सांभर झील संरक्षण: तीन महीने के भीतर कोर व बफर क्षेत्रों को परिभाषित करने का निर्देश

एनजीटी ने राजस्थान पर्यावरण विभाग से तीन महीने के भीतर सांभर झील का सीमांकन करने के साथ-साथ उसके कोर और बफर क्षेत्रों को परिभाषित करने का निर्देश दिया है
2019 में सांभर झील में बड़े पैमाने पर मृत पाए गए पक्षी; फोटो: विकास चौधरी/सीएसई
2019 में सांभर झील में बड़े पैमाने पर मृत पाए गए पक्षी; फोटो: विकास चौधरी/सीएसई
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सेंट्रल बेंच ने नौ नवंबर 2023 को सांभर झील के संरक्षण के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए हैं। सांभर झील को मार्च 1990 में रामसर स्थलों की सूची में शामिल किया जा चुका है। गौरतलब है कि रामसर स्थल वो आद्रभूमियां हैं, जिनका अंतर्राष्ट्रीय महत्व है।

एनजीटी ने जो दिशानिर्देश जारी किए हैं उनके तहत राजस्थान पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त मुख्य/प्रमुख सचिव को तीन महीने के भीतर सांभर झील का सीमांकन करने के साथ इसके कोर और बफर क्षेत्रों को परिभाषित करने का निर्देश दिया है। एनजीटी ने राजस्व विभाग के अतिरिक्त मुख्य/प्रमुख सचिव के साथ-साथ नागौर, अजमेर और जयपुर जिलों के कलेक्टरों को सौंपे गए कार्य को समय पर पूरा करने के लिए पर्यावरण विभाग के साथ सहयोग और समन्वय करने का भी निर्देश दिया है।

कोर्ट ने राज्य आद्रभूमि प्राधिकरण को संबंधित अधिकारियों के साथ मिलकर सांभर झील के लिए एकीकृत पर्यावरण प्रबंधन योजना (आईईएमपी) को अंतिम रूप देने का भी निर्देश दिया है। उन्हें एक महीने के भीतर इस योजना को मंजूरी के लिए राष्ट्रीय वेटलैंड समिति को प्रस्तुत करना आवश्यक है।

आईईएमपी में आर्द्रभूमि के निकट एक 'हाइड्रोबायोलॉजिकल मॉनिटरिंग स्टेशन' स्थापित करने का प्रस्ताव शामिल होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (आरएसपीसीबी) को आर्द्रभूमि में छोड़े जा रहे दूषित पानी को रोकने का काम सौंपा गया है। वो दोषी पाए जाने पर किसी भी स्थानीय निकाय, व्यक्ति या औद्योगिक इकाई के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई कर सकता है।

एनजीटी ने सांभर झील वेटलैंड साइट की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित करने का भी निर्देश दिया है। यह समिति झील से पानी के अवैध दोहन के साथ व्यक्तियों या कंपनियों द्वारा अवैध रूप से लगाए जा रहे बोरवेल और वेटलैंड नियम, 2017 के होते उल्लंघन पर अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगी। इस समिति का काम सांभर झील की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों की पहचान करना और उल्लंघन के लिए जिम्मेदार लोगों को चिह्नित करना है।

अनगिनत समस्याओं से जूझती सांभर झील

सांभर झील भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है, जो राजस्थान में स्थित है। यह झील जयपुर से करीब 80 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में है। झील करीब 24,000 हेक्टयर में फैली है, जिसके एक तरफ अरावली और दूसरी तरफ थार रेगिस्तान है।

इस झील का अपना ऐतिहासिक और पारिस्थितिक महत्व है। यह सदियों से नमक उत्पादन का एक पारंपरिक स्रोत रही है, और इसकी परिधि के चारों ओर नमक के विशाल भंडार हैं। झील प्रवासी पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों जैसे राजहंस, पेलिकन आदि के लिए महत्वपूर्ण आवास प्रदान करती है, खासकर सर्दियों के महीनों में बड़े पैमाने पर यहां पक्षी आते हैं, जिन्ह देखने के लिए पर्यटकों और वन्यजीव प्रेमियों का तांता लग जाता है।

हाल के कुछ वर्षों में इस झील को कई पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसमें झील से नमकीन पानी की होती अवैध निकासी, अनधिकृत बोरवेल और पर्यावरण नियमों के उल्लंघन से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। ऐसे में इन चिंताओं को दूर करने और सांभर झील के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।

जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार सांभर कस्बे की भी 43 बसावटों में पानी में सेलेनिटी यानी खारापन तय मात्रा 10,500 मिलीग्राम/ लीटर से बढ़ा हुआ पाया गया था। सांभर ब्लॉक में करीब 9,119 पीने के पानी के स्त्रोत हैं। पानी के प्रदूषित होने का कारण झील के आसपास खुले निजी संस्थान और बारिश में बहकर आ रहे गंदे पानी को माना जा रहा है।

डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार सांभर झील में जिस तरह लगातार पयर्टन के विकास की योजनाएं चलाई जा रही हैं, उसका खामियाजा पक्षियों को झेलना पड़ रहा है। 2019 में वहां हुई हजारों पक्षियों की मौत का मामला सामने आया था। रिसॉर्ट मालिकों ने पर्यटकों को झील दर्शन कराने के नाम पर जगह-जगह बर्ड वॉच सेंटर बना दिए हैं और झील की जमीन पर अतिक्रमण किया है।

इस बारे में भू-विज्ञानी और ‘एनवायरमेंटल जियोमॉर्फोलॉजी एंड मैनेजमेंट ऑफ सांभर लेक वेटलैंड’ नामक किताब लिखने वाले डॉक्टर जीतेन्द्र शर्मा का कहना है कि ‘झील तक आने वाली नदियों के रास्ते में सैंकड़ों अतिक्रमण बीते 20 साल में हुए हैं।

सरकारों ने कृषि भूमि के लिए जमीन दे दी और सिंचाई के लिए कई एनिकट भी बना दिए। मसलन जहां पहले बारिश का 80 से 90 फीसदी पानी झील में आता था वो अब घटकर 30 फीसदी ही रह गया है। इस पानी को भी सांभर साल्ट लिमिटेड और निजी उत्पादक नमक बनाने के लिए लिफ्ट कर लेते हैं। ऐसे में पक्षियों के रहने लायक पानी झील में छोड़ा ही नहीं जा रहा।’

उनका आगे कहना है कि  ‘सांभर को करीब 30 साल पहले रामसर साइट घोषित किया था, लेकिन वेटलैंड भूमि विविधता और पारिस्थितिकी स्थिति का जिस तरह से ख्याल रखा जाना चाहिए था, उस पर सांभर खरी नहीं उतरती।’

राजस्थान सरकार ने 2019 में सांभर झील के प्रबंधन के लिए एक स्टेंडिंग कमेटी का गठन किया था। वहीं 26 नवंबर 2019 को वन विभाग ने जयपुर जिला एनवायरमेंट कमेटी को सांभर झील की हर रोज निगरानी की जिम्मेवारी सौंपी थी। लेकिन स्थिति में अब ही कोई खास सुधार नहीं आया है।

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