एनजीटी ने 5 महीनों में लगाया करीब 30000 करोड़ का जुर्माना, जानिए अदालत ने कैसे तय की राशि

जुर्माने की इस राशि की तुलना की जाए तो यह 2002 के बाद दशकों में जुटे कैंपा फंड का करीब 55 फीसदी है। 1996 में ठोस कचरे और सीवेज संबंधी पहली याचिका सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी
एनजीटी ने 5 महीनों में लगाया करीब 30000 करोड़ का जुर्माना, जानिए अदालत ने कैसे तय की राशि
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सुप्रीम कोर्ट से लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) तक सॉलिड वेस्ट और सीवेज का उपचार करने संबंधी आदेशों की अवहेलना करना राज्यों के लिए अब भारी पड़ गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के आधार पर एनजीटी ने एक-एक करके राज्यों पर हजारों करोड़ रुपए का जुर्माना लगाना शुरू किया है।
सीवेज और ठोस कचरे के कुप्रबंधन व आदेशों की अवहेलना मामले में अब तक 7 राज्यों पर कुल 28180 करोड़ रुपए का जुर्माना और अन्य अलग-अलग मामलों में करीब 2000 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया जा चुका है। लेकिन सवाल है कि जुर्माने की इतनी बड़ी राशि किस आधार पर और कैसे लगाई जा रही है?
ठोस कचरे और सीवेज के वैज्ञानिक उपचार व प्रबंधन को लेकर करीब 26 साल पहले 1996 में सुप्रीम कोर्ट में अलमित्रा एच पटेल बनाम भारत सरकार का मामला पहुंचा था। करीब 18 साल तक यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चलता रहा। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने 2000 और 2004 में व्यापक आदेश दिए।
हालांकि, इन आदेशों का पालन राज्यों के जरिए नहीं किया गया। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को यह कहकर भेजा कि एनजीटी के पास एक्सपर्टीज है, इसलिए वह इस मामले को देखे।  
एनजीटी ने सुप्रीम कोर्ट के इसी मामले करीब आठ वर्ष सुनवाई करते हुए 8 सितंबर, 2022 को महाराष्ट्र सरकार पर सर्वाधिक 12 हजार करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया। अपने आदेश में एनजीटी 2 सितंबर, 2014 के सुप्रीम कोर्ट के अलमित्रा एच पटेल बनाम भारत सरकार के मामले में टिप्पणी के हवाले से कहा " ठोस कचरे को संभालना एक शाश्वत चुनौती है। इसके लिए लगातार प्रयास जारी रखने की जरुरत है। साथ ही यह  सुनिश्चित होना चाहिए कि नगर निकाय उत्तरदायी भी हो ।"   
एनजीटी ने ने सभी राज्यों के सीवेज और ठोस कचरे जुर्माने मामलों में यह दोहराया है " यह मामला संविधान के 11वीं और 12वीं अनुसूची में आता है। यह राज्य और स्थानीय नगर निकाय की संवैधानिक जिम्मेवारी है कि वह लोगों को प्रदूषण मुक्त पर्यावरण मुहैया कराए। साथ ही इसके लिए फंड एकत्र करे।  जीवन का अधिकार भी सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी है। ऐसे में फंड की कमी का बहाना नहीं बनाया जा सकता।"
पीठ ने कहा कि सभी राज्यों की ओर से पर्यावरणीय मानकों का पालन नहीं किया जा रहा है जो कि लोगों की मौत, बीमारी का कारण बन रही है। नियमों का उल्लंघन और ट्रिब्यूनल के आदेशों की अवहेलना आपराधिक कृत्य है।  
एनजीटी अब तक सात राज्यों में 12 हजार करोड़ रुपए महाराष्ट्र के अलावा,  पंजाब पर 2080 करोड़ रुपए, दिल्ली पर 900 करोड़ रुफए, कर्नाटक पर 2900 करोड़ रुपए, राजस्थान पर 3000 करोड़ रुपए, पश्चिम बंगाल पर 3500 करोड़ रुपए, तेलंगाना पर 3800 करोड़ रुपए का जुर्माना लगा चुका है।  
जुर्माना की राशि और कॉस्ट ऑफ रेस्टोरेशन
एनजीटी ने राज्यों पर तय की गई जुर्माने की इस राशि को "पॉल्यूटर पे प्रिंसिपल" के आधार पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और कॉस्ट ऑफ रेस्टोरेशन यानी पुनरुद्धार की लागत के बराबर बताया है। राज्यों पर लगाए जा रहे जुर्माने में कहीं सीवेज कुप्रबंधन ज्यादा  है तो कहीं लीगेसी वेस्ट का मामला ज्यादा। 
मिसाल के तौर पर सभी राज्यों की तरह एनजीटी ने तेलंगाना पर लगाए गए कुल 3800 करोड़ रुपए के जुर्माने को स्पष्ट किया है। तेलंगाना मामले में अपने आदेश में दोहराया  कि एक सितंबर, 2022 को पश्चिम बंगाल मामले में और अभीष्ट कुसुम गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश व अन्य मामले में जुर्माने का स्केल तय किया गया था।
इसके हिसाब से प्रति मिट्रिक टन कचरे के लिए 300 रुपए और 2 करोड़ रुपए मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) तय किया गया है। इस आधार पर जिस राज्य का जितना ठोस कचरा और सीवेज बिना उपचार का है, जुर्माने की राशि की गणना भी उसी आधार पर की जा रही है। 
तेलंगाना पर लगाए गए कुल 3800 करोड़ रुपए के जुर्माने का हिसाब ऐसे समझ सकते हैं कि राज्य पर 1824 एमएलडी सीवेज उपचार न कर पाने के लिए एनजीटी ने 2 करोड़ रुपए प्रति एमएलडी सीवेज के हिसाब से 3648 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। वहीं, 59 लाख टन (5.9 मिलियन टन) लीगेसी वेस्ट के लिए 177 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है।  
एनजीटी ने जुर्माने की गणना में दिन या वर्ष तक किए गए उल्लंघनों को नहीं जोड़ा है। सिर्फ सॉलिड वेस्ट  और सीवेज उपचार के गैप के आधार पर गणना की है।  एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि पॉल्यूटर पे प्रिंसिपल के आधार पर पुराने आदेश के उल्लंघनों का आकलन कर जिम्मेदारी को तय करना राज्य का काम है। इस आधार पर पुराने आदेश के उल्लंघन का जुर्माना यदि राज्य तय करते हैं तो जुर्माने की राशि का यह आंकड़ा काफी बड़ा हो सकता है। 
कैंपा जैसा न हो हाल
लीगल इनिशिएटिव फॉर फारेस्ट एंड एनवॉयरमेंट (लाइफ) संस्था के फाउंडर मेंबर व पर्यावरणीय कानून मामलों के जानकार राहुल चौधरी ने डाउन टू अर्थ से कहा कि जस्टिस स्वतंत्र कुमार के समय में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से यह हिसाब मांगा गया था कि उनकी ओर से कितना पर्यावरणीय जुर्माना वसूला गया है और कहां पर किस मद में खर्च किया गया है।
हालांकि, इस बारे में अभी तक स्पष्टता नहीं है। कैंपा फंड के साथ भी यह जानने को मिला कि उस पैसे का गलत इस्तेमाल किया गया। ऐसे में जरूरी है कि यदि यह पैसा राज्यों की ओर से जमा किया जाता है तो उसका इस्तेमाल तय मकसद के लिए किया जाए। 
एडवोकेट राहुल चौधरी कहते हैं कि अभी राज्य इतनी आसानी से इन जुर्माने की रकम को स्वीकार नहीं करेंगे। वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं। हालांकि, राज्यों की ओर से बीते वर्षों में किए गए आदेश के उल्लंघन का हिसाब देखा जाए तो जुर्माने की राशि काफी बड़ी हो सकती है। 
यह दो कस्बे हैं मिसाल
एनजीटी महाराष्ट्र मामले में 12 हजार करोड़ रुपए की जुर्माने की  राशि को तय करते हुए कहता है "राज्यों की ओर से फंड न होने का बहाना नहीं चलेगा। हर राज्य के छोटे कस्बों को 103,000 आबादी वाले आंध्र प्रदेश के सूर्यापट और 53,000 की आबादी वाले तमिलनाडु के नमक्कल को जरूर देखना चाहिए क्योंकि यह कस्बे डस्टबिन फ्री और जीरो गारबेज टाउन्स हैं।"
इतने सारे जुर्माने के फंड का क्या होगा ?
एनजीटी ने सभी राज्यों पर लगाए गए जुर्माने की राशि के साथ अगले छह महीनों में सीवेज उपचार संयंत्रो और कचरा साइटों का पुनरुद्धार करने की उम्मीद की है। पीठ ने सभी राज्यों के मुख्य सचिव को यह आदेश दिया है कि वह जुर्माने के इस फंड को दो अलग-अलग खातों में जमा करेंगे। इस पैसों का इस्ते्माल सीवेज और ठोस कचरे के समयबद्ध संपूर्ण उपचार प्रबंधन के लिए खर्च किया जाएगा।
पीठ ने कहा कि यदि आगे भी आदेशों का उल्लंघन होता है तो जुर्माने की राशि और बढ़ाई जाएगी।  पीठ ने कहा कि एनएमसीजी व केंद्रीय शहरी मंत्रालय को भी फंड की मानिटरिंग करने के लिए कहा है। पीठ ने राज्यों से कहा है कि  हर छह महीने पर प्रगति रिपोर्ट ट्रिब्यूनल को भेजी जाए। 
कैंपा फंड का आधा
यदि राज्यों पर लगाए गए जुर्माने की तुलना कैंपा फंड से की जाए तो महज 7 राज्यों में ही यह उसका आधा हो चुका है। विकास कार्यों की आहुति चढ़े वनों की क्षतिपूर्ति के लिए 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने एड हॉक नेशनल कंपेसेटरी अफॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंड एंड प्लानिंग अथॉरिटी (कैंपा) बनाया था। जिसमें दशकों तक वनक्षतिपूर्ति के जरिए कुल 54 हजार करोड़ रुपए जमा हो गए। 2015 के बाद से यह फंड राज्यों को जारी किया जा रहा है।
एनजीटी भविष्य में अभी और भी राज्यों पर सीवेज व ठोस कचरे को लेकर जुर्माना लगा सकता है। हालांकि, राज्यों की ओर से जुर्माने की राशि एकत्र करना एक दुर्लभ काम होगा। क्योंकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जुर्माने की राशि को एकत्र करने में अब तक फिसड्डी रहे हैं।

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