90 के दशक की शुरूआत से दुनिया भर में करीब 53 फीसदी झीलों और जलाशयों में पानी घट गया है। इसके लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं और विडम्बना देखिए की इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भी हम इंसानों को ही उठाना पड़ेगा। यह जानकारी जर्नल साइंस में प्रकाशित रिसर्च में सामने आई है। देखा जाए तो किसी वजह से पीने के पानी, कृषि, जलविद्युत के लिए जलापूर्ति को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
शोधकर्ताओं ने अपने इस अध्ययन में पिछले करीब तीन दशकों (1992 से 2020) के दौरान दुनिया भर की झीलों के उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया है। रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं वो दर्शाते हैं कि यह वैश्विक स्तर पर यह झीलें और जलाशय हर साल औसतन 21.5 गीगाटन पानी खो रहीं हैं, जिसके लिए बढ़ता तापमान, जलवायु में आता बदलाव और इंसानों द्वारा इन जल स्रोतों का किया जा रहा दोहन जिम्मेवार है। खोए गए पानी की यह मात्रा कितनी ज्यादा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह 2015 में अमेरिका ने कुल जितना पानी खर्च किया था उसके बराबर है।
यदि इन झीलों की बात करें तो यह धरती की सतह पर मौजूद ताजे पानी का सबसे बड़ी स्रोत हैं। जो अपने आप में सतह पर मौजूद ताजे पानी का 87 फीसदी हिस्सा जमा करे हुए हैं। यह झीलें और जलाशय धरती के तीन फीसदी हिस्से पर फैली हैं।
भारत सहित अन्य देशों में इन सिकुड़ती झीलों के लिए कौन है जिम्मेवार
रिसर्च के मुताबिक भारत में भी 30 से ज्यादा बड़ी झीलों में पानी घट रहा है। इनमें दक्षिण भारत की 16 बड़ी झीलें भी हैं, जिनमें मेत्तूर, कृष्णराजसागर, नागार्जुन सागर और इदमलयार आदि शामिल हैं।
रिसर्च के मुताबिक झीलों के जल भण्डारण को सबसे ज्यादा नुकसान पश्चिमी मध्य एशिया, मध्य-पूर्व, पश्चिमी भारत, पूर्वी चीन, उत्तरी और पूर्वी यूरोप, ओशिनिया, अमेरिका, उत्तरी कनाडा, दक्षिणी अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के अधिकांश हिस्सों में देखा गया है। वहीं इसके विपरीत करीब 24 फीसदी बड़ी झीलों के जल भण्डारण में वृद्धि हुई है। शोध के मुताबिक इन झीलों में मौजूद पानी में आती गिरावट के 65 फीसदी हिस्से के लिए जलवायु में आता बदलाव और इंसानी खपत जिम्मेवार है।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और हाइड्रोलॉजिस्ट फांगफैंग याओ का कहना है कि प्राकृतिक झीलों में आई 56 फीसदी गिरावट के लिए वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान और इंसानी दोहन जिम्मेवार था। रिसर्च के मुताबिक दक्षिण भारत सहित दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में हाल में आई सूखे की घटनाओं ने भी जलाशयों के भंडारण में हो रही गिरावट में योगदान दिया है।
यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो झीलों के मामले में भारी बदलाव देखने को मिले हैं। जहां 1984 से 2015 के बीच इनके स्थाई जल क्षेत्र में 90,000 वर्ग किलोमीटर की गिरावट आई है। वहीं उपग्रहों से प्राप्त आंकडों से पता चला है कि इस दौरान करीब 184,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में मुख्य रूप से जलाशयों का निर्माण किया गया है। इनका कुल क्षेत्रफल सुपीरियर झील के बराबर है। यह स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि धीरे-धीरे प्राकृतिक झीलों का स्थान अब कृत्रिम जलाशय ले रहे हैं।
देखा जाए तो शुष्क क्षेत्रों में न केवल प्राकृतिक झीलों बल्कि जलाशयों के भण्डारण में भी गिरावट आ रही है। यदि आंकड़ों पर गौर करें तो जहां प्राकृतिक झीलों में 25.9 गीगाटन और जलाशयों के भण्डारण में 5.27 गीगाटन प्रतिवर्ष की दर से शुद्ध गिरावट आ रही है। इस अध्ययन में अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के दल ने सहयोग किया है जिन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी 1,972 झीलों का अध्ययन किया है। इन झीलों में यूरोप और एशिया के बीच मौजूद कैस्पियन सागर से लेकर दक्षिण अमेरिका में टिटिकाका झील तक शामिल थी।
शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी यानी 200 करोड़ लोग ऐसे बेसिनों में रह रहे हैं जहां झीलें सिकुड़ रही हैं। ऐसे में में इंसानी खपत, जलवायु परिवर्तन और उनमें जमा होती गाद जैसे मुद्दों पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।