नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के 18 नवंबर, 2020 के आदेश में कहा गया है कि केंद्रीय निगरानी समिति, जल प्रदूषण मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और अन्य प्राधिकरणों के साथ मिलकर 351 प्रदूषित नदी के जल निकासी की निगरानी के साथ-साथ सभी राज्यों द्वारा जल निकायों की बहाली के लिए कदम उठाए जाए।
मूल याचिका में यह मुद्दा हरियाणा के गुड़गांव में जल निकायों की पहचान, संरक्षण और बहाली का था। हालांकि याचिका को पर्यावरण की सुरक्षा के हित में पूरे राज्य और फिर पूरे देश में लागू करने के लिए कहा गया था।
एनजीटी के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और श्यो कुमार सिंह की पीठ ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जल निकायों की बहाली के लिए एक नोडल एजेंसी नियुक्त करने का निर्देश दिया, उन जगहों पर जहां कि अब तक ऐसी कोई एजेंसी नियुक्त नहीं की गई है।
नियुक्त नोडल एजेंसी राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों के अधीन काम करेगी। जिसमें स्थिति का जायजा लेने के लिए बैठक आयोजित करेगी और पंचायत स्तरों तक की कार्रवाई के लिए जिला अधिकारियों को निर्देश देने और आगे निगरानी तंत्र विकसित करने के लिए दिशा-निर्देश सहित शिकायत निवारण तंत्र (जीआरएम) के रूप में कदम उठाएगी।
नोडल एजेंसी सीपीसीबी और जल शक्ति मंत्रालय के सचिव को समय-समय पर रिपोर्ट सौंपेगी। पहली ऐसी रिपोर्ट को 28 फरवरी, 2021 तक सौंपने को कहा गया है।
पुणे में रैवेट में श्मशान बनाने को लेकर नहीं बरती गई लापरवाही
पुणे जिले के खडकवासल सिंचाई प्रभाग ने एनजीटी को सौंपे अपने हलफनामे में कहा कि रैवेट में एक श्मशान का निर्माण पावना नदी की लाल रेखा और नीली रेखा की सीमा में किया जा रहा था।
हार्मनी कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी और अन्य द्वारा एनजीटी के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अधिकारियों के वैधानिक मंजूरी के बिना श्मशान का निर्माण किया जा रहा है।
हालांकि खडकवासल सिंचाई प्रभाग के अधिशाषी अभियंता ने हलफनामे में कहा है कि श्मशान का निर्माण याचिकाकर्ताओं (हार्मनी कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी) के क्षेत्र में रहने से पहले ही शुरू हो गया था। जब 63 फीसदी काम पूरा हो गया, तो याचिकाकर्ताओं ने इसे अदालत में चुनौती दी। जगह का निरीक्षण 12 अक्टूबर को किया गया था और यह पावना नदी की लाल रेखा और नीली रेखा की सीमा में पाई गई।
बिना अनुमति के भूजल निकासी पर एनजीटी ने एसडीएम को रिपोर्ट प्रस्तुत करने का दिया निर्देश
मंगोल पुरी में मेसर्स न्यू वक़्त क्लब द्वारा भूजल को अवैध तरीके से निकाला जा रहा है, कानून का उल्लंघन कर इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा था। अदालती आदेशों के बावजूद भी अधिकारी कार्रवाई करने में विफल रहे हैं।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अपने पिछले आदेश में दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) और कंझावला, उत्तर-पश्चिम जिले के उपायुक्त से पूछा था कि क्या इलाके में अवैध बोरवेल चल रहे है, इस बात की पुष्टि करने के लिए एक रिपोर्ट प्रसतुत करने को कहा गया था। जबकि उपायुक्त से कोई रिपोर्ट नहीं मिली है, वहीं डीजेबी द्वारा 13 अप्रैल, 2020 को एक रिपोर्ट सौंपी गई है जिसमें बताया गया है कि कंझावला के एसडीएम को निरीक्षण करने के लिए कहा गया है, लेकिन कोविड-19 के कारण निरीक्षण नहीं किया जा सका।
एनजीटी ने 18 नवंबर को कंझावला के एसडीएम से 3 फरवरी, 2021 से पहले मामले की एक तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
टिकरी रजवाहा भोला झाल नाले पर अतिक्रमण
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 18 नवंबर को याचिकाकर्ता वेद प्रकाश अग्रवाल द्वारा टीकरी रजवाहा भोला झाल नाले के अतिक्रमण के मामले में दायर याचिका को लेकर गाजियाबाद के जिलाधिकारी से संपर्क करने और आवश्यकतानुसार कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
याचिका में शिकायत की गई थी कि जिला गाजियाबाद के डासना नाले में मिलने वाले टिकरी रजवाहा भोला झाल नाले के अतिक्रमण के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। मेसर्स लैंडक्राफ्ट डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड ने हाउसिंग टाउनशिप बनाया था और मैसर्स कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल ने अतिक्रमण कर एक अस्पताल बनाया है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा भी अतिक्रमण किया गया है।
गाजियाबाद के जिला मजिस्ट्रेट ने एनजीटी के 22 जनवरी के आदेश के अनुपालन में 17 सितंबर को कार्रवाई रिपोर्ट सौंपी, रिपोर्ट में कहा गया है कि अवैध अतिक्रमण हटा दिए गए हैं।
हालांकि याचिकाकर्ता ने आपत्ति दर्ज की है, जिसमें कहा गया है कि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) का अभी भी टिकरी रजवाहा भोला झाल नाले पर अतिक्रमण है।