ओजोन परत को दशकों तक नुकसान पहुंचा सकता है उपग्रहों के नष्ट होने से पैदा होने वाला एल्यूमीनियम ऑक्साइड
पृथ्वी के चारों ओर दूरसंचार और हाई-स्पीड इंटरनेट के लिए बढ़ती उपग्रहों की भीड़; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

ओजोन परत को दशकों तक नुकसान पहुंचा सकता है उपग्रहों के नष्ट होने से पैदा होने वाला एल्यूमीनियम ऑक्साइड

एलन मस्क की स्पेसएक्स जैसी कंपनियों द्वारा अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले यह उपग्रह पर्यावरण को दशकों तक नुकसान पहुंचा सकते हैं।
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इंसानी विकास के साथ अंतरिक्ष पर वर्चस्व की जंग पहले से कहीं ज्यादा तेज हो चुकी है। आज न केवल सरकारें बल्कि एलन मस्क की स्पेसएक्स (स्पेस एक्सप्लोरेशन टेक्नोलॉजीज कार्पोरेशन), और अमेजन जैसी कंपनियां भी अगले एक दशक में पृथ्वी की कक्षा में हजारों संचार उपग्रह प्रक्षेपित करने की योजना बना रही हैं।

छोटे-छोटे उपग्रहों का यह बढ़ता झुंड पहले ही पर्यावरण और खगोलविदों के लिए समस्या पैदा कर रहा है, लेकिन एक नए शोध में इन उपग्रहों की वजह से ओजोन परत पर मंडराते खतरे को लेकर चिंता जताई है। एक तरफ जहां इन उपग्रहों को बनाने और भेजने से पर्यावरण पर दबाव बढ़ता है, वहीं अपने जीवन के अंतिम चरण में जब यह उपग्रह वापस गिरना शुरू करते हैं तो यह ओजोन परत को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।

आज दुनिया भर में जिस तरह से इंटरनेट की मांग बढ़ रही है उसकी वजह से छोटे संचार उपग्रहों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। बता दें कि इन पृथ्वी की निचली कक्षा में इन उपग्रहों के बड़े समूह लांच किए जाते हैं जो पूरी दुनिया को कवर करने के लिए एक साथ मिलकर काम करते हैं।

एलन मस्क की स्पेसएक्स (स्पेस एक्सप्लोरेशन टेक्नोलॉजीज कार्पोरेशन) और अमेजन जैसी कंपनियां दुनिया भर में हाई-स्पीड इंटरनेट प्रदान करने के इस प्रयास में लगी हुई हैं। जहां स्पेसएक्स की स्टारलिंक 42,000 उपग्रहों को लॉन्च करने की योजना बना रही है। वहीं अमेजन की भी कुछ ऐसी ही मंशा है। इनके साथ दुनिया की कई अन्य कंपनियां भी इस रेस में शामिल हैं।

खगोलशास्त्री जोनाथन मैकडॉवेल, जो इन उपग्रहों पर नजर रखते हैं। उन्होंने अपनी वेबसाइट पर जानकारी दी है कि जून 2024 तक, कक्षा में 6,209 स्टारलिंक उपग्रह मौजूद हैं, जिनमें से 6,137 काम कर रहे हैं।

वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि जब यह उपग्रह अपने जीवन के अंतिम चरण में पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश करते हैं तो इनके जलने से एल्यूमीनियम ऑक्साइड के महीन कण पैदा होते हैं, जो पृथ्वी का सुरक्षा घेरा समझी जाने वाली ओजोन परत को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

गौरतलब है कि एल्यूमीनियम ऑक्साइड के यह महीन कण क्लोरीन को सक्रिय करने में मदद करते हैं, जो समताप मंडल में ओजोन परत को प्रभावित कर सकता है।

इस पूरे घटनाक्रम को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने विस्तृत सिमुलेशन की मदद ली है। इसकी मदद से उन्होंने इससे जुड़े कुछ जरूरी सवालों के जवाब ढूंढने का प्रयास किया है कि वातावरण में पुनः प्रवेश के दौरान एल्यूमीनियम कैसे जलता है और यह ओजोन परत को किस हद तक नुकसान पहुंचा सकता है।

पर्यावरण के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है एल्युमिनियम ऑक्साइड

अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनसे पता चला है कि आमतौर पर 250 किलोग्राम का एक उपग्रह एल्युमिनियम ऑक्साइड के करीब 29.8 किलोग्राम कण पैदा करता है, जो दशकों तक वायुमंडल में मौजूद रह सकते हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक इनमें से ज्यादातर कण पृथ्वी की सतह के 50 से 85 किलोमीटर ऊपर मेसोस्फीयर में बनते हैं। ऐसे में अनुमान है कि इन कणों के समताप मंडल तक पहुंचने में 30 वर्षों तक का समय लगेगा, जहां पृथ्वी की 90 फीसदी ओजोन स्थित है।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हाल के वर्षों में उपग्रहों से निकलने वाले एल्युमीनियम ऑक्साइड में आठ गुना वृद्धि हुई है, जो 2016 में 2.13 मीट्रिक टन से बढ़कर 2022 में 16.6 मीट्रिक टन पर पहुंच गया है। रिसर्च से पता चला है कि 2022 में इन उपग्रहों के पुनः प्रवेश से वायुमंडल में मौजूद एल्युमीनियम के प्राकृतिक स्तर में 29.5 फीसदी की वृद्धि हुई है।

यदि सिर्फ 2022 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो इन उपग्रहों के वायुमंडल में पुनः प्रवेश करने से करीब 17 मीट्रिक टन एल्युमिनियम ऑक्साइड उत्पन्न हुआ। अनुमान है कि जिस तरह से इन उपग्रहों में इजाफा करने की योजना है उसको देखते हुए भविष्य में एल्युमीनियम ऑक्साइड का यह आंकड़ा बढ़कर सालाना 362.7 मीट्रिक टन पर पहुंच सकता है।

देखा जाए तो यह प्राकृतिक स्तर की तुलना में 646 अधिक है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि ये एल्युमिनियम ऑक्साइड वायुमंडल में बने रह सकते हैं और दशकों तक ओजोन परत को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरण को सोख लेती है। धरती पर यह पराबैंगनी विकिरण त्वचा से सम्बंधित कैंसर की वजह बन सकता है। इतना है नहीं यह फसलों की पैदावार और खाद्य उत्पादन को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

बता दें कि ओजोन परत को होते नुकसान को कम करने के लिए दुनिया भर की सरकारों ने 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए थे। इसकी वजह से वातावरण में बढ़ते क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने में मदद मिली, जिसके चलते अंटार्कटिका पर मौजूद ओजोन छिद्र में गिरावट आई है।

लेकिन जिस तरह एल्यूमीनियम ऑक्साइड में यह अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है, उसको देखते हुए वैज्ञानिकों को डर है अगले कुछ दशकों में यह प्रगति थम सकती है। एक समस्या यह भी है कि पृथ्वी की निचली कक्षा में इन संचार उपग्रहों का जीवनकाल करीब पांच वर्ष होता है। इन उपग्रहों को इस तरह डिजाईन किया गया है कि सेवा समाप्त होने के बाद वे वायुमंडल में जल जाएं।

ऐसे में इंटरनेट सेवा को बनाए रखने के लिए, कंपनियों को लगातार उपग्रहों को लॉन्च करना पड़ेगा, जिससे प्रदूषण का यह चक्र लगातार चलता रह सकता है।

सितम्बर 2022 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक अब से 2030 के बीच 50,000 से ज्यादा उपग्रह लांच किए जा सकते हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों के मुताबिक पर्यावरण के लिए तेजी से उभरती इस चुनौती से निपटने और ओजोन परत को बचाए रखने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं।

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