क्या होता है सौर सुपरफ्लेयर्स, क्या पृथ्वी के लिए बन सकते हैं विनाशकारी?

अगर कोई सुपरफ्लेयर पृथ्वी से टकराता है, तो बिजली के ग्रिड ध्वस्त हो सकते हैं, जिससे अंधकार छा सकता है, उपग्रह भी विफल हो सकते हैं, जिससे संचार, मौसम पूर्वानुमान व जीपीएस में रुकावट आ सकती है।
सौर सुपरफ्लेयर्स विद्युत चुम्बकीय विकिरण के शक्तिशाली विस्फोट हैं जो सूर्य जैसे तारों की सतह से निकलते हैं।
सौर सुपरफ्लेयर्स विद्युत चुम्बकीय विकिरण के शक्तिशाली विस्फोट हैं जो सूर्य जैसे तारों की सतह से निकलते हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
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एक नए अध्ययन के मुताबिक, सूर्य वैज्ञानिकों के अनुमान से कहीं ज्यादा बार भयंकर सुपरफ्लेयर उत्पन्न कर सकता है। ये सौर सुपरफ्लेयर सामान्य सौर फ्लेयर्स की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली होते हैं और इनसे लाखों गुना अधिक ऊर्जा निकल सकती है, जिससे पृथ्वी पर गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जिसमें दुनिया भर में संचार प्रणाली, पावर ग्रिड और उपग्रह तक नष्ट हो सकते हैं

हालांकि सुपरफ्लेयर को दुर्लभ घटनाएं माना जाता था, लेकिन इस नए अध्ययन से पता चलता है कि वे अनुमान से कहीं अधिक बार हो सकते हैं। सुपरफ्लेयर के बारे में अधिक जानने के लिए शोध अध्ययन किया गया है। जिसमें 56,000 सूर्य जैसे तारों का अध्ययन किया गया, जिसके बारे में माना जाता रहा है कि यह हर कुछ हजार साल में एक बार होता है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन के हवाले से कहा है कि अगर सूर्य इस नमूने में सितारों की तरह व्यवहार करता है, तो यह समान दर पर सुपरफ्लेयर उत्पन्न कर सकता है।

आखिर ये सौर सुपरफ्लेयर्स होता क्या हैं?

सौर सुपरफ्लेयर्स विद्युत चुम्बकीय विकिरण के शक्तिशाली विस्फोट हैं जो सूर्य जैसे तारों की सतह से निकलते हैं। थोड़े समय में इस बहुत ज्यादा ऊर्जा का उत्सर्जन प्रकाश की गति से यात्रा कर सकता है और कुछ ही मिनटों में पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल और आयनमंडल को प्रभावित कर सकता है।

छोटे सौर फ्लेयर्स स्वयं पृथ्वी पर संचार ब्लैकआउट के लिए जिम्मेवार होते हैं। 1859 में कैरिंगटन घटना दर्ज किए गए सबसे शक्तिशाली सौर तूफानों में से एक थी। उस समय, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में टेलीग्राफ सिस्टम अस्थायी रूप से बंद हो गए थे। एक सौर सुपरफ्लेयर के कारण दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं और आज की तकनीक को इससे भी अधिक नुकसान हो सकता है।

अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि सूर्य शायद उतना सुरक्षित नहीं है जितना हम सोचते हैं और वैज्ञानिकों की सोच हैं कि क्या पृथ्वी और हमारी आधुनिक दुनिया इतनी बड़ी घटना के लिए तैयार है। अगर कोई सुपरफ्लेयर पृथ्वी से टकराता है, तो बिजली के ग्रिड ध्वस्त हो सकते हैं, जिससे कई दिनों या महीनों तक अंधकार या ब्लैकआउट हो सकता है।

इससे उपग्रह भी विफल हो सकते हैं, जिससे संचार, मौसम पूर्वानुमान और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) में रुकावट आ सकती है।

यहां तक कि हवाई यातायात पर भी बुरा असर पड़ सकता है, क्योंकि विमान ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और उपग्रह संचार पर निर्भर करते हैं। जीपीइस के आंकड़ों के अस्थायी नुकसान से हवाई जहाजों को तुरंत उतरने और मार्ग बदलने के लिए भी मजबूर होना पड़ेगा।

बहुत ज्यादा वित्तीय नुकसान होने की आशंका जताई गई है। शेयर बाजार और दूरसंचार में बाधा आने से, यह पूरे आर्थिक आधार को रोक सकता है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि, क्या हम इसका सामना करने के लिए तैयार हैं?’ जबकि वैज्ञानिकों को ठीक से पता नहीं है कि सुपरफ्लेयर्स कब हो सकता है, खतरा वास्तविक है। जैसे-जैसे तकनीक उपग्रहों और बिजली ग्रिडों पर अधिक निर्भर होती जाती है, खतरे और भी बढ़ जाते हैं और ऐसी घटना के लिए तैयारी करना दुनिया भर के बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए जरूरी है।

सौर ज्वालाएं या सोलर फ्लेयर्स बहुत ही कम समय में ऊर्जा का एक शक्तिशाली विस्फोट छोड़ते हैं, जो प्रकाश की गति से यात्रा करते हैं। विद्युत चुम्बकीय विकिरण के ये तीव्र विस्फोट पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल और आयनमंडल को मिनटों में प्रभावित कर सकते हैं। छोटे सौर ज्वालाएं संचार ब्लैकआउट का कारण बन सकती हैं।

वहीं सुपरफ्लेयर बहुत दुर्लभ हैं लेकिन उनकी ऊर्जा तीव्रता अधिक है। जिनका 'मियाके' घटनाओं के रूप में उल्लेख किया गया है, जिसका नाम जापानी भौतिक विज्ञानी फुसा मियाके के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने वर्ष 2012 में उन्हें चरम सौर घटनाएं कहा था जो पेड़ों की वृद्धि के छल्ले में रेडियोधर्मी कार्बन समस्थानिक छोड़ती हैं। यह शोध अध्ययन साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

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