यूरिया के कचरे से हाइड्रोजन बनाने के लिए 70 फीसदी तक कम होगी ऊर्जा की जरूरत

भारत यूरिया उत्पादन में शीर्ष देशों में से एक है और यहां 2019-20 के दौरान 244.55 एलएमटी यूरिया का उत्पादन हुआ
यूरिया के कचरे से हाइड्रोजन बनाने के लिए 70 फीसदी तक कम होगी ऊर्जा की जरूरत
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भारतीय वैज्ञानिकों ने यूरिया के विद्युत अपघटन जिसे इलेक्ट्रोलिसिस भी कहा जाता है, इसकी मदद से एनर्जी एफ्फिसिएंट या ऊर्जा कुशल हाइड्रोजन बनाने का उपकरण तैयार किया है। यूरिया इलेक्ट्रोलिसिस कम लागत वाले हाइड्रोजन उत्पादन के साथ यूरिया से निकलने वाले कचरे के उपचार को निपटाने में अहम भूमिका निभाता है। देश में ऊर्जा उत्पादन के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है, जो फायदेमंद साबित होगा। यूरिया इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा पानी के विद्युत अपघटन (इलेक्ट्रोलिसिस) के माध्यम से होने वाले हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता को 70 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

पानी के  विद्युत अपघटन से ऊर्जा  तथा ऑक्सीजन की उत्पत्ति के स्थान पर यूरिया इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया में  यूरिया का ऑक्सीकरण किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के लिए कम लागत तथा पृथ्वी में काफी मात्रा में निकल (एनआई) आधारित उत्प्रेरक का प्रयोग किया जाता है। यूरिया के ऑक्सीकरण से जुड़ी मुख्य चुनौती उत्प्रेरक की लंबी क्रिया अवधि  को बनाए रखना है। 

सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) के एलेक्स सी, गौरव शुक्ला, मोहम्मद सफीर एनके, और डॉ नीना एस सफीर ने यूरिया के इलेक्ट्रो-ऑक्सीकरण से हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए निकल ऑक्साइड (एनआईओएक्स) आधारित प्रणाली विकसित की है। यहां बताते चलें कि सीईएनएस भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान है।

वैज्ञानिकों ने विद्युत उत्प्रेरकों (इलेक्ट्रोकैटलिस्ट्स) की खोज की है। उन्होंने दिखाया कि सतह के दोषपूर्ण निकेल ऑक्साइड (एनआईओ) और डाई-निकल ट्राईऑक्साइड  एनआई2ओ 3 प्रणाली जिनमें अधिक एनआई3 आयन होते हैं। ये पारंपरिक एनआईओ  की तुलना में अधिक कुशल इलेक्ट्रोकैटलिस्ट हैं।

वैज्ञानिकों ने एनआईओ (ई-एनआईओ) में सतह से खराब या दोषपूर्ण निकेल (एनआई) साइटों का उत्पादन करने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा इलेक्ट्रॉन बीम का उपयोग किया है। अध्ययन से पता चलता है कि ई-एनआईओ यूरिया के अणु के अधिक अवशोषण के कारण यूरिया इलेक्ट्रो-ऑक्सीकरण की प्रत्यक्ष व्यवस्था का उपयोग करता है, जबकि एनआईओ कम क्रिया के साथ अप्रत्यक्ष तंत्र का पक्षधर है।

इसके अलावा, प्रमुख इलेक्ट्रोकैटलिस्ट विष सीओएक्स को पोटेशियम हाइड्रोक्साइड (केओएच) और यूरिया के आणविक अनुपात को बेहतर गति के साथ समायोजित करके हटाया जा सकता है।

शोधकर्ता एलेक्स और गौरव ने कहा कि ई-बीम उपचार विद्युत उत्प्रेरकों (इलेक्ट्रोकैटलिस्ट्स) पर बड़ी मात्रा में उत्पादन करने का एक प्रभावी तरीका है। यह देखा गया कि ये उत्पन्न साइटें यूरिया को प्रभावी ढंग से सोख लेती हैं और प्रत्यक्ष यूरिया इलेक्ट्रो-ऑक्सीडेशन तंत्र (यूओआर) का सहयोग करती हैं।

शोधकर्ता, सफीर ने एक अन्य  एनआई3+ ऑक्साइड सिस्टम डाई-निकल ट्राईऑक्साइड  एनआई2ओ3 पर अध्ययन जारी रखा, जिससे पता चला कि डाईनिकेल ट्राईऑक्साइड  एनआई2ओ3 पर सक्रिय प्रजाति एनआई3+(ओएच)  में किकेल ऑक्साइड (एनआईओ) की तुलना में  अधिक सहनशील है।

अधिक संयोजकता वाले निकेल (एनआई) ऑक्साइड प्रणाली की सक्रिय प्रजातियों का उत्प्रेरक गतिविधि पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यूरिया इलेक्ट्रोलिसिस कम लागत वाले हाइड्रोजन उत्पादन के साथ यूरिया आधारित अपशिष्ट उपचार की दिशा में अधिक उपयोगी है।

भारत यूरिया उत्पादन में शीर्ष देशों में से एक है, और यहां 2019-20 के दौरान 244.55 एलएमटी यूरिया का उत्पादन किया। नाइट्रोजन युक्त उर्वरक उद्योग अपशिष्ट के रूप में अमोनिया और यूरिया की उच्च सांद्रता का उत्पादन करते हैं। इसका उपयोग हमारे देश में ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जा सकता है। यह अध्ययन 'इलेक्ट्रो चिमिका एक्टा' और 'जर्नल ऑफ मैटेरियल्स केमिस्ट्री ए' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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