ऑक्सीजन जीवन का आधार है, जिसके बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया भर में जल स्रोत बड़ी तेजी से ऑक्सीजन खो रहे हैं। इनमें नदियां, झरने, झीलें, जलाशय, तालाब से लेकर मुहाने, समुद्र तट और यहां तक की महासागर भी शामिल हैं।
इस बारे में की गई एक नई रिसर्च से पता चला है कि हाल के दशकों में सभी जलीय पारिस्थितिकी तंत्रों में बड़े पैमाने पर ऑक्सीजन में गिरावट आई है। अध्ययन में जो आंकड़ों साझा किए गए हैं, उनके मुताबिक 1980 के बाद से झीलों ने करीब साढ़े पांच फीसदी ऑक्सीजन खो दी है। हालांकि इस मामले में जलाशय, झीलों से कहीं ज्यादा आगे हैं, जो पानी में घुली अपनी 18.6 फीसदी ऑक्सीजन खो चुके हैं।
इसी तरह 1960 के बाद से महासागरों के पानी में घुली ऑक्सीजन में भी दो फीसदी की गिरावट देखी गई है। हालांकि महासागरों ने जितनी ऑक्सीजन खोई है, देखने में यह आंकड़ा शायद बड़ा न लगे। लेकिन महासागरों की विशालता को ध्यान में रखते हुए देखें तो यह बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकता है।
इतना ही नहीं कई जगहों पर समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र ने भी ऑक्सीजन में बड़े पैमाने पर आते बदलावों का सामना किया है। उदाहरण के लिए, मध्य कैलिफोर्निया के जलक्षेत्रों ने हाल के दशकों में अपनी 40 फीसदी ऑक्सीजन खो दी है।
रिसर्च में इस बात की भी पुष्टि की गई है कि चाहे झीलें हों या नदियां ऑक्सीजन की कमी से प्रभावित करीब-करीब सभी प्रकार के जल स्रोतों में नाटकीय रूप से बढ़ोतरी हुई है। रेनसेलर पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित हुए हैं।
मानवता के लिए गंभीर हो सकते हैं परिणाम
देखा जाए तो पानी में घुली यह ऑक्सीजन जीवन के लिए बेहद आवश्यक है, और पानी में इसकी कमी सभी जीवित प्राणियों के साथ-साथ पृथ्वी की स्थिरता के लिए भी खतरा बन सकती है।
वैज्ञानिकों ने ग्रह से जुड़े कई टिप्पिंग पॉइंट की पहचान की है, जो यदि सीमा में है तो ग्रह की स्थिरता को बनाए रखा जा सकता है। इनमें जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता को होता नुकसान, ध्रुवों पर पिघलती बर्फ, भूमि उपयोग में आता बदलाव जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं। यदि हम इन सीमाओं का उल्लंघन करते हैं तो इससे गंभीर पारिस्थितिकी, आर्थिक और सामाजिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं का तर्क है कि जब पानी में ऑक्सीजन का स्तर गिरता है तो वो इन महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है। इसी तरह इन प्रक्रियाओं पर पड़ता प्रभाव जलीय ऑक्सीजन को भी प्रभावित करता है।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता केविन रोज का प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहना है कि, "जलीय ऑक्सीजन की कमी जलवायु और भूमि उपयोग में आते बदलावों से बहुत हद तक जुड़ी है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बढ़ता तापमान पानी में घुलने वाली ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर देता है। इसके साथ ही पानी की परतों के साथ गहराई में वेंटिलेशन की कमी और ऑक्सीजन की खपत में वृद्धि इसकी गिरावट को बढ़ा देती है।
बढे हुए पोषक तत्वों की वजह से ऑक्सीजन की खपत बढ़ जाती है। इतना ही नहीं ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषक जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं को बाधित कर रहे हैं, जो साफ पानी और समुद्री जीवों दोनों को नुकसान पहुंचा रहा है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक जब पानी में ऑक्सीजन का स्तर गिरता है, तो यह प्रजातियों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है और पूरे खाद्य जाल को बदल सकता है।
इसकी वजह से जीवों में अक्सर संवेदी क्षमता में गिरावट, धीमी वृद्धि, के साथ उनके आकार एवं प्रजनन में कमी आ सकती है। ऑक्सीजन की कमी यह जीवों की बड़े पैमाने पर मौतों की वजह बन सकती है, जो पारिस्थितिकी तंत्र को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
गौरतलब है कि ऑक्सीजन की कमी वाले इन क्षेत्रों को "मृत क्षेत्र" के रूप में जाना जाता है, जो अपना अधिकांश जीवन खो देते हैं। यह मछली पकड़ने, जलीय कृषि, पर्यटन और सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकते हैं। जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में ऑक्सीजन की कमी हानिकारक शैवालों को खिलने का मौका देती है। साथ ही यह अन्य समस्याओं को भी जन्म दे सकती है।
केविन रोज के मुताबिक हम पानी में ऑक्सीजन की कमी के हानिकारक स्तर के करीब पहुंच चुके हैं, जो ग्रह की अन्य महत्वपूर्ण पर्यावरणीय सीमाओं को प्रभावित कर सकता है। उनके अनुसार ऑक्सीजन का यह स्तर इस बात के लिए महत्वपूर्ण है कि समुद्र और मीठे पानी की प्रणालियां पृथ्वी की जलवायु को कैसे प्रभावित करती हैं।
ऐसे में ऑक्सीजन के स्तर को बेहतर बनाने के लिए, हमें जलवायु परिवर्तन और विकसित क्षेत्रों से होते प्रदूषण जैसे कारणों से भी निपटना होगा। अगर हम ऑक्सीजन की कमी को संबोधित करने में विफल रहते हैं तो इसका असर न केवल पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ेगा, साथ ही यह वैश्विक स्तर पर समाज और आर्थिक गतिविधियों को भी प्रभावित करेगा।