नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के मुताबिक झांसी में लक्ष्मी ताल पर स्वतंत्र समिति द्वारा दायर रिपोर्ट में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से निकलने वाले ट्रीटेड पानी में मौजूद फीकल कोलीफॉर्म के स्तर या जलाशय के पानी की गुणवत्ता के बारे में कोई जानकारी नहीं है। मामला उत्तर प्रदेश के झांसी जिले का है। ऐसे में अदालत ने 10 अक्टूबर 2023 को उत्तर प्रदेश सरकार से अगली रिपोर्ट में इसका खुलासा करने का निर्देश दिया है।
इस बारे में उत्तर प्रदेश के वकील ने स्वतंत्र समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि सात नाले (कुबेरू, कसाई मंडी नाला, लक्ष्मी ताल नाला, जोशियाना नाला, बंगलाघाट नाला, डिमेरियाना नाला और ओम शांति नगर नाला) लक्ष्मी में मिलते हैं। हालांकि, अब इन नालों में बहते सीवेज का उपचार एसटीपी द्वारा किया जाता है, और अब गंदा पानी लक्ष्मी ताल या किसी अन्य स्थान पर नहीं जा रहा है।
यह भी जानकारी दी गई है कि यह एसटीपी औसतन 17 से 26 एमएलडी सीवेज का उपचार करता है। इसमें से साफ किए गए चार एमएलडी पानी को आगे प्रोसेस करने के बाद लक्ष्मी ताल में छोड़ दिया जाता है, जबकि बाकी साफ पानी को नारायण बाग नाले में छोड़ा जाता है। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि यह साफ किए गए इस सीवेज के पानी की गुणवत्ता आवश्यक मानकों को पूरा करती है।
एनजीटी ने यह भी पाया है कि रिपोर्ट में जांच के समय साइट पर ली गई जलाशय की तस्वीरें भी शामिल थीं। इन तस्वीरों में लक्ष्मी ताल के चारों ओर स्टील की बाड़ को रोकने के लिए एक ऊंची दीवार का निर्माण भी किया गया है। यह चारदीवारी संभावित रूप से जलग्रहण क्षेत्र से जलाशय में होने वाले पानी के प्रवाह को प्रभावित कर सकती है और ताल के अस्तित्व को नुकसान पहुंचा सकती है।
ऐसे में अदालत ने झांसी के नगर आयुक्त को लक्ष्मी ताल के बफर जोन के चारों ओर बनी ऊंची चहारदीवारी और पाथवे के निर्माण पर एक रिपोर्ट सबमिट करने का निर्देश दिया है। इस रिपोर्ट में ताल पर पड़ने वाले संभावित प्रतिकूल प्रभावों या अपेक्षित लाभ पर प्रकाश डालने को कहा गया है।
यह पूरा मामला झांसी में लक्ष्मी ताल को अवैध अतिक्रमण और प्रदूषण से बचाने के साथ-साथ उसमें छोड़े जा रहे दूषित सीवेज और गंदे पानी को रोकने से जुड़ा है। समिति द्वारा सबमिट इस रिपोर्ट के मुताबिक जो क्षेत्र तालाब के रूप में दर्ज है उसके भीतर अवैध रूप से बने दो घरों को तोड़ दिया गया है। हालांकि सात मंदिर और एक मस्जिद भी हैं जिन्हें स्थानीय विरोध के कारण ध्वस्त नहीं किया जा सका।
एनजीटी ने सिडको पर सीआरजेड के तहत आने वाले जमीन बेचने पर लगाई रोक
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ऑफ महाराष्ट्र (सिडको) को तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) के तहत आने वाली किसी भी जमीन को बेचने, ट्रांसफर करने या उसपर पट्टा देने से रोक दिया है। कोर्ट द्वारा दिया यह आदेश विशेष रूप से नवी मुंबई के नेरुल में सीआरजेड क्षेत्र से जुड़ा है।
गौरतलब है कि सिडको नवी मुंबई के लिए एक विशेष योजना प्राधिकरण है, जो महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम, 1966 के तहत काम करता है। वो नवी मुंबई में विकास कार्यों के लिए भूमि को पट्टे पर देता है। यह मामला जिस जमीन से जुड़ा है वो 2011 की सीआरजेड अधिसूचना के अनुसार, सीआरजेड-I और सीआरजेड-II के अंतर्गत आती है।
झारखंड में बॉक्साइट के अवैध खनन से पर्यावरण पर पड़ रहा है असर
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 10 अक्टूबर 2023 को निर्देश दिया है कि एक संयुक्त समिति झारखंड में होते अवैध खनन के मुद्दे की जांच करेगी। मामला झारखण्ड के लोहरदगा में बॉक्साइट के होते अवैध खनन से जुड़ा है।
कोर्ट ने समिति से एनजीटी की पूर्वी पीठ के समक्ष जांच के बाद कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। गौरतलब है कि 13 सितंबर, 2023 को प्रभात खबर में प्रकाशित एक समाचार के आधार पर यह मामला दर्ज किया गया है।
इस खबर में लोहरदगा के वन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर होते अवैध बॉक्साइट खनन का खुलासा किया गया था। गौरतलब है कि लोहरदगा को "बॉक्साइट नगरी" भी कहा जाता है। खबर के मुताबिक वहां बॉक्साइट को फर्जी नंबर प्लेट वाले ट्रकों में अवैध रूप से ले जाया जा रहा था।
लोहरदगा इस अवैध परिवहन वाले बॉक्साइट के लिए डंपिंग ग्राउंड बन गया है। दावा है कि इसके चलते भूजल का स्तर काफी गिर गया है, और स्थानीय कुएं एवं बोरहोल सूख गए हैं। वहीं ध्वनि प्रदूषण भी तय सीमा को पार कर गया है, और पूरा क्षेत्र भारी धूल से होते प्रदूषण से पीड़ित है।