समय से पहले बेकार नहीं होंगी सोडियम-सल्फर बैटरियां, आईआईटी के शोधकर्ताओं ने खोजा समाधान

शोध के मुताबिक, टेस्ट-सेल प्रोटोटाइप ने समान वजन वाली लिथियम-आयन बैटरी की तुलना में अधिक क्षमता बनाए रखते हुए कम से कम 250 चार्ज-डिस्चार्ज चक्रों तक बिना खराब हुए बेहतर प्रदर्शन किया।
प्रतीतात्मक फोटो, सोडियम-सल्फर बैटरियां अत्याधुनिक लिथियम-आयन बैटरियों की तुलना में बहुत अधिक ऊर्जा जमा करने में सक्षम होती हैं।
प्रतीतात्मक फोटो, सोडियम-सल्फर बैटरियां अत्याधुनिक लिथियम-आयन बैटरियों की तुलना में बहुत अधिक ऊर्जा जमा करने में सक्षम होती हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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इलेक्ट्रोड सामग्री और अन्य महत्वपूर्ण चीजों की आपूर्ति की कमी ने लिथियम-आयन बैटरियों के अस्तित्व के लिए चुनौती खड़ी कर दी है, जिससे बैटरी निर्माताओं को वैकल्पिक बैटरी तकनीक की तलाश करने के लिए मजबूर कर दिया है।

कमरे के तापमान पर चलने वाली सोडियम-सल्फर (आरटी-एनए/एस) बैटरियां, जिनमें सोडियम और सल्फर के रूप में प्रचुर मात्रा में और सस्ती इलेक्ट्रोड सामग्री होती है और जो एक अलग तरह की रासायनिक प्रतिक्रिया पर निर्भर करती हैं। जिससे वे अत्याधुनिक लिथियम-आयन बैटरियों की तुलना में बहुत अधिक ऊर्जा जमा करने में सक्षम होती हैं, इनका एक संभावित विकल्प साबित हो सकती हैं।

हालांकि आरटी-एनए/एस बैटरियों के साथ मुख्य समस्याओं में से सोडियम धातु के एनोड पर डेंड्राइट में वृद्धि होना है, जिससे सेल समय से पहले बेकार हो जाते हैं। यहां बताते चलें कि लिथियम डेंड्राइट धातु की सूक्ष्म संरचनाएं होती हैं जो चार्जिंग प्रक्रिया के दौरान नकारात्मक इलेक्ट्रोड पर बनती हैं।

डेंड्राइट संरचनाएं हैं जो स्वाभाविक रूप से धातु के एनोड पर विकसित होती हैं। डेंड्राइट वृद्धि के दो कारण हैं, पहला, इलेक्ट्रोलाइट लगातार सोडियम धातु एनोड के साथ प्रतिक्रिया करता है, जिससे स्थानीय सतह अत्यधिक अनियमित हो जाती है। दूसरा, ठोस इलेक्ट्रोलाइट इंटरफेज, एक पतला, विद्युत रूप से इन्सुलेट लेकिन आयनिक रूप से संवाहक क्षेत्र, यांत्रिक और रासायनिक रूप से अस्थिर हो जाता है।

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईटी), दिल्ली के ऊर्जा विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ता, इस डेंड्राइट-संबंधी समस्या का समाधान खोजने के लिए काम कर रहे हैं, उन्होंने कार्बनिक इलेक्ट्रोलाइट समाधान में आयोडाइड-आधारित योजक का उपयोग करके कमरे के तापमान पर सोडियम-सल्फर बैटरी तकनीक को स्थिर करने में कामयाबी हासिल की है।

विज्ञप्ति के हवाले से प्रो. विपिन कुमार और शोधकर्ता छैल बिहारी ने कहा कि इलेक्ट्रोलाइट के गुणों को बदलने के लिए उन्होंने बिस्मथ आयोडाइड (बीआईएल3) को एक योजक अणु के रूप में इस्तेमाल किया। बीआईएल3 सोडियम आयनों को गलाने और इलेक्ट्रोड में प्रवेश करने के लिए आवश्यक ऊर्जा को कम करता है, जिससे चार्ज ट्रांसफर तकनीक में सुधार होता है। इससे बैटरी की दक्षता बेहतर होती है और चार्जिंग भी तेजी से होती है।

इसके अलावा, बीआईएल3 की उपस्थिति सोडियम धातु एनोड पर एनए3बीआई मिश्र धातु इंटरफेज और स्थिर ठोस इलेक्ट्रोलाइट इंटरफेज (एसईआई) के निर्माण में अहम भूमिका निभाती है। यह परत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सोडियम डेंड्राइट्स के विकास को रोकती है, जिसके कारण शॉर्ट सर्किट हो सकता है और समय से पहले बैटरी खराब हो जाती है।

शोध के मुताबिक, टेस्ट-सेल प्रोटोटाइप ने समान वजन वाली लिथियम-आयन बैटरी की तुलना में अधिक क्षमता बनाए रखते हुए कम से कम 250 चार्ज-डिस्चार्ज चक्रों तक बिना खराब हुए बेहतर प्रदर्शन किया।

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