चार दशकों में भारत के 30 फीसदी जिलों में बारिश में कमी वाले सालों की संख्या सबसे अधिक रही: अध्ययन

अध्ययन से पता चलता है कि पिछले 40 सालों में 38 प्रतिशत जिलों में अत्यधिक बारिश वाले साल रहे।
चार दशकों में भारत के 30 फीसदी जिलों में बारिश में कमी वाले सालों की संख्या सबसे अधिक रही: अध्ययन
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पिछले 40 वर्षों के जिला-वार मॉनसून के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि भारत के लगभग 30 प्रतिशत जिलों में कम बारिश वाले वर्षों की संख्या अधिक रही, जबकि 38 प्रतिशत जिलों में अत्यधिक बारिश वाले साल देखे गए। 

द काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) द्वारा किए गए विश्लेषण से यह भी पता चला है कि इनमें से 23 प्रतिशत जिले जैसे नई दिल्ली, बेंगलुरु, नीलगिरी, जयपुर, कच्छ और इंदौर में बहुत अधिक संख्या में कम और अत्यधिक वर्षा वाले साल रहे।

देश में लगभग 717 जिले हैं जहां से भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के द्वारा मॉनसून के आंकड़े एकत्र किए जाते  हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि इन रुझानों का और भी अधिक विस्तृत स्तर पर विश्लेषण करने पर, यह पाया गया कि 55 प्रतिशत तहसीलों में पिछले दशक, 1982 से 2011 के जलवायु आधार रेखा की तुलना में 2012 से 2022 में दक्षिण पश्चिम मॉनसूनी बारिश में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई। 

जबकि लगभग 11 प्रतिशत भारतीय तहसीलों में, विशेषकर पिछले दशक, 2012 से 2022 में, जलवायु आधार रेखा 1982 से 2011) की तुलना में 10 प्रतिशत से अधिक की कमी देखी गई।

हालांकि चालीस वर्षों में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून में घटती प्रवृत्ति सांख्यिकीय रूप से लगातार बड़ी नहीं थी, अध्ययन में  पाया गया कि ये तहसीलें भारत में गंगा के मैदानी इलाकों में हैं, जो भारत के आधे से अधिक कृषि उत्पादन, पूर्वोत्तर भारत और भारतीय हिमालयी क्षेत्र में योगदान करती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये क्षेत्र नाजुक लेकिन अत्यधिक विविध पारिस्थितिक तंत्र की भी मेजबानी करते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि इन तहसीलों में से लगभग 68 प्रतिशत में जून से सितंबर तक सभी महीनों में बारिश कम  हुई, जबकि 87 प्रतिशत में जून और जुलाई के शुरुआती मॉनसूनी महीनों के दौरान गिरावट देखी गई, जो खरीफ फसलों की बुवाई के लिए महत्वपूर्ण हैं।

पूर्वोत्तर मॉनसून बारिश पर, जो मुख्य रूप से भारत के प्रायद्वीप को प्रभावित करती है, अध्ययन के मुताबिक, पिछले दशक यानी 2012-2022 में तमिलनाडु में लगभग 80 प्रतिशत तहसीलों, तेलंगाना में 44 प्रतिशत और में 10 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 39 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मासिक आधार पर, यह पाया गया कि भारत में लगभग 48 प्रतिशत तहसीलों में अक्टूबर में 10 प्रतिशत से अधिक वर्षा हुई, जो उपमहाद्वीप से दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की देरी से वापसी के कारण हो सकती है।

अध्ययन में स्थानीय स्तर पर मॉनसून के बारे में अधिक करीब से मापने और स्थानीय निर्णय लेने की सिफारिश की गई है, जो मॉनसून में बदलाव के खिलाफ लचीलापन बनाने के लिए महत्वपूर्ण है।

मौसम विभाग ने हाल ही में एक मिशन, "पंचायत मौसम सेवा" शुरू की है, जिसका उद्देश्य अपने गठन के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में हर गांव के प्रत्येक किसान तक मौसम का पूर्वानुमान पहुंचाना है

इस बीच, अध्ययन में तहसील-स्तरीय जलवायु जोखिम आकलन को शामिल करते हुए जिला-स्तरीय जलवायु कार्य योजनाओं के विकास की भी सिफारिश की है।

रिपोर्ट में कहा गया है, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 2019 के निर्देश के अनुरूप, सभी भारतीय राज्य और केंद्रशासित प्रदेश 2030 तक जलवायु परिवर्तन पर अपनी राज्य कार्य योजनाओं (एसएपीसीसी) को संशोधित कर रहे हैं। जबकि वर्तमान योजनाएं जिला-स्तरीय जलवायु के खतरों का विश्लेषण पर गौर करती हैं, अध्ययन के निष्कर्षों से तहसील-स्तर की जलवायु संबंधी जानकारी की उपलब्धता का पता चलता है।

अध्ययन में स्थानीय स्तर पर बारिश में होने वाले बदलाव पर नजर रखने के लिए स्वचालित मौसम स्टेशनों और समुदाय-आधारित रिकॉर्डिंग में निवेश करने का भी आह्वान किया गया है।

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