दक्षिण-पश्चिम मॉनसूनी मौसम का आगमन के 114 दिनों के बाद, 20 सितंबर, 2022 को उत्तर-पश्चिम भारत से वापस हटना शुरू हो गया है। यह अपने पीछे 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में विनाशकारी बाढ़, सूखे जैसी स्थिति और अन्य चरम मौसम की घटनाओं जैसे बिजली गिरने के रूप में नुकसान के निशान छोड़ गया है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की नवीनतम जानकारी के अनुसार, मॉनसून की वापसी, 17 सितंबर की अपनी सामान्य तिथि से तीन दिन बाद शुरू हुई। यहां बताते चलें कि देश में साल भर में होने वाली बारिश का 70 प्रतिशत हिस्सा मॉनसून के दौरान होती है।
मॉनसूनी मौसम की शुरुआत जून में पूर्वोत्तर भारत खासकर असम और मेघालय में विनाशकारी बाढ़ के साथ हुई। इसके बाद ये इलाके जुलाई और अगस्त में सूखे के दौर से गुजरे।
जुलाई में गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में बाढ़ आई थी। अगस्त केरल, कर्नाटक और मध्य भारतीय राज्यों ओडिशा और मध्य प्रदेश में बाढ़ जैसी स्थिति लेकर आया।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, मौसम की शुरुआत से लेकर अब तक देश के 396 जिलों में बाढ़, भूस्खलन और बिजली गिरने जैसी चरम मौसमी घटनाओं के कारण लगभग 2,000 लोगों की जान जा चुकी है।
हिमाचल प्रदेश में लगातार बादल फटने, अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण 320 लोगों की मौत हुई है।
मध्य प्रदेश में 280 मौतें हुईं, जिनमें से 159 बिजली गिरने से हुई, जो कि देश में सबसे अधिक है। बिजली गिरने से होने वाली मौतों के मामले में गुजरात 69 मौतों के साथ दूसरे स्थान पर रहा।
मॉनसून के चार महीनों में अब तक देश में बिजली गिरने से 536 लोगों की मौत हो चुकी है। पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश भी मूसलाधार बारिश और चरम मौसम की घटनाओं के कारण अप्रत्याशित बाढ़ से भारी तबाही हुई।
इस मॉनसून के मौसम में कई लोगों को आजीविका का भी नुकसान हुआ है, जिसमें 15 लाख हेक्टेयर से अधिक फसल नष्ट हो गई है और लगभग 70,000 जानवर, जिनमें से ज्यादातर पशुधन, चरम मौसम की घटनाओं के शिकार हो गए हैं।
वहीं दूसरी ओर, आईएमडी के आंकड़ों के अनुसार, इस सीजन में सात राज्यों में बारिश कम हुई है। इनमें से तीन पूर्वोत्तर के राज्य थे। मणिपुर इस सूची में 48 प्रतिशत की कमी के साथ सबसे ऊपर है, जिसने शुष्क मॉनसून के साथ अपना लंबा प्रयास जारी रखा है। मिजोरम में 20 प्रतिशत और त्रिपुरा में 23 प्रतिशत वर्षा में कमी दर्ज की गई।
दिल्ली में सामान्य से 37 फीसदी कम बारिश हुई जो देश में दूसरा सबसे अधिक है। उत्तर प्रदेश में 35 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। बिहार और पंजाब में भी कम बारिश हुई।
सात में से छह राज्य जो ज्यादातर कृषि पर निर्भर हैं, जिनमें से केवल पंजाब ही एक ऐसा राज्य है जहां सिंचाई के पर्याप्त साधन हैं। इन राज्यों में लगातार सूखे जैसी स्थिति मॉनसून के मौसम के दूसरे पक्ष को उजागर करती है, जब 21 सितंबर तक देश भर में 7 प्रतिशत की अधिक वर्षा दर्ज की गई थी।
झारखंड का मामला कुछ विशेष था क्योंकि यह कुछ समय पहले बारिश की भारी कमी से जूझ रहा था, लेकिन 21 सितंबर को इसमें 19 प्रतिशत की कमी थी, जिसे आईएमडी द्वारा सामान्य के रूप में वर्गीकृत किया गया है। एक दिन पहले, 20 प्रतिशत की कमी थी जो आईएमडी की कम वर्षा श्रेणी के अंतर्गत आती है। महीने की शुरुआत में राज्य में बारिश में कमी का आंकड़ा 27 प्रतिशत रहा।
1 अगस्त को, झारखंड में 49 प्रतिशत वर्षा की कमी दर्ज की गई थी, जिसका अर्थ था कि मौसम के पहले दो महीनों में राज्य में बहुत कम बारिश हुई। इसके कारण धान की लगभग बुवाई नहीं हुई, जबकि धान राज्य की मुख्य फसल है।
जैसे-जैसे महीना आगे बढ़ा, कुछ बारिश हुई, 8 सितंबर तक बुवाई का प्रतिशत सामान्य रकबे का लगभग आधा हो गया। आईएमडी ने इस महीने दक्षिण, पश्चिम और मध्य भारत में औसत से अधिक बारिश होने के बारे में 1 सितंबर को आगाह किया था।
भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में चल रही ला नीना की घटनाओं के कारण और देरी नहीं होने पर मॉनसूनी हवाओं को भारतीय उपमहाद्वीप से पूरी तरह से विदा लेने में चार सप्ताह लगेंगे।
ला नीना अल नीनो दक्षिणी दोलन घटना का सामान्य से ठंडा चरण है, जो आम तौर पर भारत में मॉनसून के मौसम को बढ़ाता है।
वर्तमान में ला नीना अपने रिकॉर्ड तीसरे वर्ष में है, यह एक ऐसी स्थिति है जो 1950 से पहले केवल दो बार दर्ज की गई थी। इसने पिछले दो वर्षों में मॉनसून के मौसम को अक्टूबर तक बढ़ाया।
इस साल अवधि के एक और बार बढ़ने का मतलब अत्यधिक बारिश हो सकती है, जिससे कई राज्यों में अचानक बाढ़ और भूस्खलन हो सकता है।