वैज्ञानिकों ने खोजा पानी से हाइड्रोजन ऊर्जा बनाने का सस्ता तरीका 

यूएनएसडब्ल्यू की अगुवाई वाली वैज्ञानिकों की टीम ने हाइड्रोजन ऊर्जा को बनाने के लिए बहुत सस्ता और टिकाऊ तरीका खोज निकाला है
Photo credit: Wikipedia
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हाइड्रोजन से चलने वाली कारों की संख्या जल्द ही बढ़ सकती हैं। यूएनएसडब्ल्यू की अगुवाई वाली वैज्ञानिकों की टीम ने हाइड्रोजन ऊर्जा को बनाने के लिए बहुत सस्ता और टिकाऊ तरीका खोज निकाला है। प्रदूषण की मार झेल रहें भारत के लिए यह खोज अत्यंत महत्वपूर्ण  हो सकती है।

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी स्थित, न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय (यूएनएसडब्ल्यू), ग्रिफिथ विश्वविद्यालय और स्वाइनबर्न विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजन को पानी से अलग करके दिखाया। वैज्ञानिकों द्वारा हाइड्रोजन को कैप्चर करने के लिए पानी में से ऑक्सीजन को अलग किया गया। इसे लोहा और निकल जैसी कम लागत वाली धातुओं को उत्प्रेरक के रूप में उपयोग करके प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन को निकालने में बहुत कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह शोध नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

इस प्रक्रिया में लोहा और निकल ऐसी धातुओं का उपयोग होता है, जो पृथ्वी पर अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। अब तक 'वॉटर-स्प्लिटिंग' प्रक्रिया में कीमती धातुओं जैसे रूथेनियम, प्लैटिनम और इरिडियम का उपयोग होता था। अब इनकी जगह लोहा और निकल जैसी सस्ती धातु का उपयोग होगा, जो अब इस प्रक्रिया में उत्प्रेरक के रूप में काम आएंगे।  'वॉटर-स्प्लिटिंग': हाइड्रोजन को पानी से अलग करने की प्रक्रिया है।

यूएनएसडब्ल्यू स्कूल ऑफ केमिस्ट्री के प्रोफेसर चुआन झाओ कहते हैं कि पानी के विभाजन में, दो इलेक्ट्रोड पानी पर एक इलेक्ट्रिक चार्ज लगाते हैं जो हाइड्रोजन को ऑक्सीजन से अलग कर देता है और इसे ऊर्जा के ईंधन सेल के रूप में उपयोग किया जाता है। 

झाओ कहते हैं कि इस प्रक्रिया में ऊर्जा की खपत बहुत कम होती है। इस उत्प्रेरक पर एक छोटा नैनो-स्केल इंटरफ़ेस होता है जहां लोहे और निकल परमाणु स्तर पर मिलते हैं, जो पानी के विभाजन के लिए एक सक्रिय भाग बन जाता है। यह वह भाग है जहां हाइड्रोजन को ऑक्सीजन से विभाजित किया जा सकता है और ईंधन के रूप में कैप्चर किया जा सकता है। ऑक्सीजन को वातावरण में छोड़ा दिया जाता है।

हालांकि, प्रो झाओ का कहना है कि अपने दम पर, लोहे और निकल हाइड्रोजन उत्पादन के लिए अच्छे उत्प्रेरक नहीं हैं, लेकिन जहां वे नैनोस्केल में शामिल होते हैं उस भाग पर यह सबसे अच्छा काम करते है। नैनोस्केल इंटरफ़ेस मौलिक रूप से इन सामग्रियों के गुणों को बदल देता है। हमारे परिणाम बताते हैं कि निकल-आयरन उत्प्रेरक हाइड्रोजन उत्पादन के लिए प्लैटिनम के समान सक्रिय हो जाता है।

इससे एक अतिरिक्त लाभ यह है कि, निकल-लोहे के इलेक्ट्रोड हाइड्रोजन और ऑक्सीजन उत्पादन दोनों को उत्प्रेरित कर सकते हैं। इसलिए हम सस्ती धातुओं का उपयोग करके उत्पादन लागत को कम कर सकते हैं।

इन धातुओं की कम कीमतों के कारण हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाया जा सकता है। लोहे और निकल की कीमत 9.19 रुपये (0.13 डॉलर) और 1,389.06 रुपये ( 19.65 डॉलर) प्रति किलोग्राम है। इसके विपरीत, रूथेनियम, प्लैटिनम और इरिडियम की कीमत 832.11 रुपये (11.77 डॉलर), 2,978.49 रुपये (42.13 डॉलर) और 4,919.13 रुपये (69.58 डॉलर) प्रति ग्राम है, दूसरे शब्दों में कहें तो यह हजारों गुना अधिक महंगे है।

प्रो झाओ कहते हैं इस तकनीक ने हमारे जीवाश्म ईंधन अर्थव्यवस्था को बदलकर, हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में जाने का बहुत बड़ा रास्ता खोल दिया है। हम हाइड्रोजन का उपयोग एक स्वच्छ ऊर्जा के रूप में कर सकते हैं, जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में है।

प्रो झाओ का कहना है कि यदि पानी के विभाजन की इस तकनीक को और विकसित किया जाए, तो एक दिन पेट्रोल स्टेशनों की तरह हाइड्रोजन ईंधन भरने वाले स्टेशन हो सकते हैं। इस पानी के विभाजन की प्रतिक्रिया से उत्पन्न हाइड्रोजन गैस के साथ आप अपनी कार में हाइड्रोजन ईंधन सेल को भर सकते हैं। लिथियम-बैटरी चालित इलेक्ट्रिक कारों को चार्ज करने में लगने वाले घंटों की तुलना में हाइड्रोजन ईंधन भरने का काम मिनटों में किया जा सकता है।

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