दुनिया में बढ़ रहा है इलेक्ट्रॉनिक कचरा, 2019 में केवल 17 फीसदी किया गया रिसाइकल

2019 में भारत ने करीब 32.3 लाख मीट्रिक टन ई-वेस्ट उत्पन्न किया था जोकि अफ्रीका के कुल ई-वेस्ट से भी ज्यादा है
दुनिया में बढ़ रहा है इलेक्ट्रॉनिक कचरा, 2019 में केवल 17 फीसदी किया गया रिसाइकल
Published on

दुनिया भर में जैसे-जैसे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की मांग बढ़ रही है, उसके साथ ही इलेक्ट्रॉनिक कचरा भी बढ़ता जा रहा है| जिस पर यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी द्वारा एक नई रिपोर्ट 'ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020' जारी की गई है। इसके हवाले से पता चला है कि वर्ष 2019 में 5.36 करोड़ मीट्रिक टन कचरा पैदा किया था। जोकि पिछले पांच सालों में 21 फीसदी बढ़ गया है, जबकि अनुमान है कि 2030 तक इस इलेक्ट्रॉनिक कचरे का उत्पादन 7.4 करोड़ मीट्रिक टन तक पहुंच जाएगा।

दुनिया भर में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के बढ़ने की सबसे बड़ी वजह तेजी से इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की खपत है| आज हम तेजी से इन इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को अपनाते जा रहे हैं| साथ ही इन उत्पादों का जीवन काल छोटा होने लगा है जिस वजह से इन्हें जल्द फेंक दिया जाता है| जैसे ही कोई नई टेक्नोलॉजी आती है, पुराने को फेंक दिया जाता है| इसके साथ ही कई देशों में इन उत्पादों की मरम्मत की सीमित व्यवस्था है, और है भी तो वो बहुत महंगी है| ऐसे में जैसे ही कोई उत्पाद ख़राब होता है| लोग उसे ठीक कराने की जगह बदलना ज्यादा पसंद करते हैं| जिस वजह से भी इस कचरे में इजाफा हो रहा है|

2019 में भारत ने उत्पन्न किया करीब 32.3 लाख मीट्रिक टन ई-वेस्ट

रिपोर्ट के अनुसार 2019 में एशिया ने सबसे ज्यादा 2.49 करोड़ मीट्रिक टन कचरा पैदा किया था| इसके बाद अमेरिका ने करीब 1.31 करोड़ मीट्रिक टन, यूरोप में 1.2 करोड़ मीट्रिक टन, जबकि अफ्रीका में 29 लाख मीट्रिक टन और ओशिनिया में 7 लाख मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पन्न किया था। जबकि दुनिया का सबसे ज्यादा ई-वेस्ट उत्पन्न करने वाले देशों की बात की जाए तो भारत तीसरे स्थान पर है| 2019 में भारत ने करीब 32.3 लाख मीट्रिक टन ई-वेस्ट उत्पन्न किया था जोकि अफ्रीका के कुल ई-वेस्ट से भी ज्यादा है| यदि प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखें तो भारत में प्रति व्यक्ति 2.4 किलोग्राम ई-वेस्ट उत्पन्न हुआ था| जबकि 1.01 करोड़ मीट्रिक टन के साथ चीन पहले स्थान पर और 69 लाख मीट्रिक टन कचरे के साथ अमेरिका दूसरे स्थान पर था|

रिपोर्ट के अनुसार 2019 में केवल 17.4 फीसदी कचरे को ही इकट्ठा और रिसाइकल किया गया था। जिसका मतलब यह है कि इस वेस्ट में मौजूद लोहा, तांबा, सोना और अन्य कीमती चीजों को ऐसे ही डंप कर दिया जाता है या फिर जला दिया जाता है| ऐसे में उन कीमती पदार्थों जिनको इसमें से पुनः प्राप्त किया जा सकता है वो बर्बाद चली जाती हैं| जिससे संसाधनों की बर्बादी हो रही है|

यदि 2019 में इस वेस्ट को रिसाइकल न किये जाने से होने वाले नुकसान को देखा जाए तो वो करीब 425,833 करोड़ रुपए (5700 करोड़ अमेरिकी डॉलर) के बराबर है| जोकि दुनिया के कई देशों के जीडीपी से भी ज्यादा है| यदि ई-कचरे के भीतर मूल्यवान सामग्री का पुन: उपयोग और पुनर्नवीनीकरण कर लिए जाये, तो उसे फिर से प्रयोग किया जा सकता है| जिससे संसाधनों की बर्बादी भी रुक जाएगी और इससे सर्कुलर इकॉनमी को भी बढ़ावा मिलेगा।

देशों के बीच बढ़ रही है जागरूकता, पर नियमों के पालन पर देना होगा ध्यान 

जिन देशों ने राष्ट्रीय ई-कचरा नीति, कानून या विनियमन को अपनाया है| पिछले पांच सालों में उनकी संख्या में भी वृद्धि हुई है| 2014 में उन देशों की संख्या 61 थी जोकि 2019 में बढ़कर 78 हो गई है। गौरतलब है कि अक्टूबर 2019 तक, दुनिया की 71 फीसदी आबादी राष्ट्रीय ई-कचरा नीति, कानून और विनियमन के अंतर्गत आती है, जबकि जबकि 2014 में केवल 44 फीसदी पर ही इन नियमों को लागु किया गया था| हालांकि इसके बावजूद कई देशों में बड़ी धीमी रफ़्तार से इन नियमों को अपनाया जा रहा है| साथ ही नियमों का ठीक से पालन नहीं किया जाता| जिसके चलते वहां न तो ई-कचरे को इकट्ठा किया जाता है और न ही उनका सही तरीके से प्रबंधन होता है| यदि इलेक्ट्रॉनिक कचरे का ठीक से प्रबंधन न हो तो वो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक बढ़ा खतरा बन सकता है|

इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट में कई तरह के हानिकारक तत्त्व होते हैं जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं| रिपोर्ट के अनुसार 2019 में जो ई-कचरा रिसाइकल नहीं किया गया उसमें करीब 50 टन हानिकारक पारा था|  ऐसे में इस ई-वेस्ट का सही तरीके से प्रबंधन और निपटान करना जरुरी है| जिससे न केवल पर्यावरण और स्वास्थ्य को बचाया जा सकेगा| साथ ही रोजगार के अवसर पैदा होंगे और सर्कुलर इकोनॉमी को भी बढ़ावा मिलेगा|

1 अमेरिकी डॉलर = 74.71 भारतीय रुपए

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in