जानिए हर साल ज्यादा चमकदार होता रात का आकाश मानवजाति के लिए अच्छा है या खराब

प्रकाश प्रदूषण का आलम यह है कि दुनिया की कई जगहों पर आकाश में रात्रि के समय नग्न आंखों से दिखाई देने वाले तारों की संख्या पिछले 20 वर्षों से भी कम समय में आधे से कम हो गई है
फोटो: लेसलिन लियू/ पिक्साबे
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आप में से बहुत से लोगों ने रात के समय खुले आकाश में तारों को निहारा होगा। रात में टिमटिमाते तारों से सजा आसमान सहज ही हमारा ध्यान आकर्षित कर लेता है। लेकिन क्या हो यदि आसमान में यह टिमटिमाते तारे हमारी आंखों से नजर ही न आएं। भले ही बहुत से लोग शायद इस बात से इत्तेफाक न रखते हों लेकिन यह सच है कि हमारा आसमान बहुत तेजी से प्रकाश प्रदूषण की चपेट में आ रहा है।

आंकड़े दर्शाते हैं कि हर साल रात के समय हमारा आकाश 9.6 फीसदी की दर से ज्यादा चमकदार हो रहा है। यदि देखा जाए तो जिस रफ्तार से व्योम चमकदार हो रहा है उसके चलते हर आठ वर्षों में इसकी चमक करीब दोगुनी हो रही है।

ऐसे में यदि इसके प्रभावों की बात करें तो वो अभी तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार रात्रि के समय नभ में टिमटिमाने वाले तारे इस बढ़ते कृत्रिम प्रकाश से हमारी आंखों से ओझल होते जा रहे हैं।

बढ़ते प्रकाश प्रदूषण का आलम यह है कि दुनिया की कई जगहों पर आकाश में रात्रि के समय नग्न आंखों से दिखाई देने वाले तारों की संख्या पिछले 20 वर्षों से भी कम समय में आधे से कम हो गई है।

गौरतलब है कि यह जानकारी दुनिया भर में 51,351 सिटीजन साइंटिस्टस द्वारा 2011 से 2022 के बीच नग्न आंखों से रात्रि के समय किए आकाशीय अवलोकनों और उनके आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। इस विश्लेषण के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित हुए हैं। जो दर्शाते हैं कि रात के समय बढ़ता कृत्रिम प्रकाश हमारे आकाश को हर साल 9.6 फीसदी की दर से उज्जवल बना रहा है।

पर्यावरण और जीवों के व्यवहार को भी कर रहा है प्रभावित

वैज्ञानिकों की मानें तो रात्रि आकाश में बढ़ते प्रकाश प्रदूषण की यह दर और आता बदलाव उपग्रहों से प्राप्त पिछले आंकड़ों की तुलना में कहीं ज्यादा तेज है। ऐसे में इसका हमारे और धरती पर रहने वाले अन्य जीवों के जीवन और पर्यावरण पर क्या असर होगा यह रिसर्च का विषय है।

गौरतलब है कि जहां उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक 2012 से 2016 के बीच हर साल वैश्विक स्तर पर प्रकाश प्रदूषण में 2.2 फीसदी की दर से वृद्धि हो रही है। वहीं 1992 से 2017 के बीच इसकी दर 1.6 फीसदी प्रतिवर्ष मापी गई थी।

इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर द्वारा किए हालिया अध्ययन से पता चला है कि बढ़ता प्रकाश प्रदूषण जीवों के देखने की क्षमता को विचित्र तरह से प्रभावित कर रहा है। पता चला है कि समय के साथ कृत्रिम प्रकाश के रंगों और तीव्रता में भी परिवर्तन आया है, जिसका जीवों की दृष्टि पर जटिल और अप्रत्याशित प्रभाव पड़ रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह कृत्रिम प्रकाश उन जीवों को अधिक प्रभावित कर सकता है, जो अपने व्यवहार के लिए रात्रि में देख पाने की क्षमता पर भरोसा करते हैं। जंगलों में शिकार और शिकारियों के आपसी संबंध भी इससे प्रभावित हुए हैं।

पता चला है कि यह बदलाव पौधों, जानवरों और उनके आपसी संबंधों पर भी असर डाल रहा है। अध्ययनों से यह भी सामने आया है कि रात के समय बढ़ता प्रकाश प्रदूषण मछलियों को भी प्रभावित कर रहा है।

शोध से पता चला है कि यह बढ़ता कृत्रिम प्रकाश पर्यावरण के साथ-साथ तारों और आकाशीय अवलोकनों को भी प्रभावित कर रहा है। इतना ही नहीं शोध में यह भी पता चला है कि इसका प्रभाव मानव संस्कृति पर भी पड़ रहा है।

बढ़ते प्रकाश प्रदूषण और ऊर्जा उपयोग को देखते हुए 2010 में प्रकाश के लिए बल्ब को एलईडी से बदला गया था। यही वजह है कि सामान्य प्रकाश व्यवस्था के लिए वैश्विक एलईडी बाजार की हिस्सेदारी 2011 में एक फीसदी से बढ़कर 2019 में 47 फीसदी हो गई है।

हालांकि हाल ही में किए एक अध्ययन में एलईडी द्वारा पैदा हो सफेद उत्सर्जन को लेकर चिंता जताई गई थी। शोध के मुताबिक ब्लू लाइटिंग, मनुष्यों और अन्य जानवरों के शरीर में मेलाटॉनिन हार्मोन के उत्पादन को प्रभावित कर सकती है। यह हार्मोन मस्तिष्क में पीनियल ग्रंथि द्वारा निर्मित होता है। प्रकाश इस हार्मोन का दुश्मन होता है, क्योंकि उसकी वजह से इस हार्मोन के उत्पादन पर असर पड़ता है। ऐसे में तकनीकों के साथ-साथ रात्रि के समय इस बढ़ते प्रकाश प्रदूषण को सीमित करना भी जरूरी है।

ऐसे में वैज्ञानिकों का कहना है कि जहां तक मुमकिन हो सके रात्रि में कृत्रिम प्रकाश के उपयोग और उसकी तीव्रता को सीमित करने के प्रयास किए जाने चाहिए, जिससे जीवों पर पड़ने वाले इसके प्रभावों को सीमित किया जा सके।

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