2500 साल पहले विनाशकारी भूकंप ने बदल दिया था गंगा का मार्ग, क्या भविष्य में फिर घट सकती है ऐसी घटना

यह भी अंदेशा जताया गया है कि यदि फिर से ऐसा कोई भूकंप आता है तो उससे 14 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं
बांग्लादेश में गंगा की सहायक नदी पद्मा; फोटो: आईस्टॉक
बांग्लादेश में गंगा की सहायक नदी पद्मा; फोटो: आईस्टॉक
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आज से करीब 2500 साल पहले आए विनाशकारी भूकंप ने गंगा का प्रवाह मार्ग अचानक से बदल दिया था। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि भविष्य में ऐसा भूकंप गंगा के मार्ग को फिर से बदल सकता है।

गौरतलब है कि गंगा दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है। जो पश्चिमी हिमालय से पूर्व की ओर यात्रा करते हुए ढाई हजार किलोमीटर से भी ज्यादा का सफर करती है और अंत में बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। अपनी इस लम्बी यात्रा के दौरान यह ब्रह्मपुत्र, मेघना सहित अन्य प्रमुख नदियों के साथ मिलकर जलमार्गों की भूलभुलैया बनाती है।  

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि करीब ढाई हजार साल पहले आए इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर सात से आठ के बीच रही होगी। वैज्ञानिकों ने यह भी अंदेशा जताया है कि यदि भविष्य में ऐसी विनाशकारी घटना फिर घटती है, तो उससे करीब 14 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं।

वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि इस विनाशकारी भूकंप ने वर्तमान बांग्लादेश में नदी के मुख्य मार्ग को बदल दिया, जो आज भी बड़े भूकंपों के प्रति बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। घनी आबादी वाला इस क्षेत्र में किसी भी बड़े भूकंप के विनाशकारी प्रभाव सामने आ सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने इस बात की भी पुष्टि की है कि नदी मार्ग में इतना बड़ा बदलाव पहले कभी नहीं देखा गया। इस बारे में अमेरिका के कोलंबिया क्लाइमेट स्कूल की लामोंट-डोहर्टी अर्थ आब्जर्वेटरी के भूविज्ञानी और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता माइकल स्टेकलर ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा कि, "मुझे नहीं लगता कि हमने कहीं भी कभी इतना बड़ा भूकंप देखा है।"

अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे 17 जून 2024 को अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं।

वैज्ञानिकों ने नदी मार्ग में होने वाले कई बदलावों को दर्ज किया है। बता दें कि इन बदलावों को उच्छेदन कहा जाता है। इनमें से कुछ बदलाव भूकंप के कारण भी होते हैं। प्रमुख डेल्टाओं से होकर बहने वाली अन्य नदियों की तरह ही गंगा भी अक्सर प्राकृतिक रूप से भूकंप के बिना भी अपना मार्ग बदलती रही है।

ऊपर की ओर से बहकर आने वाली तलछट चैनल में जमा होती जाती है, जिससे यह हिस्सा आसपास के बाढ़ के मैदान से ऊपर उठ जाता है। यह तब तक बढ़ता है जब तक पानी इसे तोड़कर अपने लिए एक नया रास्ता नहीं बना लेता। हालांकि यह घटना एकाएक घटित नहीं होती। ऐसा होने में वर्षों या दशकों का समय लग सकता है। लेकिन स्टेकलर के मुताबिक भूकंप से ऐसा तुरंत हो सकता है।

अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता और नीदरलैंड के वेगेनिंगन विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर एलिजाबेथ लिज चेम्बरलेन का इस बारे में कहना है कि, “गंगा जैसी विशाल नदी के मामले में पहले इस बात की पुष्टि नहीं हुई थी कि भूकंप गंगा जैसी विशाल नदियों के डेल्टाओं में कटाव की वजह बन सकता है।“

उपग्रह से प्राप्त चित्रों की मदद से शोधकर्ताओं ने ढाका से करीब 100 किलोमीटर दक्षिण में गंगा नदी की मुख्य धारा की पहचान की है। यह निचला इलाका करीब डेढ़ किलोमीटर चौड़ा है, और करीब 100 किलोमीटर तक मौजूदा नदी के समानांतर चलता है। कीचड़ से भरा यह क्षेत्र अकसर बाढ़ के पानी से भर जाता है। इसका मुख्य रूप से उपयोग स्थानीय लोगों द्वारा धान की कृषि के लिए किया जाता है।

क्यों आया था विनाशकारी भूकंप

2018 में इस क्षेत्र की खोज करते हुए चेम्बरलेन और अन्य शोधकर्ता ने पाया कि मिट्टी की क्षैतिज परतों को काटते हुए हल्के रंग की रेत की ऊर्ध्वाधर परते थी। यह विशेषता, जिसे सीस्माइट के रूप में जाना जाता है, भूकंप के कारण बनती है। उन्हें जो सीस्माइट मिले वे 30 से 40 सेंटीमीटर चौड़े थे और 3 से 4 मीटर मिट्टी को काटते थे।

आगे की जांच से पता चला कि यह सीस्माइट व्यवस्थित रूप से संरेखित थे, जो दर्शाता है कि वे एक ही समय में बने थे। रेत और मिट्टी के रासायनिक विश्लेषण से पता चला है कि करीब ढाई हजार साल पहले इस क्षेत्र में सात से आठ तीव्रता का विनाशकारी भूकंप आया था, जिसकी वजह से यह बदलाव हुए थे।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस भूकंप की दो संभावित वजहें हो सकती हैं, पहला दक्षिण और पूर्व में एक सबडक्शन जोन है, जहां महासागरीय क्रस्ट की एक विशाल प्लेट खुद को बांग्लादेश, म्यांमार और पूर्वोत्तर भारत के नीचे धकेल रही है। दूसरा उत्तर में हिमालय के तल पर मौजूद विशाल फाल्ट है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के धीरे-धीरे एशिया से टकराने के कारण बढ़ रहा है। 

2016 में स्टेकलर के नेतृत्व में किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि यह क्षेत्र काफी खतरनाक है जहां दबाव बढ़ रहा है और वहां फिर से विनाशकारी भूकंप आने की आशंका काफी प्रबल है। इस क्षेत्र में आखिरी बड़ा भूकंप 1762 में आया था, जिसकी वजह से एक घातक सुनामी पैदा हुई जो ढाका तक पहुंच गई थी। अनुमान है कि एक और भूकंप 1140 ईस्वी के आसपास आया होगा।

2016 में किए इस अध्ययन में यह भी अंदेशा जताया गया है कि यदि फिर से ऐसा कोई भूकंप आता है तो उससे 14 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं।

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