कैसे हुआ हिमालय के विशाल पर्वतों का निर्माण, वैज्ञानिकों ने पता लगाया

अध्ययनकर्ताओं ने आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए हिमालय पर्वतों के निर्माण की पूरी प्रक्रिया के बारे में पता लगाया है।
Photo :Wikimedia Commons,  Mount Everest
Photo :Wikimedia Commons, Mount Everest
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पहाड़ कैसे और कब विकसित होते हैं? पर्वतों का निर्माण करोड़ों साल के अंतराल में बहुत धीरे-धीरे होता है। एक टेक्टोनिक प्लेट नीचे से धीरे-धीरे तब तक धक्का देती है, जब तक कि एक पर्वत श्रृंखला विकसित नहीं हो जाती है। बेशक, यह सब बहुत सरल लगता है, पर इतना आसान भी नहीं है। उदाहरण के लिए, कटाव और भूकंप जैसी प्रक्रियाएं पहाड़ों के बढ़ने के तरीके को प्रभावित करती हैं।

हिमालय क्षेत्र में बड़े भूकंपों का अनुभव होता है, जो हिमालय और इसके निकट रहने वाली घनी आबादी दोनों के लिए खतरनाक है। अभी तक इन क्षेत्रों में कई भूकंप आ चुके हैं, जिनमें 2015 में नेपाल में आया 7.8 तीव्रता वाल गोरखा भूकंप, 2005 में कश्मीर आया 7.6 तीव्रता, 1950 में असम में 8.5-  8.7 तीव्रता, 1934 में बिहार-नेपाल में आया 8.4 तीव्रता, 1905 में कांगड़ा में आया 7.8 तीव्रता, 1897 असम-शिलांग पठार 8.2-8.3 तीव्रता का भूकंप शामिल हैं।

हालांकि, बड़े हिमालयी भूकंपों में लंबे समय तक फिर से आने का समय अंतराल सैकड़ों सालों का होता हैं, सीमित यंत्रों से लिए गए रिकॉर्ड हमारी वैज्ञानिक समझ में बड़ी कमी छोड़ देता है, जिससे इस बात का पता लगाना कठिन हो जाता है कि भूकंप के खतरों से यह किस तरह लंबे समय तक जुड़ा रहता है और इससे कैसे निपटा जाएं।

हिमालय के 200 से अधिक अध्ययनों के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए, कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (कैलटेक) के पोस्टडॉक्टोरल फेलो लुका दाल जिलियो के नेतृत्व में एक टीम ने पर्वतों के निर्माण की पूरी प्रक्रिया के बारे में पता लगाया है। दाल जिलियो और उनके सहयोगियों ने भूकंप के दौरान पहाड़ों के हिलने के सेकंड से लेकर लाखों वर्षों तक चलने वाली लंबी अवधि की टेक्टॉनिक प्रक्रियाओं के बारे में पता लगाया है। यह अध्ययन नेचर रिव्यूज़ अर्थ एंड एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

दाल जिलियो ने कहा कि जब हम पहाड़ों की अवधारणा के बारे में सोचते हैं, तो हमें वास्तव में लगातार बदलने वाली चीजों के बारे में सोचने की ज़रूरत होती है और वे बदलाव अलग-अलग समय में अलग-अलग पैमानों के आधार पर होते हैं।

दाल जिलियो कहते है कि शोधकर्ताओं ने पाया कि घटनाओं के माध्यम से हिमालय में पहाड़ बनने के चक्र बढ़ते है, जिससे उनकी सीमा बढ़ती और घटती रहती है। इससे ऐसा लगता है जैसे पहाड़ सांस ले रहे हों। हालांकि, लाखों वर्षों में बढ़ती घटनाएं भूकंप के दौरान तेजी से कम होने वाली घटनाओं की तुलना में बड़ी होती हैं। लंबे समय तक चलने वाली यह प्रक्रिया हिमालयी रेंज के विकास की ओर ले जाती है।

शोधकर्ताओं ने भूगर्भीय और भूभौतिकीय आंकड़ों पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें 2015 में नेपाल में आया विनाशकारी गोरखा भूकंप और उसके पीछे के कारणों की ओर इशारा करता है। उदाहरण के लिए, उपग्रहों से रडार छवियों का उपयोग करते हुए, वैज्ञानिकों ने शुरुआत में पाया कि 7.8 तीव्रता के भूकंप आने के दौरान माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में लगभग एक मीटर तक की कमी आई। लेकिन उस घटना के महीनों बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि पहाड़ ने कम हुई ऊंचाई का लगभग 60 प्रतिशत पुन: प्राप्त कर लिया था।

दाल जिलियो और उनके सहयोगियों ने हिमालय से पिछले कई दशकों के प्रेक्षणों पर ध्यान दिया, जैसे कि विभिन्न स्थानों पर पपड़ी की मोटाई और मुख्य हिमालयन फॉल्ट की ज्यामिति के बारे में जांच की जिसमें पहाड़ों के आधार पर लगभग 2,000 किलोमीटर लंबा दोष पाया गया।

दाल जिलियो ने हिमालय में आने वाले भूकंपों का अध्ययन करने के लिए मॉडल का भी उपयोग किया है। उन्होंने कहा कि  हमारा मॉडल हमें यह समझने में मदद करता है कि पहाड़ आंशिक रूप से क्यों टूटा और भविष्य के लिए संभावित परिदृश्य क्या हैं।

हिमालय कैसे विकसित होता है और समय के साथ कैसे बदलता है और भूकंप चक्र कैसे प्रभावित होता है, इसकी समझ विकसित करना विशेष रूप से मुख्य हिमालयन फॉल्ट की गतिविधि और बड़े भूकंपों के उत्पंन होने के इतिहास को दिखाता है।

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