पर्यावरण की स्थिति पर पंजाब ने एनजीटी में दाखिल की अपनी रिपोर्ट, जानिए क्या कुछ रहा खास

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
पर्यावरण की स्थिति पर पंजाब ने एनजीटी में दाखिल की अपनी रिपोर्ट, जानिए क्या कुछ रहा खास
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पंजाब में मौजूदा 101 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटस (एसटीपी) में से, 57 से निकले उपचारित अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग किया जा रहा है, जिसका कमांड एरिया 8,326.8 हेक्टेयर है। यह जानकारी पंजाब सरकार द्वारा पर्यावरण की स्थिति पर एनजीटी में दाखिल रिपोर्ट में सामने आई है।

पंजाब पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन निदेशालय द्वारा अपनी त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट (अप्रैल-जून 2022) में कहा गया है कि धूल उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए लगभग 85 किलोमीटर लम्बी सड़क पर पानी के छिड़काव के लिए 90 किलो लीटर प्रतिदिन (केएलडी) उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग किया जाता है।

गौरतलब है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने ओए संख्या 606/2018 में अपने विभिन्न आदेशों के तहत राज्य को ठोस अपशिष्ट नियमों के साथ-साथ जैव चिकित्सा अपशिष्ट नियम; निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट; खतरनाक अपशिष्ट नियम; ई-कचरा नियम; एसटीपी की स्थिति और उपचारित जल का पुन: उपयोग; सीईटीपी/ईटीपी की स्थिति; अवैध रेत खनन और जल निकायों की बहाली के सन्दर्भ में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

जानकारी मिली है कि पर्यावरण विभाग ने ब्यास, सतलुज, घग्गर और बुद्ध नाला में पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए 11 रियल टाइम मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित किए हैं। इसके साथ-साथ विभाग आईआईटी, रोपड़ के सहयोग से पानी की गुणवत्ता के विभिन्न मापदंडों जैसे पीएच, टीडीएस, बीओडी, डीओ और सीओडी की निगरानी के लिए कम लागत वाले सेंसर भी विकसित कर रहा है।

आईआईटी, रोपड़ ने उपरोक्त मापदंडों के लिए सिंगल नोड सेंसर भी विकसित किए हैं और उनका पायलट स्तर पर परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा हो गया है। इस बारे में जानकारी दी गई है कि यह परियोजना 31 जुलाई 2022 तक पूरी हो जाएगी।

26 जुलाई, 2022 को एनजीटी में सबमिट इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत, वाटर हार्वेस्टिंग संरचनाओं का भी निर्माण किया गया है। पंजाब के किसानों ने धान के मौजूदा मौसम के दौरान चावल की सीधी बुवाई (डीएसआर) में गहरी रुचि दिखाई है। इस नवीन तकनीक मदद से 6.01 लाख हेक्टेयर (15.02 लाख एकड़) जमीन में बुवाई के लिए पानी की 10 से 15 फीसदी कम आवश्यकता होती है, साथ ही इसके अन्य लाभ भी हैं। 

स्टोन क्रशर यूनिट्स से होते ध्वनि प्रदूषण की निगरानी सुनिश्चित करे उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने (एससी) उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि स्टोन क्रशर यूनिट्स से होते ध्वनि प्रदूषण की निगरानी के लिए  लगातार दौरा करे। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि बोर्ड यह सुनिश्चित करे की मैसर्स हिमालय स्टोन उद्योग सहित अन्य स्टोन क्रशर यूनिट्स लागू मानदंडों का सख्ती से पालन कर रही हैं।

साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है  कि अपील करने वाली इकाइयों के कामकाज के बारे में बोर्ड अपनी टिप्पणियों/निष्कर्षों की साप्ताहिक रिपोर्ट कोर्ट को भेजे। साथ ही कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है जिसमें उसे यह जानकारी देनी है कि जिस क्षेत्र में अपील करने वाली इकाइयां काम कर रही हैं, उसे ध्वनि प्रदूषण के मद्देनजर कैसे वर्गीकृत किया जाए।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता इकाइयों को यह आदेश दिया है कि उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए, जिससे पैदा होने वाला शोर मानदंडों के अनुरूप रहे। वहीं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोर्ट को सूचित किया है की वो इस बात के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी कि इन स्टोन स्टोन क्रशर यूनिट्स द्वारा होता ध्वनि प्रदूषण तय मानकों के अनुरूप हो, जिसके लिए वो आवश्यक उपकरण भी लगाएगी।

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