लम्बे समय से जिस अपशिष्ट जल को पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा सिरदर्द समझा जाता था, वो किसी खजाने से कम नहीं। इस बारे में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा जारी नई रिपोर्ट "वेस्टवाटर: टर्निंग प्रॉब्लम टू सोल्यूशन" से पता चला है कि यदि इस दूषित जल का उचित प्रबंधन किया जाए तो इससे पर्यावरण के साथ-साथ करोड़ों लोगों को फायदा पहुंचेगा।
रिपोर्ट के मुताबिक कारगर नीतियों की मदद से इस दूषित जल को समस्या से समाधान में बदला जा सकता है, जो न केवल 50 करोड़ लोगों के लिए वैकल्पिक बिजली की व्यवस्था कर सकता है। साथ ही इसकी मदद से चार करोड़ हेक्टेयर जमीन की सिंचाई भी की जा सकती है, जो करीब-करीब जर्मनी के आकार जितने खेतों की सिंचाई करने जैसा है।
इतना ही नहीं इस अपशिष्ट जल में मौजूद पोषक तत्व खेतों के लिए काफी फायदेमंद हो सकते हैं। अनुमान है कि यदि इसमें मौजूद पोषक तत्वों के दोबारा उपयोग से सिंथेटिक उर्वरकों पर बढ़ती निर्भरता को काफी कम किया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार इसकी मदद से कृषि में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मांग का 25 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार हर साल करीब 32,000 करोड़ क्यूबिक मीटर अपशिष्ट जल को दोबारा उपयोग किया जा सकता है। देखा जाए तो यह दुनिया के सभी विलवणीकरण संयंत्रों द्वारा उत्पादित किए जा रहे पानी से 10 गुना अधिक पानी प्रदान करने के लिए पर्याप्त है।
हालांकि विडम्बना देखिए कि इसके बावजूद पानी जैसे अमूल्य खजाने को ऐसे ही बर्बाद कर दिया जाता है। यह तब है जब हम जानते हैं कि आज भारत सहित दुनिया की एक बड़ी आबादी गंभीर जल संकट का सामना कर रही है।
हाल ही में वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट (डब्ल्यूआरआई) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि भारत सहित दुनिया के 25 देशों में जल संकट गंभीर रूप ले चुका है। यह वो देश हैं जो अपनी जल आपूर्ति का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा खर्च कर रहे हैं। देखा जाए तो यह समस्या केवल इन्हीं देशों तक ही सीमित नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की करीब 50 फीसदी आबादी यानी 400 करोड़ लोग, साल में कम से कम एक महीने पानी की भारी किल्लत का सामना करते हैं। अनुमान है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो अगले 27 वर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 60 फीसदी पर पहुंच जाएगा।
रिपोर्ट से पता चला है कि जहां 2015 में घरेलू और म्युनिसिपल स्रोतों से निकलने वाले अपशिष्ट जल की मात्रा 38,000 करोड़ क्यूबिक मीटर थी वो 2030 तक बढ़कर 49,700 करोड़ क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाएगी। ऐसे में इस अमूल्य संसाधन को ऐसे ही नाली में बर्बाद नहीं किया जा सकता।
समस्या या संसाधन
हालांकि इसके बावजूद केवल 11 फीसदी ट्रीटेड वाटर को दोबारा उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए फ्रांस को ही देख लीजिए वहां केवल 0.1 फीसदी अपशिष्ट जल को साफ करने के बाद दोबारा उपयोग किया जाता है। वहीं करीब 50 फीसदी दूषित जल को बिना साफ किए ऐसे ही नदियों, झीलों और समुद्रों में छोड़ा जा रहा है। जो पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर समस्याएं पैदा कर रहा है।
इस बारे में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एजेंसी से जुड़े लेटिशिया कार्वाल्हो का कहना है कि, “अपशिष्ट जल सम्भावनाओं में बहुत अधिक संभावनाएं है, लेकिन फिलहाल इसकी वजह से इकोसिस्टम प्रदूषित दूषित हो रहे हैं, जिन पर हम निर्भर हैं।“ उन्होंने जोर देकर कहा कि “हमें यह मौका नहीं गंवाना चाहिए। अब अपशिष्ट जल को स्वच्छ पानी, ऊर्जा और आवश्यक पोषक तत्वों के मूल्यवान स्रोत के रूप में देखने का समय आ गया है।“
रिपोर्ट में अपशिष्ट जल में निहित सम्भावनाओं को रेखांकित करते हुए जानकारी दी है कि किस तरह समस्या से समाधान की ओर बढ़ा जा सकता है। अपशिष्ट जल से बायोगैस, ताप, और बिजली को पैदा किया जा सकता है, जोकि उसके शोधन के लिए खर्च होने वाली ऊर्जा से पांच गुणा अधिक हो सकती है। रिपोर्ट का कहना है कि अपशिष्ट जल के उचित प्रबन्धन के जरिए देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने और गहराते जल संकट में कमी लाने में मदद मिल सकती है।
इस रिपोर्ट में विभिन्न देशों में अपशिष्ट जल प्रबन्धन से जुड़े सफल उदाहरणों को पेश किया गया है, जिनमें चीन से लेकर कोलम्बिया, डेनमार्क, जर्मनी, और मिस्र से लेकर भारत, स्वीडन, सिंगापुर और सेनेगल जैसे कई देश शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में सरकारों और व्यवसायों से आग्रह किया है कि अपशिष्ट जल को एक सर्कुलर इकोनॉमी के अवसर के रूप में देखने की जरूरत है। इससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे, साथ ही अनेक मूल्यवान संसाधन भी प्राप्त होंगे जो आर्थिक रूप से भी फायदेमंद होगा।
इसी को देखते हुए रिपोर्ट में कारगर शासन-व्यवस्था, निवेश, नवाचार, आंकड़ों की उपलब्धता पर बल दिया गया है। साथ ही योजनाओं को लागू करने पर भी ध्यान देने की बात कही है।