पानी और स्वच्छता जैसे अहम मुद्दे के लिए 75 फीसदी देशों के पास नहीं है पर्याप्त धन

2030 तक केवल एक-चौथाई देश ही साफ-सफाई के लिए तय लक्ष्यों को हासिल कर पाएंगे। वहीं 55 फीसदी देश दशक के अंत तक साफ पानी जैसे अहम मुद्दे के लक्ष्य को हासिल करने के ढर्रे पर नहीं हैं
सभी के लिए सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता है; फोटो: विकास चौधरी/ सीएसई
सभी के लिए सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता है; फोटो: विकास चौधरी/ सीएसई
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साफ पानी और स्वच्छता यह दोनों मुद्दे कितने अहम हैं, इसका अंदाजा कोविड-19 महामारी में सभी को हो गया था। लेकिन इसके बावजूद आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 2030 तक केवल एक-चौथाई देश ही अपने द्वारा तय साफ-सफाई के लक्ष्यों को हासिल कर पाएंगे। वहीं 55 फीसदी देश इस दशक के अंत तक साफ पानी जैसे अहम मुद्दे के लक्ष्य को हासिल करने के ढर्रे पर नहीं हैं।

यह जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और यूएन वाटर द्वारा जारी नई रिपोर्ट “ग्लोबल एनालिसिस एंड असेसमेंट ऑफ सैनिटेशन एंड ड्रिंकिंग वाटर (ग्लास) 2022” में सामने आई है। इस रिपोर्ट में 120 से ज्यादा देशों में जल, साफ-सफाई और स्वच्छता संबंधी सेवाओं की पहुंच और सुलभता की पड़ताल की गई है।

रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उनके अनुसार जहां एक तरफ कुछ साफ पानी और स्वच्छता के लिए दिए जा रहे बजट में बढ़ोतरी की है। वहीं 75 प्रतिशत से ज्यादा देशों के पास पानी और साफ-सफाई जैसे अहम मुद्दे से जुड़ी योजनाओं और रणनीतियों को लागू करने के लिए पर्याप्त धन नहीं है।

गौरतलब है कि धरती पर सबके लिए साफ पानी और स्वच्छता तक पहुंच, सतत विकास के लिए निर्धारित 17 लक्ष्यों (एसडीजी) में से एक है। इसको हासिल करने के लिए 2030 तक की समय सीमा तय की गई है।

इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है कि, "हम एक तात्कालिक संकट का सामना कर रहे हैं। साफ पानी, स्वच्छता और साफ-सफाई तक सीमित पहुंच के चलते हर साल लाखों जिंदगियां चली जाती है।”

पानी और स्वच्छता पर मंडराता जलवायु परिवर्तन का खतरा

उन्होंने जलवायु संकट को उजागर करते हुए बताया कि जलवायु से जुड़ी मौसम की चरम घटनाओं की बढ़ती संख्या और तीव्रता साफ पानी और स्वच्छता सम्बन्धी सेवाओं को लोगों तक पहुंचाने में बाधा बन रही है।

इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उनके अनुसार ज्यादातर देशों की राष्ट्रीय नीतियों और योजनाओं में ना तो साफ पानी और स्वच्छता संबंधी सेवाओं पर जलवायु परिवर्तन के जोखिम को ध्यान में रखा गया है, और न ही इनकी प्रबंधन प्रणालियों व तकनीक को जलवायु सुदृढ़ बनाने पर जोर दिया गया है।

अध्ययन किए गए केवल दो-तिहाई देशों ने ही उन उपायों को लागू किया है जोकि जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित आबादी तक पहुंचने पर केन्द्रित हैं। वहीं केवल एक तिहाई इसमें होते विकास को मॉनिटर करते हैं या उसके लिए धन आबंटित कर रहे हैं।

ऐसे में रिपोर्ट का कहना है कि इन देशों को पानी, साफ-सफाई और स्वच्छता जैसे लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपने प्रयासों में तेजी लानी होगी। रिपोर्ट में सभी देशों और  हितधारकों से सशक्त प्रशासन, वित्त-पोषण, निगरानी, ​​ नियंत्रण और क्षमता विकास की मदद से साफ पानी और स्वच्छता संबंधी सेवाओं के लिए समर्थन बढ़ाने का आहवान किया है।

इस रिपोर्ट में जो आंकड़े और निष्कर्ष सामने आए हैं उन्हें संयुक्त राष्ट्र की मार्च 2023 में होने वाली वाटर कांफ्रेंस में पेश किया जाएगा। देखा जाए तो 50 वर्षों में यह पहला मौका है जब अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा पानी और साफ-सफाई के मुद्दे पर हुई प्रगति की समीक्षा के साथ-साथ नए सिरे से कार्रवाई करने का संकल्प लिया जाएगा। 

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