तकनीक: वैज्ञानिकों ने केले के छिलके से निकाला हाइड्रोजन

1 किलो सूखे बायोमास से लगभग 100 लीटर हाइड्रोजन और 330 ग्राम बायोचार का उत्पादन हो सकता है
तकनीक:  वैज्ञानिकों ने केले के छिलके से निकाला हाइड्रोजन
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दुनिया भर में जैसे-जैसे ऊर्जा की मांग बढ़ रही है, वैसे-वैसे हमारी जीवाश्म ईंधन की खपत भी बढ़ रही है। जिसके कारण पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी वृद्धि हो रही है। इसके समाधान के लिए, वैज्ञानिक ऊर्जा के वैकल्पिक, नवीकरणीय स्रोतों की खोज कर रहे हैं।

कार्बनिक अपशिष्ट, या पौधों और जानवरों के "बायोमास" से हाइड्रोजन का उत्पादन किया जा सकता है। बायोमास भी वातावरण से सीओ2 को अवशोषित कर संग्रहीत करता है। जबकि बायोमास अपघटन से उत्सर्जन या ग्रीनहाउस गैसों को हटाने का एक तरीका भी हो सकता है। बायोमास से अधिकतम ऊर्जा में किस तरह हासिल की जाए यह एक बड़ा सवाल है।

बायोमास को गैस में बदलना

बायोमास को ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए वर्तमान में दो मुख्य तरीके अपनाए जाते हैं। जिनमें से पहला बायोमास का गैसीकरण या गैस में बदलना और दूसरा पायरोलिसिस है। गैस मैं बदलने के लिए  ठोस या तरल बायोमास को लगभग 1000 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर गर्म किया जाता है, जो इसे गैस और ठोस यौगिकों में परिवर्तित करता है। इस गैस को "सिनगैस" कहा जाता है जबकि ठोस को "बायोचार" कहा जाता है।

यहां बताते चलें कि बायोचार पेड़-पौधों से बना पदार्थ है, जो चारकोल के रूप में वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने के साधन के रूप में मिट्टी में जमा  होता है। इसका उपयोग कृषि में खाद के रूप में भी किया जाता है।

सिनगैस हाइड्रोजन, मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य हाइड्रोकार्बन का मिश्रण है। ये वही हैं जो बिजली पैदा करने के लिए "जैव ईंधन" के रूप में उपयोग किए जाते हैं। दूसरी ओर, बायोचार को अक्सर ठोस कार्बन अपशिष्ट के रूप में माना जाता है, हालांकि इसका उपयोग कृषि में उपयोग किया जा सकता है।

बायोमास पायरोलिसिस

दूसरी विधि, बायोमास पायरोलिसिस, गैसीकरण की तरह है, सिवाय इसके कि बायोमास को कम तापमान पर, 400 से 800 डिग्री सेल्सियस के बीच और एक निष्क्रिय वातावरण में 5 बार तक के दबाव में गर्म किया जाता है। पायरोलिसिस तीन प्रकार के होते हैं: पारंपरिक, तेज और फ्लैश पायरोलिसिस। तीनों में से, पहले दो में सबसे अधिक समय लगता है।

फ्लैश पायरोलिसिस 600 डिग्री सेल्सियस पर होता है और सबसे अधिक सिनगैस पैदा करता है और इसका निवास समय सबसे कम होता है। दुर्भाग्य से, इसे विशेष रिएक्टरों की भी आवश्यकता है जो उच्च तापमान और दबाव को संभाल सकें।

हाइड्रोजन उत्पादन के लिए केले छिलकों का उपयोग

अब इकोले पॉलीटेक्निक फेडरल डे लॉजेन (ईपीएफएल) के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज में प्रोफेसर ह्यूबर्ट जिरॉल्ट के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने बायोमास फोटो-पायरोलिसिस के लिए एक नई विधि विकसित की है। जो न केवल मूल्यवान सिनगैस पैदा करती है, बल्कि ठोस कार्बन का बायोचार भी बनाती है जिसे पुन: उपयोग किया जा सकता है।

यह विधि क्सीनन लैंप का उपयोग करके फ्लैश लाइट पायरोलिसिस करती है, जो आमतौर पर मुद्रित इलेक्ट्रॉनिक के लिए धातु की स्याही को ठीक करने के लिए उपयोग की जाती है। जिरॉल्ट की टीम ने पिछले कुछ वर्षों में नैनोकणों को संश्लेषित करने जैसे अन्य उद्देश्यों के लिए भी इस प्रणाली का उपयोग किया है।

दीपक की सफेद फ्लैश लाइट एक शक्ति शाली ऊर्जा स्रोत के साथ-साथ कंपन प्रदान करती है जो फोटो-थर्मल रासायनिक प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा देती हैं। यह एक शक्तिशाली फ्लैश लाइट शॉट उत्पन्न करना है, जिसे बायोमास अवशोषित करता है। जो तत्काल एक फोटोथर्मल बायोमास रूपांतरण को सिनगैस और बायोचार में बदलने में मदद करता है।

इस चमकती तकनीक का उपयोग बायोमास के विभिन्न स्रोतों पर किया गया था। केले के छिलके, मकई के दाने, संतरे के छिलके, कॉफी बीन्स और नारियल के छिलके, जिनमें से सभी को शुरू में 24 घंटे के लिए 105 डिग्री सेल्सियस पर सुखाया गया और फिर पीसकर एक पतले पाउडर में बदला गया।

पाउडर को तब स्टेनलेस स्टील के रिएक्टर में एक मानक कांच की खिड़की के साथ परिवेश के दबाव में और एक निष्क्रिय वातावरण में रखा गया था। क्सीनन लैंप चमकता है और पूरी ऊर्जा के बदलने की प्रक्रिया कुछ मिली सेकंड में पूरी हो जाती है।

अध्ययनकर्ता भावना नागर कहती हैं कि प्रत्येक 1 किलो सूखे बायोमास से लगभग 100 लीटर हाइड्रोजन और 330 ग्राम बायोचार का उत्पादन हो सकता है। यह सूखे केले के छिलके के द्रव्यमान का 33 वाट फीसदी तक है। इस विधि में प्रति किलो सूखे बायोमास से परिकलित ऊर्जा 4.09 मेगाजूल (एमजे) प्राप्त हुई।

इस पद्धति में जो बात सामने आती है, वह यह है कि इसके अंतिम उत्पाद, हाइड्रोजन और ठोस-कार्बन बायोचार दोनों ही मूल्यवान हैं। हाइड्रोजन का उपयोग स्वच्छ ईंधन के रूप में किया जा सकता है, जबकि कार्बन बायोचार को उर्वरक के रूप में उपयोग किया जा सकता है या इसका उपयोग प्रवाहकीय इलेक्ट्रोड के निर्माण के लिए किया जा सकता है।

नागर कहती हैं कि हमारे काम की प्रासंगिकता इस तथ्य से और बढ़ जाती है कि हम परोक्ष रूप से वर्षों से वातावरण से सीओ2 को जमा कर रहे हैं। हमने क्सीनन फ्लैश लैंप का उपयोग करके इसे कुछ ही समय में उपयोगी उत्पादों में बदल दिया। यह शोध ‘केमिकल साइंस’ में प्रकाशित हुआ है।

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