बिहार के दो दर्जन जिलों में गुरुवार को बारिश के साथ आकाशीय बिजली गिरी, जिसमें 83 लोगों की मौत हो गई। मरनेवालों में अधिकांश लोग खेत मजदूर और किसान थे। वे खेतों में धानरोपनी कर रहे थे, तभी आकाशीय बिजली गिरी। इस घटना में दर्जनों लोगों के झुलसने की भी खबर है। उनका इलाज अस्पतालों में चल रहा है।
गोपालगंज में सबसे अधिक 13 लोगों की मौत हुई है। वहीं, भागलपुर में 6, मधुबनी में 8, नवादा में 8, दरभंगा में 5 और मधुबनी में 8 लोगों की जान गई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना को लेकर संवेदना प्रकट की। उन्होने ट्वीट किया, “बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भारी बारिश और आकाशीय बिजली गिरने से कई लोगों के निधन का दुखद समाचार मिला। राज्य सरकारें तत्परता के साथ राहत कार्यों में जुटी हैं। इस आपदा में जिन लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, उनके परिजनो के प्रति मैं अपनी संवेदना प्रकट करता हूं।”
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सीएम नीतीश कुमार ने भी भी घटना को लेकर दुःख जताते हुए मृतकों के परिजनो को 4-4 लाख रुपए मुआवजा देने का ऐलान किया है।
हालांकि, ऐसा नहीं है कि आकाशीय बिजली गिरने का कोई पूर्वानुमान नहीं था। दो दिन पहले ही भारतीय मौसमविज्ञान विभाग की तरफ से पत्र लिखकर राज्य सरकार को इत्तिला किया गया था कि अगले तीन-चार दिनों तक बिहार में बारिश और वज्रपात हो सकता है। लेकिन, इसको लेकर आपदा प्रबंधन विभाग की तरफ से लोगों को कोई जानकारी नहीं दी गई।
बिहार में आकाशीय बिजली गिरने से लोगों के मरने की घटना पहली बार नहीं हुई है। ये अब सालाना घटने वाली घटना हो गई है और हर साल इसी तरह मौतों पर संवेदना प्रकट कर मुआवजे की घोषणा हो जाती है और फिर सबकुछ सामान्य ढर्रे पर चलने लगता है।
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लेकिन, संवेदनाओं और मुआवजे की घोषणाओं की रस्म अदायगी से इतर ये देखने की भी जरूरत है कि आखिर इतने सालों में केंद्र और राज्य सरकारों ने वज्रपात से होने वाली मौतों को कम करने के लिए क्या कदम उठाए।
केंद्र सरकार ने क्या किया
मौसम से जुड़ी तमाम जानकारियां भारतीय मौसमविज्ञान विभाग देती हैं। देश के कमोबेश हर राज्य में एक मौसमविज्ञान केंद्र है, जो स्थानीय बुलेटिन जारी करता है। पटना के मौसमविज्ञान केंद्र के मौसमविज्ञानी आनंद शंकर ने कहा, “पिछले कुछ दिनों से हमलोग जो वेदर बुलेटिन राज्य सरकार को दे रहे थे, उनमे बारिश के साथ वज्रपात का भी जिक्र होता था।”
इससे इतर भारतीय मौसमविज्ञान विभाग ने ये किया है कि पिछले साल बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में लाइटनिंग सेंसर मशीन लगाई है। हालांकि, ये मशीनें लगाने की बात 2017 से ही चली आ रही थी, लेकिन किन्हीं कारणों से ये ठंडे बस्ते में था।
ये लाइटनिंग सेंसर आईआईटीएम (पुणे) की तरफ से लगाए गए हैं। दो सेंसर झारखंड के रांची और धनबाद में तथा एक सेंसर गोरखपुर में लगाया गया है। वहीं, बिहार में मधुबनी और गया में एक-एक सेंसर लगाया गया है। चूंकि एक-एक सेंसर 200 किलोमीटर क्षेत्रफल में होनेवाले वज्रपात की पूर्वसूचना दे सकता है, इसलिए गोरखपुर, धनबाद और रांची के सेंसर भी बिहार के काम आ जाते हैं।
लेकिन, ये सेंसर सीधे तौर पर लोगों को वज्रपात से नहीं बचा सकते हैं। फिर ये सेंसर क्या करते हैं? ये सेंसर पूर्वसूचना भारतीय मौसमविज्ञान विभाग को देते हैं। भारतीय मौसमविज्ञान विभाग इन सूचनाओं को अपने वेदर बुलेटिन के माध्यम से राज्य सरकार को समय-समय पर बताता है। इसके अलावा भारतीय मौसमविज्ञान विभाग ने एक मोबाइल ऐप तैयार किया है। नाम है-दामिनी। आनंद शंकर ने कहा, “ये ऐप 40-45 मिनट पहले वज्रपात की सूचना दे देगा।”
इस ऐप की जानकारी लोगों तक कैसे पहुंचेगी, वे कैसे ऐप से वज्रपात की जानकारी हासिल कर सकेंगे, जैसी बुनियादी बातों से मौसमविज्ञान विभाग को कोई सरोकार नहीं है।
आईआईटीएम (पुणे) के विज्ञानी बी गोपालकृष्णन से जब इस संवाददाता ने बात की थी, तो उनका कहना था, “हमारा काम था ऐप सरकार के सुपुर्द कर देना। हमने कर दिया। अब ये सरकार के ऊपर है कि वो कैसे इस्तेमाल करेगी।”
बिहार सरकार ने अब तक क्या किया
बिहार सरकार ने पांच साल पहले डिजास्टर रिस्क रेडक्शन रोडमैप तैयार किया था, जिसमें साल 2030 तक आपदाओं के जोखिम को 75 प्रतिशत तक कम करने की बात कही गई थी। लेकिन, बीते पांच सालों में बिहार सरकार ने वज्रपात से होनेवाली मौतों को कम करने के लिए क्या किया, इसका लेखा-जोखा बताता है कि सरकार का रोडमैप फाइलों में ही दफ्न है।
पिछले पांच सालों में बिहार सरकार ने वज्रपात से जिंदगियां बचाने के लिए केवल एक ऐप लांच किया है। इस ऐप का नाम है ‘वज्रइंद्र’। इसके लिए बिहार सरकार ने सूबे में पांच जगहों पर लाइटनिंग डिटेक्शन सेंसर स्थापित किया है। भारतीय मौसमविज्ञान विभाग के ‘दामिनी’ ऐप के बावजूद बिहार सरकार ‘वज्रइंद्र’ ऐप को ही प्रमोट कर रही है। लेकिन, सच बात ये है कि दूरदराज गांवों में रहने वाले लोगों को न तो ऐप के बारे में पता है और न उनके पास स्मार्ट फोन है।
इस ऐप के अलावा बिहार सरकार वज्रपात से लोगों की जिंदगी बचाने के लिए एक और काम करती है। ये भी सालाना रस्म अदायगी की ही तरह होती है। मॉनसून शुरू होने कुछ दिन पहले से आपदा प्रबंधन विभाग अखबारों व टीवी चैनलों में विज्ञापन देकर कहता है कि वज्रपात होने की सूरत में कैसे बचा जा सकता है। मगर सवाल ये है कि कितने खेत मजदूर और किसान सुबह का अखबार देखकर खेतों में काम करने के लिए जाते हैं?
ऐसे में होना तो ये चाहिए था कि सरकारी अधिकारी गांवों में जाकर चौपाल लगाते और लोगो को बताते कि वज्रपात के संकेत क्या हैं और इससे कैसे बचा जा सकता है, लेकिन शायद ही ऐसा कोई गांव होगा, जहां कभी भी वज्रपात पर चौपाल लगा हो।
हालाकि, राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के मंत्री लक्षमेश्वर राय से जब इस बाबत पूछा गया, तो उन्होंने ऐप को लेकर जागरूकता फैलाने की बात कह कर फोन काट दिया।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि ऐप शहरी आबादी के लिए कारगर हो सकता है, गांवों में नहीं क्योंकि गांवों में बहुत कम किसान-मजदूर स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने ऐप की जगह जमीन पर जाकर जागरूकता फैलाने और ज्यादा से ज्यादा ताड़ के पेड़ लगाने पर जोर दिया।
मौसम विज्ञानी आनंद शंकर ने कहा कि बांग्लादेश में वज्रपात से बचाव के लिए ताड़ के पेड़ लगाए जा रहे हैं, क्योंकि ताड़ का पेड़ बिजली को अपनी तरफ खींच कर जमीन में दफ्न कर देता है।
वहीं, लाइटनिंग रिसाइलेंट इंडिया कैम्पेन के कनवेनर कर्नल (रिटायर्ड) संजय श्रीवास्तव ने गांव-गांव जाकर जागरूकता फैलाने के साथ-साथ लाइटनिंग अरेस्टर लगाने की सलाह दी। उन्होंने कहा, “पहले देवघर में सावन के वक्त खूब वज्रपात होता था जिससे दर्जनों कांवरिया की मौत हो जाती थी। हमने वहां लाइटनिंग अरेस्टर लगा दिए और पिछले 7-8 सालों से देवघर में वज्रपात से एक भी कांवरिया की मौत नहीं हुई है। बिहार सरकार को चाहिए कि वह गांव-गांव में जागरूकता अभियान चलाए और लाइटनिंग अरेस्टर लगवाए। इससे आकाशीय बिजली से मरने वालों की संख्या में गिरावट आएगी।”