भारतीय वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजन उत्पादन को तीन गुना बढ़ाने की तकनीक खोजी

इस तकनीक में 10 मिनट के लिए चुंबकीय क्षेत्र का एक बार संपर्क कराने से 45 मिनट से अधिक समय तक उच्च दर के साथ हाइड्रोजन उत्पादन किया जा सकती है
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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भारतीय शोधकर्ताओं ने पानी से हाइड्रोजन ईंधन उत्पादन को तीन गुना बढ़ाने की तकनीक खोजी है। इस तरह के ऊर्जा उत्पादन में लागत कम लगने के साथ-साथ यह पर्यावरण के अनुकूल भी है। शोधकर्ताओं ने कहा कि यह तकनीक भविष्य में हाइड्रोजन ईंधन की दिशा में मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

एक ईंधन के रूप में, हाइड्रोजन एक स्वच्छ और टिकाऊ अर्थव्यवस्था की दिशा में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। कोयले और गैसोलीन जैसे प्रदूषण फैलाने वाले ऊर्जा स्रोतों की तुलना में यह लगभग 3 गुना अधिक अच्छा है। ऊर्जा पैदा करने के लिए हाइड्रोजन के दहन से पानी पैदा होता है और इस प्रकार यह पूरी तरह से प्रदूषण विहीन है।

पृथ्वी के वायुमंडल (350 पीपीबीवी) में आणविक हाइड्रोजन की कमी के चलते, हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए पानी का विद्युत-क्षेत्र में विघटन एक आकर्षक तरीका है। हालांकि, ऐसे इलेक्ट्रोलिसिस के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है और इसमें हाइड्रोजन उत्पादन की दर भी धीमी होती है।

प्लैटिनम और इरिडियम-आधारित उत्प्रेरक के महंगे  होने के चलने इनका उपयोग व्यवसायीकरण के लिए नहीं किया जा सकता है। इसलिए, 'ग्रीन-हाइड्रोजन-अर्थव्यवस्था' को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे तरीकों की जरूरत है जो ऊर्जा लागत और सामग्री लागत को कम करते हैं और साथ ही साथ हाइड्रोजन उत्पादन दर में सुधार करते हैं।

प्रो. सी. सुब्रमण्यम की अगुवाई में आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं की एक टीम ने इस कारनामे को किया है। इसमें बाहरी चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति में पानी की इलेक्ट्रोलिसिस शामिल है। यह विधि उसी प्रणाली की तरह है जो 1 मिली हाइड्रोजन गैस का उत्पादन करती है, जबकि नया तरीका उसी समय में 3 मिली हाइड्रोजन का उत्पादन करता है साथ ही इसके लिए 19 फीसदी कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह उत्प्रेरक साइट पर विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों को सह क्रियात्मक रूप से जोड़कर प्राप्त किया जाता है।

इलेक्ट्रोलिसिस या इलेक्ट्रोलाइजर पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग करने के लिए बिजली का उपयोग करता है।

यह आसान तरीका किसी भी मौजूदा इलेक्ट्रोलाइजर को बाहरी चुंबक (मैग्नेट) के साथ डिजाइन में भारी बदलाव के बिना ऐसा करने की क्षमता प्रदान करता है। जिससे एच 2 उत्पादन की ऊर्जा दक्षता में वृद्धि होती है।

इलेक्ट्रो कैटलिटिक सामग्री जिसमें कोबाल्ट-ऑक्साइड नैनोक्यूब जो हार्ड-कार्बन आधारित नैनोस्ट्रक्चर कार्बन फ्लोरेट्स पर फैले हुए होते हैं, इस प्रभाव को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है।  इसे तकनीकी मिशन में ऊर्जा भंडारण कार्यक्रम के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी सामग्री विभाग की सहायता से विकसित किया गया था। यह डीएसटी-एसईआरबी की सहायता से मैग्नेटो- इलेक्ट्रो कैटालिस्ट के लिए उपयोग में लाया गया था।

कार्बन और कोबाल्ट ऑक्साइड के बीच का प्रभाव मैग्नेटो- इलेक्ट्रो कैटालिस्ट के लिए महत्वपूर्ण है। यह फायदेमंद है क्योंकि यह एक ऐसी प्रणाली बनाता है जिसमें बाहरी चुंबकीय क्षेत्र की निरंतर उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है और इसमें लंबे समय तक चुंबकत्व को बनाए रखने क्षमता होती है। इसकी सहायता से वर्तमान घनत्व में 650 फीसदी की वृद्धि, की जा सकती है, जिसके लिए 19 फीसदी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसमें हाइड्रोजन उत्पादन दर में 3 गुना वृद्धि होती है, जो अपने आप में एक अनूठा तरीका है।

इस तकनीक में 10 मिनट के लिए चुंबकीय क्षेत्र का एक बार सम्पर्क कराने से 45 मिनट से अधिक समय तक उच्च दर के साथ हाइड्रोजन उत्पादन किया जा सकती है, साथ ही 19 फीसदी ऊर्जा भी कम लगती है।

प्रो. सुब्रमण्यम कहते हैं कि बाहरी चुंबकीय क्षेत्र का रुक-रुक कर होने वाले ऊर्जा के उपयोग से हाइड्रोजन उत्पादन करने के लिए एक नई दिशा प्रदान करता है। इस उद्देश्य के लिए अन्य उत्प्रेरकों की भी खोज की जा सकती है। जयता साहा और रानादेब बॉल ने कहा "0.5 एनएम 3 / एच क्षमता के एक बुनियादी इलेक्ट्रोलाइज़र सेल के उत्प्रेरक को बदलकर और चुंबकीय क्षेत्र की आपूर्ति करके तुरंत 1.5 एनएम 3 / एच क्षमता में सुधार किया जा सकता है। 

यह सब देखने के बाद कि यह विधि कठिन नहीं है, टीम अब टीआरएल स्तर को बढ़ाने और इसके सफल व्यवसायीकरण को सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है।

प्रो. सुब्रमण्यम कहते हैं हाइड्रोजन आधारित अर्थव्यवस्था के महत्व को देखते हुए, हमारा लक्ष्य परियोजना को मिशन-मोड में लागू करना है और स्वदेशी मैग्नेटो-इलेक्ट्रोलाइटिक हाइड्रोजन जनरेटर का उपयोग करना है। उन्होंने कहा कि यदि प्रयास सफल होते हैं, तो हम भविष्य में पर्यावरण के अनुकूल ईंधन, हाइड्रोजन, पेट्रोलियम, डीजल और कंप्रेस्ड प्राकृतिक गैस (सीएनजी) की जगह ले सकते हैं।

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