वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2019-20 का बजट पेश करते हुए अपने भाषण में कहा था कि 3.60 लाख करोड़ रुपये के लागत वाले जलशक्ति अभियान (जेएसए) के तहत 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार तक पाइप से पेयजल की आपूर्ति कर दी जाएगी। हालांकि, परियोजना के अमल की सुस्त रफ्तार सरकार को समय से वादा पूरा करने से काफी दूर ले आई है।
जलशक्ति अभियान को अगस्त 2019 में शुरु किया गया जिसके बाद से कुल 15 महीनों में नवंबर, 2020 तक 2.6 करोड़ परिवारों को पाइपलाइन से पेयजल की आपूर्ति कराई गई हैं। यह दर्शाता है कि प्रत्येक महीने सिर्फ 17 लाख परिवारों को नलों से जोड़ा जा सका। इस दर पर काम करने से अगले छह साल लगेंगे और 2026 तक यह शायद यह अभियान पूरा हो पाएगा।
25 फरवरी, 2021 को सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट और डाउन टू अर्थ की ओर से जारी स्टेट ऑफ इंडियाज रिपोर्ट - 2021 (एसओई 2021) में यह तथ्य उजागर किया गया है।
एसओई 2021 और सीएसई की वाटर एक्सपर्ट सुष्मिता सेनगुप्त के मुताबिक देश में अब तक जलापूर्ति के लिए 12 बार लक्ष्य तय किए जा चुके हैं लेकिन वह पूरे नहीं हो पाए। इस बार जलशक्ति अभियान के तहत 19.1 करोड़ परिवारों को पेयजल आपूर्ति वाले पाइपलाइन से जोड़ा जाना है। वहीं, देश में 16.1 फीसदी परिवार के पास पहले से ही पाइपलाइन की जलापूर्ति है।
2020 में नवंबर तक 16 जिलों में 400 ब्लॉक, 30475 पंचायतें और 54938 गांवों में परिवार को पाइपलाइन से जोड़ा गया है। राज्यों के हिसाब से बिहार के सबसे ज्यादा गांव पेयजल की आपूर्ति के लिए पाइपलाइन से जुड़े हैं और फिर इसके बाद तेलांगाना का स्थान है। हालांकि लद्दाख, केरल और त्रिपुरा इस मामले में सबसे फिसड्डी हैं (नीचे देखें - राज्यों में पाइपलाइन से जुड़ने वाले गांवों की स्थिति)।हालांकि, यदि पाइपलाइन के इस जलापूर्ति का इस्तेमाल कर सकने वाले परिवारों की संख्या की बात करें तो सिर्फ गोवा (दो जिले) ऐसा राज्य है जहां 100 फीसदी परिवार जलापूर्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं।
एसओई 2021 में कहा गया है कि स्वच्छ भारत मिशन की तरह सिविल इंजीनियर इस गणना से अलग मत रखते हैं उनका कहना है कि अमल के दौरान परिवारों को पाइपलाइन वाले नल से जोड़ने की दर बढ़ जाएगी और अभियान समय से पूरा कर लिया जाएगा।
वहीं, स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता विभाग के मुताबिक एक अप्रैल, 2018 तक केवल 20 फीसदी ग्रामीण परिवारों को ही पाइपलाइन जलापूर्ति से जोड़ा जा सका जबकि 2018-19 तक 35 फीसदी ग्रामीण परिवारों को पाइपलाइन की पेयजल आपूर्ति से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था। एसओई के मुताबिक महज देश के 17 जिले हैं जहां 100 फीसदी पाइपलाइन से जलापूर्ति से जोड़ने का लक्ष्य पूरा किया गया है।
नरेंद्र मोदी सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में जल संसाधन और गंगा मंत्रालय का नाम बदलकर जलशक्ति मंत्रालय रखा था। साथ ही इस नए नाम वाले मंत्रालय के तहत 3.60 लाख करोड़ रुपए की महात्वकांक्षी योजना जल शक्ति अभियान (जेएसए) के तहत 2024 तक राज्यों में पाइपलाइन के सहारे हर घर जल पहुंचाने की बात कही थी। 2017 में भी ग्रामीण परिवारों के लिए यह घोषणा की गई थी।
एसओई 2021 के मुताबिक रहर घर जल के तहत मंत्रालय ने ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की आपूर्ति 40 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन (एलपीसीडी) से बढ़ाकर 55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन (एलपीसीडी) कर दी थी। लेकिन अब भी 50 फीसदी से कम परिवार इस मात्रा का पानी हासिल कर रहे हैं। जबकि 40 एलपीसीडी के मात्रा के हिसाब से 80 फीसदी परिवारों को पानी हासिल हो रहा था।
पानी के स्लीपेज की परेशानी काफी परिवारों को 55 एलपीसीडी की मात्रा से बाहर रखेगा। यानी उचित प्रबंधन न होने से स्लीपेज की समस्या जारी रहेगी और तमाम परिवार आंशिक तौर पर ही जलापूर्ति से लाभान्वित होंगे। यह बात सीएजी की रिपोर्ट में गौर भी की जा चुकी है। सीएजी के मुताबिक 2012 और 2017 के बीच 47 हजार बस्तियां स्लीपेज और अन्य कारणों से पूर्ण रूप के बजाए आंशिक रुप से पाइपलाइन जलापूर्ति दायरे में पहुंच गईं। खासतौर से आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, झारखंड, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में ऐसी बस्तियां सबसे ज्यादा थीं।
हर घर जल कार्यक्रम की घोषणा से पहले नीति आयोग के पूर्व कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने 14 जून, 2018 को पानी की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट का शीर्षक था "कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स (सीडब्ल्यूएमआई) ए नेशनल टूल फॉर वाटर मैनेजमेंट,मैनेजमेंट एंड इंप्रूवमेंट" इस रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया था कि पानी की आपूर्ति सीमित है और उसकी गुणवत्ता बेहद खराब। रिपोर्ट के मुताबिक देश में 60 करोड़ लोग भीषण जलसंकट का सामना कर रहे हैं। 75 फीसदी के पास जल के लिए उनके घर में कोई व्यवस्था नहीं है। 84 फीसदी ग्रामीणों के पास पाइप का पानी नहीं है। साथ ही देश का 70 फीसदी पानी प्रदूषित है।
सिर्फ सतह पर मौजूद साफ पानी का संकट नहीं है बल्कि भू-जल की स्थिति अत्यंत दयनीय है। एनजीटी में बीते वर्ष (2018 में) केंद्र की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे में सरकार ने बताया था कि देश के भीतर 2009 में जहां 2700 अरब घन मीटर भूमिगत जल था वहीं अब 411 अरब घन मीटर जल ही धरती के नीचे बचा है। यह गिरावट की बेहद ही भयावह तस्वीर है। तय मानकों के तहत मेट्रो शहर में प्रति व्यक्ति 150 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति जल की आपूर्ति होती है। यदि इसी मानक पर बचे हुए भूमिगत जल को इस्तेमाल करें तो दिल्ली जैसे मेट्रो शहर की 27 लाख आबादी एक दिन में यह जल खत्म कर देगी।