भोपाल की हरियाली को खतरा, विधायक आवास के लिए काटे जा रहे हैं 1000 पेड़

बीआरटीएस के नाम पर हाल ही में 2400 पेड़ काटे गए थे, अब 1000 पेड़ काटे जाने की योजना है। एक शोध के मुताबिक, पिछले एक दशक में भोपाल में 26 फीसदी हरियाली कम हुई है
भोपाल में काटे जा रहे पेड़। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
भोपाल में काटे जा रहे पेड़। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
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भोपाल के न्यू मार्केट से सटे टीटी नगर इलाके में प्रवेश करते ही धूप में पेड़ों के सूखते पत्तों की महक आने लगती है। पास जाने पर दिखता है कि कहीं पेड़ों की कटी हुई शाखाएं बिखरी हैं तो कहीं मोटा तना कटा हुआ पड़ा है। निर्माण कार्य में लगे मजदूर कभी कटे हुए तनों पर आराम फरमा रहे हैं तो कभी आसपास बिखरे कटे हुए तने, शाखाओं और उनके मुरझाए पत्तों को समेटकर ट्रॉली में रख रहे हैं। पेड़ों के कटने के बाद जमीन में हुए बड़े गड्ढे विनाश के इस मंजर को दिखा रहे हैं। यह विनाश स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत भोपाल को विकसित किए जाने की वजह से हो रहा है।

सिर्फ स्मार्ट सिटी ही नहीं, भोपाल में चल रहे दूसरे विकास कार्यों के लिए भी पेड़ों की अंधाधुंध कटाई चल रही है। विधायक आवास बनाने की पुरानी योजना को अमल में लाने के लिए 1000 पेड़ों की बली दी जा रही है। यह काम इतनी सतर्कता में किया जा रहा है कि अंदर जाने की इजाजत किसी को नहीं है। 

वहीं शहर में बीआरटीएस कॉरिडोर के लिए 2400 पेड़ काटे गए थे। नर्मदा पेय जल स्टोरेज के लिए 400, शौर्य स्मारक के लिए 200, सिंगार चोली ब्रिज और सड़क चौड़ीकरण के लिए 1000, हबीबगंज रेलवे स्टेशन पर विकास कार्य के लिए एक हजार से अधिक और एयरपोर्ट रोड के लिए दो हजार से अधिक पेड़ बीते कुछ महीनों में काटे गए हैं। मुंबई में आरे वन क्षेत्र को काटने से रोकने के लिए भोपाल के लोगों ने भी अपनी आवाज बुलंद की थी, लेकिन शहर में हो रहे पेड़ों की कटाई का कोई विरोध होता नहीं दिख रहा है।

बेशकीमती पेड़ काटे, इकोलॉजी और बायोडायवर्सिटी तबाह हुई

शहर के पर्यावरणविद् सुभाष पांडे बताते हैं कि उन्होंने हाल ही में एक शोध में पाया कि भोपाल में बीते 10 साल में 26 प्रतिशत हरियाली में कमी आई है। सुभाष बताते हैं कि विकास कार्य के दौरान पेड़ तो काटे जा रहे हैं लेकिन उतनी गंभीरता के साथ उसकी भारपाई नहीं हो रही है। उनका मानना है कि 50 से 100 साल पुराने पड़ काटकर उसके बदले नए पेड़ लगाने से पर्यावरण को हुए नुकसान की भारपाई हो भी नहीं सकती है। एक पेड़ कटने के बाद उसपर सैकड़ो जीव-जन्तु और पक्षियों का जीवन संकट में आ जाता है और इलाके की जैव विविधता भी खत्म हो जाती है। पेड़ के बदले कंक्रीट का जंगल तापमान को कई गुना बढ़ा रहा है। सुभाष की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2009 से 2019 तक शहर में लगभग तीन लाख पेड़ काटे गए हैं और इस तरह से कटाई होती रही तो भोपाल में 2025 तक महज तीन फीसदी हरियाली रह जाएगी।

पांच हजार नए पौधे भी एक पेड़ कटने की भारपाई नहीं कर सकते

पेड़ों के विशेषज्ञ और पूर्व वन अधिकारी डॉ. डॉ. सुदेश. वाघमारे बताते हैं कि जिस इलाके में स्मार्ट सिटी बनाई जा रही है वह कभी जंगल का हिस्सा हुआ करती थी। उसमें बेशकीमती जंगली पेड़ लगे थे जिसकी समझ न तो स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट बनाने वाले लोगों में है और न ही वो इसे बचाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि सरकारी कॉलोनी बनने के बाद देश के कई राज्यों से आए सरकारी कर्मचारियों ने वहां अपने स्थानीय इलाकों के पेड़ लगाए थे। इस वजह से वहां आम, आंवला, बरगद, कचनार, पुत्रंजिवा, अमलतास, गुलमोहर, जारूल, पिंक केसिया, परिजात जैसे सैकड़ों प्रजाति के पेड़ लगे थे। डॉ. वाघमारे ने कहा कि पेड़ों को बचाकर भी विकास किया जा सकता था, लेकिन हरियाली की अनदेखी की वजह से जो नुकसान हुआ है उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। वो चाहते तो पेड़ों को सुरक्षित रखकर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में इस बात का उल्लेख भी कर सकते थे। डॉ. वाघमारे बताते हैं कि एक 60 सेंटीमीटर का पेड़ काटकर उसके बदले 5 हजार पेड़ भी लगा दिए जाएं तो नुकसान की भरपाई तत्काल नहीं की जा सकती है। स्मार्ट सिटी के लिए पहले शिवाजी नगर का इलाका चुना गया था लेकिन वहां के रहवासियों ने पेड़ बचाने के लिए पोजेक्ट का विरोध किया और इसे बाद साउथ टीटी नगर वाले इलाके में शिफ्ट किया गया।

जिम्मेदारों का तर्क, अधिक से अधिक पेड़ बचाने की कोशिश

स्मार्ट सिटी कंपनी के प्रभारी सिटी इंजीनियर ओपी भारद्वाज ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में बताया कि 342 एकड़ में तीन हजार पेड़ हैं जिनमें से आधे को बचाने की कोशिश हो रही है। वे बताते हैं कि प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले पेड़ों को बचाने के लिए सर्वे किया गया था। इसके अलावा पहले चरण में 300 पेड़ों को हटाकर दूसरी जगह लगाने की योजना भी है।

विधायक आवास बनाने की योजना विरोध की वजह से तीन साल पहले बंद कर दी गई थी, लेकिन इसे एकबार फिर शुरू किया जा रहा है। मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यह प्रोजेक्ट काफी पुराना है और सभी नियमों का पूरा ख्याल रखा गया है। मीडिया में इस प्रोजेक्ट को लेकर छवि खराब करने वाली खबरे प्रकाशित हो रही है जबकि सच्चाई ये है कि इसके बदले चार हजार पेड़ लगाए भी जा चुके हैं।

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