ग्रामीण भारत में जीवन को बेहतर बना सकती है नई कचरा प्रबंधन तकनीक

शोधकर्ताओं ने बताया है कि कैसे पायरोलिसिस नामक प्रक्रिया चावल के भूसे, खाद और लकड़ी जैसे बायोमास कचरे को एक साथ तीन चीजों में बदल सकती है
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, एंड्रयू डन
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पायरोलिसिस एक प्रकार का केमिकल रीसाइक्लिंग है जो बचे हुए कार्बनिक पदार्थों को तोड़कर अणुओं में बदल देता है। यह कचरे को ऑक्सीजन मुक्त कक्ष के अंदर बंद कर इसे 400 डिग्री सेल्सियस से अधिक तक गर्म करके काम करता है, जिससे इस प्रक्रिया में उपयोगी रसायन उत्पन्न होते हैं।

साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित शोध में यूके में ग्लासगो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बताया कि कैसे पायरोलिसिस के तीन उत्पाद - जैव-तेल, सिनगैस और बायोचार उर्वरक ग्रामीणों को कृषि भूमि को अधिक उत्पादक के साथ स्वस्थ बनाने तथा अच्छे वातावरण में जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।

यह परियोजना पूरे ओडिशा में लगभग 1,200 ग्रामीण परिवारों के सर्वेक्षण के साथ शुरू हुई, जिसमें खाना पकाने, उनके घरों को बिजली देने और खेती के उनके अनुभवों का पता लगाया गया। सर्वेक्षण में शामिल 80 प्रतिशत से अधिक लोग घर में खाना पकाने के लिए धुआं उत्पन्न करने वाले कोयले के बजाय स्वच्छ विकल्पों को अपनाना चाहते थे और लगभग सभी उत्तरदाताओं के लिए बिजली ग्रिड तक पहुंच प्राथमिकता थी।

शोधकर्ताओं ने पाया कि लगभग 90 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे बायोएनर्जी का समर्थन करने के लिए कृषि का कचरा बेचने को तैयार हैं।

इनके सुझावों ने "बायोटीआरआईजी" नामक समुदाय-स्तरीय पायरोलिसिस प्रणाली के लिए टीम के डिजाइन को बनाने में मदद की, जो कचरे पर चलेगा और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण समुदायों के लिए कई फायदे प्रदान करेगा।

शोधकर्ताओं ने कहा कि सिनगैस और बायो-ऑयल भविष्य में पायरोलिसिस प्रणाली को गर्म करने और बिजली देने में मदद करेंगे, अतिरिक्त बिजली का उपयोग स्थानीय घरों और व्यवसायों को बिजली देने के लिए किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि स्वच्छ जलने वाले बायो-तेल का उपयोग घरों में खाना पकाने के प्रदूषण करने वाले ईंधन को बदलने के लिए भी किया जा सकता है और बायोचार का उपयोग मिट्टी की उर्वरता में सुधार करते हुए कार्बन को जमा करने के लिए किया जा सकता है।

वास्तविक दुनिया के प्रयोगों में बायोटीआरआईजी प्रणाली कितनी प्रभावी हो सकती है, इसके कंप्यूटर सिमुलेशन से पता चला है कि यह समुदायों से प्रति व्यक्ति हर साल लगभग 350 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकता है।

शोधकर्ताओं ने गौर किया कि इन सभी समस्याओं को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय सतत विकास लक्ष्यों के लक्ष्य के रूप में पहचाना गया है और भारत सरकार ने पहले ही देश भर में इनका समाधान शुरू करने के लिए कदम उठाए हैं।

बायोटीआरआईजी प्रणाली को अपनाने संबंधी दृष्टिकोण के साथ इन सभी गंभीर समस्याओं का समाधान करने में मदद करने की क्षमता है। अन्यथा अनुपयोगी कचरे को बायोएनर्जी के तीन उपयोगी स्रोतों में बदल दिया जाता है। इस प्रणाली को पूरे देश में लागू किया सकता है, इससे जलवायु परिवर्तन संबंधी उत्सर्जन और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बड़े प्रभाव पर लगाम लगाने में मदद मिल सकती है।

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