हजार साल पुराने बीज से फूटा अंकुर, औषधीय गुणों से समृद्ध, बाइबल से भी जुड़े हैं तार

यह प्रजाति अब विलुप्त हो चुकी हैं, हालांकि रिसर्च से पता चला है कि इस पेड़ में कई औषधीय गुण भी मौजूद हैं
विकास के विभिन्न चरणों में "शीबा"; फोटो: डॉक्टर ऐलेन सोलोवे/ कम्युनिकेशंस बायोलॉजी
विकास के विभिन्न चरणों में "शीबा"; फोटो: डॉक्टर ऐलेन सोलोवे/ कम्युनिकेशंस बायोलॉजी
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कृषि वैज्ञानिकों, वनस्पति विज्ञानियों और इतिहासकारों के एक अंतराष्ट्रीय दल को हजार साल पुराने बीज को उगाने में सफलता मिली है। इस बीज से फूटा अंकुर अब एक परिपक्व पेड़ में तब्दील हो चुका है। गौरतलब है कि यह बीज इजरायल की एक गुफा में पाया गया था।

इस बारे में जर्नल कम्युनिकेशंस बायोलॉजी में प्रकाशित अपनी रिसर्च में वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है कि यह बीज कहां पाया गया, उन्हें इसकी उत्पत्ति का पता कैसे लगा और इस बीज के परिपक्व पेड़ के रूप में विकसित होने के दौरान उन्होंने इसके इतिहास के बारे में क्या कुछ सीखा।

गौरतलब है कि 1980 के दशक में, इजरायल के जूडियन रेगिस्तान की एक गुफा में खुदाई करते समय शोधकर्ताओं को एक बीज मिला। अनुमान है कि यह बीज करीब 993 से 1202 ईस्वी के बीच का है, मतलब कि यह करीब 1,000 साल पुराना है।

परीक्षणों से पता चला कि यह बीज अभी भी उग सकता है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने इस बीज को लगा दिया और उसकी देखभाल की। ​​कुछ समय बाद, यह बीज अंकुरित हो गया। अब, 14 साल बीत जाने के बाद यह एक परिपक्व पेड़ में तब्दील हो चुका है।

वैज्ञानकों ने इस पेड़ का नाम ‘शीबा’ रखा है, जो करीब तीन मीटर ऊंचा है और इसकी पत्तियां हरी हैं। जैसे-जैसे यह पेड़ बड़ा होता गया, वैज्ञानिकों ने इसकी लकड़ी, राल और पत्तियों का अध्ययन किया और पाया कि पेड़ की यह प्रजाति अब विलुप्त हो चुकी है।

कई औषधीय गुणों से भी संपन्न है यह पेड़

जांच के दौरान वैज्ञानिकों को इस पेड़ में पेंटासाइक्लिक ट्राइटरपेनोइड्स (टीटी) की मौजूदगी के भी सबूत मिले हैं। बता दें कि यह ऐसे यौगिक हैं जो मनुष्यों में सूजन को कम करने के लिए जाने जाते हैं। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने स्क्वैलीन नामक एक प्रकार के तेल की भी खोज की है, जो अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों के लिए जाना जाता है। इसका उपयोग त्वचा संबंधी समस्याओं के उपचार के लिए किया जाता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक गुफा में इस बीज की मौजूदगी यह दर्शाती है कि इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने इन पेड़ों को लगाया था। साथ ही वो इनके औषधीय गुणों से भी परिचित थे।

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह इस बात के भी सबूत हो सकते हैं कि पेड़ से निकलने वाली राल में "त्सोरी" नामक औषधीय यौगिक हो सकते हैं, जिसका जिक्र बाइबल में भी कई बार किया गया है।

अध्ययन से पता चला है कि यह पेड़ 'कॉमिफोरा' वंश का सदस्य है, जो लोहबान जैसे परिवार का हिस्सा है। हालांकि यह पेड़ किस प्रजाति का है, यह ज्ञात नहीं हो सका है, क्योंकि पेड़ में अभी तक फूल नहीं आए हैं। ऐसे में यह पेड़ कैसे पनपता है उसकी विशेषताओं का अध्ययन संभव नहीं हो पाया है।

निष्कर्षों से पता चला है कि यह पेड़ एक विलुप्त प्रजाति का प्रतिनिधित्व करता है, जो कभी इस क्षेत्र में उगा करता था। हालांकि यह पता नहीं चल सका है कि ये पेड़ क्यों विलुप्त हो गए।

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