केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के क्षेत्रीय निदेशालय, लखनऊ ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की, कि एम/एस स्पेशलिटी इंडस्ट्रीज पॉलिमर एंड कोटिंग प्राइवेट लिमिटेड, सिडकुल, सितारगंज, उत्तराखंड पर पर्यावरण की क्षतिपूर्ति के लिए दंड लगाया जाय। मुआवजा औद्योगिक प्रदूषण और भूजल निष्कासन के संबंध में नियमों की अनदेखी करने के लिए था।
पॉलिमर इमल्शन के उत्पादन में लगी इकाई में 3 दिसंबर, 2019 के एनजीटी आदेश के संदर्भ में, क्षेत्रीय निदेशालय, सीपीसीबी, लखनऊ और क्षेत्रीय कार्यालय, उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूईपीपीसीबी), काशीपुर, के अधिकारियों की एक संयुक्त टीम द्वारा 28 जनवरी, 2020 को निरीक्षण किया गया।
निरीक्षण के दौरान पाया गया कि भूजल को निकालने के लिए कंपनी ने अभी तक केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) से एनओसी प्राप्त नहीं की है। इकाई ने 11 मई, 2017 को इसके लिए आवेदन किया था।
सीपीसीबी ने इकाई के निरीक्षण के बाद निम्नलिखित सिफारिशें कीं:
2- पूर्वी कोलकाता के वेटलैंड् के अतिक्रमण के संबद्ध में एनजीटी नें 30 दिनों के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने का दिया निर्देश
पूर्वी कोलकाता के वेटलैंड्स पर अतिक्रमण और अवैध उद्योगों विशेषकर प्लास्टिक इकाइयों के संचालन, आवश्यक वैधानिक मंजूरी के बिना क्षेत्र के भीतर संचालन करने के संदर्भ में एनजीटी के न्यायमूर्ति सोनम फिंटसो वांग्दी की पीठ द्वारा सुनवाई की गई।
इस मामले को पहली बार 19 मई, 2016 को उठाया गया था और तब से अवैध प्लास्टिक निर्माण इकाइयों को हटाने और अवैध रूप से संचालित होने वाली अन्य बड़ी इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई के लिए विभिन्न दिशा-निर्देश पारित किए गए थे।
एनजीटी ने निम्नलिखित प्रतिवादियों से 30 दिनों के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया:
14 जुलाई, 2020 को अदालत में मामले की फिर से सुनवाई होगी
3-पश्चिम बंगाल में विभिन्न सरकारी विभागों के बीच तालमेल की कमी के कारण सही से नहीं हो रहा है कचरे का निस्तारण
एनजीटी ने 4 जून को संज्ञान लिया था कि कमारहाटी नगरपालिका अपने आसपास के इलाकों में- बारानगर, साउथ डम डम और नॉर्थ डम डम, के अंतर्गत आने वाले मौजा राजीव नगर के कचरे का निस्तारण करने और नगरपालिका ठोस कचरे के निस्तारण के संबंध में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 को लागू करने में विफल रही है।
जिस जगह पर कूड़ा और नगरपालिका का ठोस कचरा फैका गया था वहां इसके कारण जल प्रदूषण होने की आशंका थी, आगे, वहा पर कूड़े को जलाया भी जा रहा था जिससे गंभीर वायु प्रदूषण हो रहा था, जो स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक था। बेलगोरिया एक्सप्रेस वे के उत्तरी किनारे पर स्थित डंपिंग ग्राउंड से निकलने वाली बदबू और गंध ने न केवल आसपास के लोगों को बल्कि वहां से निकलने वाले राहगीरों को भी संकट में डाल दिया है।
तीन साल के बाद जब इस मामले की अंतिम सुनवाई 8 नवंबर, 2017 को हुई - तब भी संबंधित नगरपालिकाओं के उत्तर संतोषजनक नहीं पाए गए।
एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि रिकॉर्ड के आधार पर महानगरपालिकाओं, कोलकाता महानगर विकास प्राधिकरण और नगरपालिका मामलों के विभाग, पश्चिम बंगाल के बीच तालमेल की कमी का पता चलता है।
एनजीटी ने निर्देश दिया कि इस मुद्दे से निपटने के लिए सभी आवश्यक कार्य ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार पूरे किए जाने चाहिए। पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को डंपिंग ग्राउंड के संदर्भ में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के कार्यान्वयन के संबंध में वर्तमान स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है।