दवा उद्योगों से हो रहे प्रदूषण के मामले में एनजीटी ने सभी राज्यों से मांगी प्रतिक्रिया

एनजीटी ने राज्यों से पूछा है कि क्या फार्मास्युटिकल कंपनियां नियमों का पालन कर रही है
दवा उद्योगों से हो रहे प्रदूषण के मामले में एनजीटी ने सभी राज्यों से मांगी प्रतिक्रिया
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने छह मई, 2024 को फार्मास्युटिकल संबंधित पर्यावरण प्रदूषण के मामले में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को नोटिस भेजने का निर्देश दिया है। साथ ही ट्रिब्यूनल ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को भी नोटिस देने को कहा है।

इसमें शामिल सभी पक्षों को अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने का कहा है। मामले में अगली सुनवाई 20 अगस्त, 2024 को होनी है। उनसे पूछा गया है कि क्या फार्मास्युटिकल कंपनियां नियमों का पालन कर रही है। साथ ही उनसे मौजूदा नियमों और दिशानिर्देशों के साथ-साथ सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मौजूद फार्मास्युटिकल कंपनियों की संख्या का भी खुलासा करने को कहा गया है।

ट्रिब्यूनल ने अधिकारियों से उन कंपनियों की संख्या के बारे में भी पूछा है जो नियमों का पालन कर रही है। साथ ही नियमों का उल्लंघन करने पर किन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है और फार्मास्युटिकल से पर्यावरण को जो नुकसान हो रहा है उसको रोकने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं, इस बारे में भी उनसे जानकारी मांगी गई है।

गौरतलब है कि यह मामला 25 फरवरी, 2024 को 'करंट साइंस' में प्रकाशित एक लेख के आधार पर पंजीकृत किया गया था।

इस पेपर में खुलासा किया है कि फार्मास्युटिकल से जुड़े पर्यावरण प्रदूषण को तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है, क्योंकि दुनिया की करीब 43 फीसदी नदियां सक्रिय तौर पर फार्मास्युटिकल अवयवों (एपीआई) के जोखिम का सामना कर रही हैं। इन पदार्थों के निरंतर उत्सर्जन से पर्यावरण और इंसानी स्वास्थ्य दोनों के लिए खतरे पैदा हो रहे हैं।

इसमें कहा गया है कि फार्मेसी अक्सर सॉल्वैंट्स, एपीआई, एक्सीसिएंट्स, एडिटिव्स, बाय-प्रोडक्ट्स और इंटरमीडिएट्स सहित फार्मास्युटिकल उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले सभी रसायनों को फिल्टर नहीं कर पा रही। ये केमिकल पर्यावरण में रासायनिक प्रदूषण को जन्म देते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा कर रहे। इस लेख में फार्मास्युटिकल कचरे को कम करने के लिए संभावित तरीकों को भी सुझाया गया है।

हिंडन को मैला कर रही उसके फ्लड प्लेन पर बसी कॉलोनी, एनजीटी ने अधिकारियों से मांगी रिपोर्ट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ को हिंडन बाढ़ क्षेत्र में बसी एक कॉलोनी के बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि यह हाउसिंग कॉलोनी अपना कचरा नदी में डाल रही है। छह मई को दिया यह निर्देश उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर से जुड़ा है। कोर्ट ने अगली सुनवाई से एक सप्ताह पहले इस रिपोर्ट को सौंपने की बात कही है। इस मामले में अगली सुनवाई 16 अगस्त, 2024 को होनी है।

संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पुराने हैबतपुर में शिवम एन्क्लेव कॉलोनी हिंडन नदी के बाढ़ क्षेत्र में बसी है। इसमें कोई सीवरेज नेटवर्क नहीं है, इसलिए यहां से निकलने वाला सीवेज सीधे हिंडन में छोड़ जा रहा है। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि अधिकारियों को बाढ़ क्षेत्र की सुरक्षा के लिए उचित कार्रवाई करने की आवश्यकता है। साथ ही वहां नदी में डाले जा रहे दूषित सीवेज को जल्द से जल्द रोका जाना चाहिए।

क्या बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस-वे परियोजना के निर्माण के दौरान मिट्टी का किया गया अवैध खनन

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव को बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे परियोजना के निर्माण के दौरान एक किसान की भूमि पर किए वैध या अवैध खनन की मात्रा निर्धारित करने के लिए निरीक्षण करने का निर्देश दिया है।

यह खनन गोवर कंस्ट्रक्शन लिमिटेड द्वारा किया गया था। वहीं गोवर कंस्ट्रक्शन की ओर से पेश वकील ने सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी पर्यावरण मंजूरी (ईसी) की प्रति प्रदान करने के लिए कोर्ट से दो सप्ताह का समय मांगा है।

आवेदन में आरोप लगाया गया है कि परियोजना प्रस्तावक गोवर कंस्ट्रक्शन लिमिटेड ने उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीआईडीए) के एक अधिकारी के साथ मिलकर किसान की जमीन पर 10 से 15 मीटर की गहराई तक अवैध रूप से मिट्टी का खनन किया था। यह खनन बुन्देलखण्ड एक्सप्रेसवे परियोजना के निर्माण के दौरान किया गया, इससे सड़क क्षतिग्रस्त हो गई। हालांकि परियोजना प्रस्तावक की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं है कि क्या उन्होंने खनन गतिविधि के लिए कोई पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) हासिल की थी या नहीं।

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