मध्यप्रदेश-गुजरात के बीच नर्मदा विवाद गहराया  

मध्यप्रदेश ने गुजरात सरकार की सरदार सरोवर बांध भरने की योजना पर पानी फेर दिया है। मध्यप्रदेश सरकार पानी रोकने के बाद अब बिजली में अपना हिस्सा मांगा है
नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े सरदार सरोवर बांध से प्रभावित लोग समय समय पर प्रदर्शन करते रहे हैं। फाइल फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े सरदार सरोवर बांध से प्रभावित लोग समय समय पर प्रदर्शन करते रहे हैं। फाइल फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
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सरदार सरोवर बांध को लेकर मध्यप्रदेश और गुजरात आमने सामने हैं। गुजरात बिजली उत्पादन रोककर बांध को पूरा भरना चाहता है जबकि मध्यप्रदेश को बांध भरने से हजारों लोगों के विस्थापन की चिंता हो रही है। मध्यप्रदेश ने हाल ही में गुजरात का पानी भी रोका है और अब सरकार ने बांध मे बिजली बनाने का काम चालू करने की मांग भी की है। 

सरदार सरोवर बांध को भरने के लिए पानी देने से इंकार करने के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने नर्मदा कंट्रोल ऑथोरिटी के उस फैसले पर आपत्ति जताई है जिसमें ऑथोरिटी ने इस बांध से बिजली बनाने पर रोक लगाने की इजाजत दी है। गुजरात ने इस साल अप्रैल महीने में ऑथोरिटी से बिजली बनाने का काम रोकने की इजाजत मांगी थी, ताकि बांध को मॉनसून में पूरा भरा जा सके। बिजली बनाने की प्रक्रिया में बांध का पानी छोड़ना होता है। मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव एसआर मोहंती ने इस निर्णय पर आपत्ति जताते हुए इसपर पुनर्विचार करने की गुजारिश की है। मध्यप्रदेश का मानना है कि प्रदेश को बिजली नहीं मिलने से 289 करोड़ का नुकसान हुआ है। मुख्य सचिव एसआर मोहंती ने इस संबंध में गुजरात सरकार को भी  पत्र लिखा है।

गुजरात ने 138 मीटर की क्षमता तक बांध को भरने के लिए पानी मांगा था। मध्यप्रदेश सरकार का कहना है कि गुजरात को उसके हिस्से का पानी मिल चुका है और अधिक पानी दिया तो मध्यप्रदेश के 24 गांव इसी महीने डूब जाएंगे। मप्र सरकार के मुताबिक गुजरात को उसके हिस्से का 1600 क्यूसेक पानी दिया जा चुका है। बांध को 112 मीटर तक ही भरा जा सकता है, लेकिन गुजरात ने इसे121 मीटर तक भर लिया है।

नर्मदा घाटी विकास विभाग मध्यप्रदेश का कहना है कि पानी की मात्रा बढ़ाने से धार के 24 गांव विस्थापित हो जाएंगे। बिना पुनर्वास किए अधिक पानी नहीं दे सकते।

सरकार के इस फैसले का नर्मदा बचाओ आंदोलन के समाजसेवियों ने स्वागत किया है। आंदोलन से जुड़ी मेधा पाटकर बताती हैं कि मध्यप्रदेश सरकार के इस कदम से कई हजार परिवार पर विस्थापन का संकट टल जाएगा। उनके मुताबिक, सरकार भले ही 6 हज़ार परिवार को विस्थापन का खतरा बताए जबकि 30 हज़ार परिवार पर ये खतरा है। 

सरदार सरोवर बांध पर सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा उठाए गए कई सवाल एक बार फिर से मौजू हो गए हैं। मेधा पाटकर ने 28 जून 2019 को प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से गुजरात सरकार पर सरदार सरोवर बांध में मध्यप्रदेश के साथ अन्याय करने का आरोप लगाया था।

कौन ले रहा सरदार सरोवर के पानी से फायदा?

सरदार सरोवर बांध पर निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाते हुए मेधा पाटकर कहती हैं कि इस योजना से हुए बिजली निर्माण में से 57 प्रतिशत बिजली पर मध्यप्रदेश का अधिकार है, लेकिन वर्ष 2014 से 2017 तक 21000 मेगावाट क्षमता वाले प्लांट से मात्र 3200 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन किया गया। जबकि इस दौरान बांध में पानी पहले से भी अधिक था।

मेधा ने आरोप लगाया कि बिजली न बनाकर इस पानी का इस्तेमाल 481 कंपनियों को पाइपलाइन के माध्यम से पानी दिया गया। इस दौरान गुजरात के किसानों को भी पानी नहीं दिया गया। गुजरात में इस बांध की वजह से 15 किलोमीटर के क्षेत्र में नर्मदा सूखी हुई है जिससे वहां के 6000 मछलीमार बेरोजगार हो गए।

मध्यप्रदेश के नुकसानों को समझाते हुए उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश को पुनर्वास के लिए गुजरात सरकार से पूरा पैसा नहीं मिला। बांध से प्रभावित जंगल और पर्यावरण को हुए अन्य नुकसान की भारपाई भी अभी नहीं हुई है।

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