राजस्थान में जल संरक्षण के लिए शुरू की गई सरकारी पहलों का प्रभावी रूप से क्रियान्वयन किया जा रहा है या नहीं इसकी निगरानी के लिए हर डिवीजन में एक समिति गठित की जानी चाहिए। यह समिति डिवीजन के राजस्व आयुक्त की अध्यक्षता में काम करेगी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की सेंट्रल बेंच द्वारा 25 सितंबर, 2023 को दिए निर्देश के अनुसार समिति तालाब, टैंक और झील भूमि पर होते किसी भी अतिक्रमण को रोकने के लिए जिम्मेदार है।
यदि वहां किसी प्रकार का अतिक्रमण होता है, तो उन्हें तुरंत हटाया जाना चाहिए साथ ही कोर्ट ने राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है जल स्रोतों में दूषित पानी या ठोस कचरा न डाला जाए। वहीं यदि इन जल स्रोतों पर अतिक्रमण या उनमें ठोस या तरल अपशिष्ट छोड़े जाने के मामले सामने आते हैं, तो उसकी बहाली के साथ-साथ पर्यावरणीय मुआवजे की वसूली के लिए आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए।
गौरतलब है कि एनजीटी का यह आदेश महादेव सिंह द्वारा दायर आवेदन के बाद दिया गया है, जो उदयपुर जिले के मुनवास के रहने वाले हैं। अपने आवेदन में उन्होंने चारागाह भूमि पर होते अवैध अतिक्रमण और निर्माण के साथ-साथ बागेला तालाब में मलबा डंप करने पर प्रकाश डाला था। उनके मुताबिक ट्रक के जरिए तालाब में मलबा डाला जा रहा था और कुछ होटल मालिकों ने तालाब के एक हिस्से को भरकर उसपर ईमारत बना ली है, इतना ही नहीं उनके द्वारा तालाब में कचरा भी डाला जा रहा है।
इसके अतिरिक्त, आवेदन में यह भी कहा गया है कि तालाब में आने वाले पानी के प्राकृतिक जल स्रोत को वालेंसिया रिसॉर्ट द्वारा निर्माण उद्देश्यों के लिए अवरुद्ध कर दिया है।
ऐसे में अदालत ने उदयपुर के कलेक्टर और नगर निगम को अतिक्रमण हटाने के साथ यह भी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि तालाब में किसी प्रकार का ठोस कचरा नहीं फेंका जाना चाहिए। इसके अलावा, उन्हें पानी के उपचार के लिए एक ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने का भी निर्देश दिया है।
कोर्ट ने नगर निगम को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित करने के लिए भी कहा है और यदि वहां पहले से कोई ट्रीटमेंट प्लांट है तो उसे भी दुरुस्त करने की बात आदेश में कही गई है। वहीं जिन क्षेत्रों में एसटीपी की सुविधा नहीं है वहां अंतरिम समाधान के रूप में इन-सीटू उपचार प्रक्रिया पर विचार करने की बात कही है।
नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र में होते निर्माण पर एनजीटी ने लगाई रोक
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने आदेश दिया है कि 1980 के वन अधिनियम का उल्लंघन करते हुए, नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र में कोई निर्माण नहीं होना चाहिए। मामला राजस्थान के जयपुर का है।
कोर्ट ने इस मामले में राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को बहाली के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने बोर्ड से नियमों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरणीय मुआवजा तय करने को भी कहा है। इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने 26 सितंबर, 2023 को दिए आदेश में एसपीसीबी को पर्यावरण सम्बन्धी मुआवजे की गणना करते समय पेड़ों को हुए नुकसान को भी ध्यान में रखने की बात कही है।
वहीं इस मामले में संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जयपुर नगर निगम ने निर्माण संबंधी कुछ गतिविधियों के लिए निविदा जारी की थी, जो वन्यजीव अधिनियम, 1972 और वन अधिनियम, 1980 का स्पष्ट तौर पर उल्लंघन है। इसके लिए वन विभाग से कोई अनुमति नहीं ली गई है।
सोने की परख और हॉलमार्किंग केंद्रों के लिए जारी दिशानिर्देशों का किया जाना चाहिए पालन: एनजीटी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 25 सितंबर 2023 को निर्देश दिया है केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा सोने की परख और हॉलमार्किंग केंद्रों के लिए अक्टूबर, 2020 में जारी दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि सीपीसीबी द्वारा जारी दिशानिर्देशों को 15 दिनों के भीतर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ द्वारा अपडेट और आधिकारिक तौर पर घोषित किया जाना चाहिए और साथ ही इसका पालन किया जा रहा है या नहीं इसकी भी विधिवत निगरानी की जानी चाहिए।
कोर्ट ने सीपीसीबी को पर्यावरण दिशानिर्देश संख्या 5.0 (10) की समीक्षा करने का भी निर्देश दिया है। जो स्थानीय प्रशासन को नीतिगत निर्णय लेने की जिम्मेवारी सौंपता है। पूरे देश में एकसमान नीतियों को सुनिश्चित करने और किसी भी विसंगति या भिन्नता को रोकने के लिए कोर्ट ने सीपीसीबी से सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से लिए सुझाव और विचारों पर नए सिरे से निर्णय लेने को कहा है। जैसा कि आदेश में कहा गया है, यह निर्णय उचित समय सीमा के भीतर तैयार और जारी किया जाना चाहिए।