गर्भवती महिलाओं में 30 मिनट में लगेगा प्री-एक्लेमप्सिया का पता, आईआईटी मद्रास की खोज

इस तकनीक का उपयोग न केवल प्री-एक्लेमप्सिया बल्कि कैंसर, टीबी, अल्जाइमर जैसी कई अन्य बीमारियों का भी मौके पर पता लगाने के लिए किया जा सकता है।
प्री-एक्लेमप्सिया (पीई) एक जानलेवा समस्या है जो गर्भावस्था के दौरान होती है, इसमें उच्च रक्तचाप और लीवर या किडनी की क्षति के लक्षण दिखाई देते हैं।
प्री-एक्लेमप्सिया (पीई) एक जानलेवा समस्या है जो गर्भावस्था के दौरान होती है, इसमें उच्च रक्तचाप और लीवर या किडनी की क्षति के लक्षण दिखाई देते हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी मद्रास) की अगुवाई में शोधकर्ताओं की टीम ने एक नया बायोसेंसर प्लेटफॉर्म विकसित किया है, यह गर्भवती महिलाओं में प्री-एक्लेमप्सिया का पता लगा सकता है। शोधकर्ताओं ने मौजूदा तकनीकों के विकल्प के तौर पर फाइबर ऑप्टिक्स सेंसर तकनीक का उपयोग करके पॉइंट-ऑफ-केयर (पीओसी) जांच की तकनीक विकसित की है।

क्या होता है प्री-एक्लेमप्सिया (पीई)?

प्री-एक्लेमप्सिया (पीई) एक जानलेवा समस्या है जो गर्भावस्था के दौरान होती है, इसमें उच्च रक्तचाप और लीवर या किडनी की क्षति के लक्षण दिखाई देते हैं। यह दुनिया भर में बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं पर बुरा असर डालती है। समय पर उपचार सुनिश्चित करने और मां और नवजात दोनों की रुग्णता और मृत्यु दर को कम करने के लिए इस समस्या की शुरुआती तेज और किफायती तरीके से जांच करना जरूरी है।

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प्री-एक्लेमप्सिया का पता लगाने की सामान्य विधि में काफी समय लगता है, जिसके लिए बहुत बड़े बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षित कर्मियों की जरूरत पड़ती है। इस परीक्षण को दूरदराज के क्षेत्रों और संसाधन-सीमित स्थिति में उपयोग असंभव हो जाता है। इसलिए प्री-एक्लेमप्सिया की जांच के लिए 'थ्रीएस' सुविधाओं (संवेदनशीलता, विशिष्टता और तेजी) के साथ आसानी से सुलभ, पॉइंट-ऑफ-केयर परीक्षण उपकरण की तत्काल जरूरत जताई गई है।

प्रेस विज्ञप्ति में आईआईटी मद्रास के एप्लाइड मैकेनिक्स और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के बायोसेंसर प्रयोगशाला के प्रो. वीवी राघवेंद्र साई के हवाले से कहा गया है कि प्लेसेंटल ग्रोथ फैक्टर (पीएलजीएफ) एक एंजियोजेनिक रक्त बायोमार्कर है जिसका उपयोग प्री-एक्लेमप्सिया की जांच के लिए किया जाता है।

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यहां, शोधकर्ताओं ने पॉलीमेथिल मेथैक्रिलेट (पीएमएमए) आधारित यू-बेंट पॉलीमेरिक ऑप्टिकल फाइबर (पीओएफ) सेंसर जांच का उपयोग करके फेम्टोमोलर स्तर पर पीएलजीएफ का पता लगाने के लिए प्लास्मोनिक फाइबर ऑप्टिक एब्जॉर्बेंस बायोसेंसर (पी-एफएबी) तकनीक तैयार की है।

प्री-एक्लेमप्सिया का पता लगाने के लिए, पीएलजीएफ' बायोमार्कर का उपयोग करने वाले परीक्षण व्यापक रूप से उपयोग में हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह बायोमार्कर सामान्य गर्भावस्था में 28 से 32 सप्ताह में अपने चरम पर होता है, लेकिन प्री-एक्लेमप्सिया वाली महिलाओं के मामले में, यह गर्भावस्था के 28 सप्ताह के बाद दो से तीन गुना कम हो जाता है।

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शोधकर्ताओं के द्वारा विकसित पीओएफ सेंसर जांच पी-एफएबी रणनीति का उपयोग करके 30 मिनट के भीतर पीएलजीएफ को माप सकती है। नैदानिक या क्लीनिकल नमूने के परीक्षण ने पी-एफएबी आधारित पीओएफ सेंसर प्लेटफॉर्म की सटीकता, विश्वसनीयता, विशिष्टता और संवेदनशीलता की पुष्टि की, जिससे पीएलजीएफ का पता लगाने और प्री-एक्लेमप्सिया निदान के लिए इसकी क्षमता के लिए किफायती तकनीक का मार्ग प्रशस्त हुआ।

विज्ञप्ति में प्रो. वीवी राघवेंद्र साई के हवाले से कहा गया है कि शोधकर्ताओं के द्वारा विकसित बायोसेंसर प्लेटफॉर्म सरल और विश्वसनीय है, जो किफायती जांच का मार्ग प्रशस्त करता है। इससे प्लेसेंटल ग्रोथ फैक्टर (पीएलजीएफ) बायोमार्कर परीक्षणों के परीक्षण कवरेज में भी वृद्धि हो सकती है, जिसके कारण प्री-एक्लेमप्सिया के प्रबंधन पर बड़ा प्रभाव पड़ने के आसार होते हैं और दुनिया भर में प्री-एक्लेमप्सिया से होने वाली मृत्यु दर और रुग्णता के मामलों में कमी लाने की दिशा में अहम सफलता हो सकती है।

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प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि प्री-एक्लेमप्सिया का पता लगाने के लिए इस तकनीक ने जरूरी सत्यापन के चरणों को व्यवस्थित रूप से पार कर लिया है, जो विश्लेषणात्मक से लेकर बायोएनालिटिकल से लेकर नैदानिक मूल्यांकन तक है। जिससे संबंधित तकनीकी तत्परता स्तर (टीआरएल) के माध्यम से आगे बढ़ रहा है।

इस मान्य बायोसेंसर के साथ विभिन्न क्लीनीकल परिस्थितियों में बड़े पैमाने पर रोगी के नमूनों का विश्लेषण, मजबूत प्रोटोटाइप के साथ, निकट और मध्य-अवधि के भविष्य में इसके संभावित तकनीकी हस्तांतरण और उसके बाद के व्यावसायीकरण को सक्षम और सुगम बनाएगा।

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विज्ञप्ति के अनुसार, इसका उपयोग न केवल प्री-एक्लेमप्सिया बल्कि कैंसर, टीबी, अल्जाइमर जैसी कई अन्य बीमारियों का भी मौके पर पता लगाने के लिए किया जा सकता है। इस तकनीक में किफायती और आसानी से बनने वाले डिस्पोजेबल पीओएफ जांच के कारण पैमाने को बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं जो 30 मिनट के भीतर परिणाम दे सकता हैं।

इस परीक्षण का फायदा यह है कि यह गर्भावस्था के 11 से 13 सप्ताह में पीएलजीएफ का पता लगा सकता है और अधिक या कम खतरे वाले लोगों को अलग-अलग कर सकता है। भारी जोखिम वाली महिलाओं को अगर कम खुराक वाली एस्पिरिन दी जाए तो प्री-एक्लेमप्सिया की घटनाओं में कमी आ सकती है। इसलिए यह परीक्षण, जांच करने के अलावा उपचार में भी सहायता करता है और इस तरह मां और नवजात के स्वास्थ्य में सुधार ला सकता है।

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