आईं।
तोमर का कहना है कि इंडियन क्यूपिड जो ब्लूस फैमिली की तितली है वह कई विशेषज्ञों को पूरे जीवन में पहली बार नजर आई। विशेषज्ञों के मुताबित येलो और ब्लू बटरफ्लाईस की संख्या काफी अधिक थी मगर दुर्लभ प्रजातियों में हेस्प्रीडाए , जज़ेबेल और एग फ्लाई फैमिली की भी 2-2 प्रकार की तितलियां मिलीं।
खेती का बदला तरीका बढ़ा रहा चिंता
जानकार जंगल के आसपास हो रहे रासायनिक खेती को लेकर चिंतिंत हैं। तोमर ने कहा कि 103 प्रजातियों की तितलियां जिस स्थान पर देखी गई हैं उसके आसपास खेतों में रसायनों का प्रयोग होता है।इसका तितलियों पर बुरा असर हो सकता है।
"इस अभयारण्य के आस-पास और भीतर इंसानी आबादी मौजूद है। हैं। गांव के लोग खेती करते हैं और कीटनाशकों का उपयोग भी करते हैं जिस से तितलियों के अंडे मर जाते है। साथ ही,कैटरपिलर जहरीली पत्तियों को खा कर मर जाते हैं, जिन से तितलियों की संख्या प्रभावित हो सकती है." तोमर कहते हैं।
वहीं उज़गरे का कहना है कि गांव में लोगों की वजह से फायदा भी हो रहा है। लोग पशु-पालन करते हैं उस से जंगल में ताज़ी खाद उपलब्ध होती है, और यहा पेड़ और अच्छे से उग पाते हैं। उनका कहना है कि यहा जानवर, इंसान और पौधों के बीच एक संतुलन बना हुआ है जिस से होस्ट और नेक्टर प्लांट्स उग रहे हैं और तितलियों को भरपूर मात्रा में पोषण और रहने की जगह मिल रही है। होस्ट प्लांट उसे कहते हैं जहां तितलियां अंडा देती हैं और नेक्टर प्लांट से तितलियों को भोजन मिलता है।
इस अभयारण्य में अमलतास, अशोक, लंटाना, कैथ, सफ़ेद शिरीष, आक, नींबू, करीपत्ता, मदार जैसे होस्ट प्लांट्स पाये जाते हैं जिन के कारण यहा कई प्रजातियों की तितलियाँ मिलीं।