नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने छत्तीसगढ़ द्वारा हर छह महीने में प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट में प्रस्तुत कुछ आंकड़ों की सटीकता और मुख्य सचिव की प्रस्तुति पर संदेह व्यक्त किया है।
ट्रिब्यूनल ने विशेष रूप से ठोस कचरे के प्रबंधन के संबंध में किए दावे पर संदेह जताया और कहा कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि शहरी क्षेत्रों में 100 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में 2,051 में से करीब 2,048 टन कचरे को हर दिन उसके स्रोत पर अलग किया जा रहा है।
अदालत ने अपशिष्ट प्रसंस्करण, उत्पाद उपयोग और अवशेष प्रबंधन से संबंधित ठोस एवं तरल संसाधन प्रबंधन (एसएलआरएम) के संचालन के संबंध में भी स्पष्टता की कमी देखी है। इसके अतिरिक्त, अदालत ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि वहां पैदा हो रहे कचरे की जो मात्रा 2023 में दर्शाई गई थी उसमें मौजूदा साल में भी समान है और उसमें कोई बदलाव नहीं आया है।
वहां रायपुर और राजनांद गांव को छोड़कर 10,17,440 मीट्रिक टन विरासती कचरे में से 6,56,900 टन कचरे का समाधान किया गया है। हालांकि दूसरी छह-मासिक रिपोर्ट में मात्रात्मक रूप से विरासती कचरे का कोई विवरण नहीं दिया गया है।
इसके अलावा, सीवेज उपचार में अभी भी 37.3 करोड़ लीटर प्रति दिन (एमएलडी) का अंतर है। वहीं आठ सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) अपनी निर्धारित क्षमता से नीचे काम कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, 423.7 एमएलडी क्षमता के सीवेज उपचार संयंत्र को पूरा करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गई है। ऐसे में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा है कि छत्तीसगढ़ द्वारा प्रस्तुत जानकारी की सटीकता को सत्यापित करने के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करने की जरूरत है।
इस समिति में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी), रायपुर के क्षेत्रीय अधिकारी, केंद्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण इंजीनियरिंग संगठन के एक वरिष्ठ प्रतिनिधि और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के सदस्य सचिव के प्रतिनिधि शामिल होंगें। वहीं समिति का नेतृत्व पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, रायपुर के क्षेत्रीय अधिकारी द्वारा किया जाएगा।
ट्रिब्यूनल ने संयुक्त समिति को छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव द्वारा प्रस्तुत जानकारी के साथ एक अप्रैल, 2024 की दूसरी छमाही रिपोर्ट की सावधानीपूर्वक समीक्षा करने का काम सौंपा है। इनका काम जमीनी स्तर से आंकड़े एकत्र करके प्रदान की गई जानकारी की सटीकता सुनिश्चित करना है।
गौरतलब है कि भारत जैसे देशों में बढ़ता कचरा एक बड़ी समस्या बन चुका है, दिल्ली में तो स्थिति यह है कि कचरे के पहाड़ को दूर से ही देखा जा सकता है। ऐसे में इसका उचित निपटान बेहद जरूरी है।
संयुक्त राष्ट्र ने भी अपनी नई रिपोर्ट 'ग्लोबल वेस्ट मैनेजमेंट आउटलुक 2024' में खुलासा किया है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो अगले 26 वर्षों में वैश्विक स्तर पर हर साल पैदा हो रहे कचरे की मात्रा 65 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 380 करोड़ टन पर पहुंच जाएगी। वहीं 2023 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो वैश्विक स्तर पर सालाना करीब 230 करोड़ टन शहरी कचरा पैदा हो रहा था।