उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद भारत को 1996 में “वन” की परिभाषा मिली। लेकिन वन अधिकारियों द्वारा इस परिभाषा को स्वीकारने के बाद भी उनके मन में इस परिभाषा को लेकर कई सवाल थे। इसके तुरंत बाद, मंत्रालय ने वन की एक उचित आधिकारिक परिभाषा तय करने का प्रयास शुरू किया।
विज्ञान, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन पर संसदीय स्थायी समिति की नवीनतम रिपोर्ट इस बारे में बात करती है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने समिति को सूचित किया कि वन की परिभाषा उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई परिभाषा के अनुरूप ही रहेगी।
10 अक्टूबर 2018 को समिति को दिए जवाब में महानिदेशक (वन) और विशेष सचिव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कहा, “सर, वास्तव में अगर हम “वन” को परिभाषित करते हैं, तो यह कई खामियों को पैदा कर सकता है, जिसका गलत फायदा उठाया जा सकता है। इसलिए, अभी हम उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई परिभाषा को ही मान रहे हैं। अभी “वन” का अर्थ वह क्षेत्र है, जो किसी भी सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज किया गया है, भले ही वह वन विकास कर रहा हो या नहीं।”
समिति ने अधिकारी से पूछा था कि राष्ट्रीय वन नीति 2018 के मसौदे में जंगल की कोई परिभाषा क्यों नहीं है। समिति यह जानना चाहती थी कि मंत्रालय वन को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने में सक्षम क्यों नहीं है। जवाब में, अधिकारी ने उपरोक्त उत्तर दिया।
12 दिसंबर, 1996 को उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा, “वन शब्द को इसके शब्दकोश अर्थ के अनुसार समझा जाना चाहिए। यह परिभाषा वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त सभी जंगलों को अपने में शामिल करता है, यदि वे वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 2 (i) के उद्देश्य के तहत आरक्षित, संरक्षित या अन्य काम के लिए निर्दिष्ट हों। धारा 2 में आने वाली “वन भूमि” शब्द में आए “वन” को शब्दकोश अर्थ में समझा जाएगा और किसी के भी स्वामित्व के बावजूद अगर वह सरकार के रिकॉर्ड में जंगल के रूप में दर्ज है तो वन ही माना जाएगा।”
मंत्रालय का तर्क है कि शीर्ष अदालत की परिभाषा से मंत्रालय जंगल का रिकॉर्ड रखने में सक्षम बना है। इससे वन का बेहतर रिकॉर्ड रखना सुनिश्चित हो सका है। शीर्ष अदालत के आदेश के बाद अधिकांश भारतीय राज्यों ने वन की परिभाषा को स्वीकार करते हुए हलफनामे दिए हैं।
मंत्रालय ने समिति को लिखित रूप से सूचित किया कि “एक बार जब हम वन को परिभाषित करते हैं और कहते हैं कि जंगल पेड़ों का एक समुदाय है तो फिर अल्पाइन घास के मैदान, आदि उस परिभाषा से बाहर आ जाएंगे। कोई परिभाषा दो-पृष्ठ या तीन-पृष्ठ वाली नहीं हो सकती। यही कारण है कि हम परिभाषा पर बहुत सावधानी से काम कर रहे हैं। एक बार जब हम परिभाषा तैयार कर लें तो यह ऐसा होना चाहिए कि इसका गलत इस्तेमाल न हो सके। यही हमारी मुख्य चिंता है।”
पिछले साल दिसंबर में डाउन टू अर्थ ने बताया था कि एमओईएफसीसी ने भारतीय वन अधिनियम, 1927 (आईएफए) को संशोधित करने की प्रक्रिया शुरु की थी। तब जैसा कि सूत्रों ने डाउन टू अर्थ को सूचित किया था, संशोधन में वन, प्रदूषण, पारिस्थितिक सेवाओं आदि जैसे शब्दों की परिभाषा भी शामिल की जाएगी।
दिलचस्प बात यह है कि समिति को मंत्रालय ने बताया कि वन की “स्पष्ट” परिभाषा नहीं होने के कारण उन्हें कोई कठिनाई नहीं हो रही है। मंत्रालय ने आगे कहा कि चूंकि वन से संबंधित विभिन्न कानूनी मुद्दों को भारतीय वन अधिनियम, 1927, वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों से हल कर लिया जाता है, इसलिए मंत्रालय को कोई कठिनाई नहीं हो रही है।
समिति मंत्रालय की इस चिंता से सहमत है कि वन की संकीर्ण और विशिष्ट परिभाषा के कारण निहित स्वार्थ वाले इसका गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन, समिति ने अंत में सिफारिश की कि मंत्रालय को इस संबंध में किसी भी प्रकार के संदेह को दूर करने के लिए वन की एक व्यापक,स्पष्ट और कानूनी रूप से मजबूत परिभाषा तैयार करनी चाहिए।