उत्तर प्रदेश में बायो मेडिकल कचरे के प्रबंधन पर न्यायमूर्ति एसवीएस राठौर की अध्यक्षता वाली निरीक्षण समिति की एक रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष प्रस्तुत की गई।
रिपोर्ट शैलेश सिंह बनाम शीला अस्पताल और ट्रॉमा सेंटर और अन्य के मामले में मूल याचिका संख्या 710/2017 में पारित एनजीटी के आदेश के अनुपालन में थी।
मामला उत्तर प्रदेश द्वारा जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 (बीएमडब्ल्यू नियम, 2016) के प्रावधानों का पालन न करने से संबंधित है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बीएमडब्ल्यू नियम, 2016 में बीएमडब्ल्यू पर नजर रखने की प्रणाली निर्धारित की गई थी - जिसमें सभी रंगीन बैगों पर बार-कोड लगे होने चाहिए। ट्रकों की आवाजाही पर एक ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के जरिए नजर रखी जानी चाहिए। हालांकि लखनऊ में शुरु के छोटे से समय अंतराल में इसका उपयोग हुआ, अब कोई भी ऑपरेटर बार-कोडिंग प्रणाली का उपयोग नहीं कर रहा है। जो उत्पन्न आंकड़ों की विश्वसनीयता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है।
स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं (एचसीएफ) में बड़े संरचनात्मक कमियां देखी गई हैं। जिसके कारण कई बीएमडब्ल्यू नियमों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं। 100 से अधिक बेड की संचालन क्षमता वाले 530 एचसीएफ में से लगभग 452 एचसीएफ में एसटीपी / ईटीपी नहीं है।
सरकारी सुविधाओं में भी जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) से युक्त 1027 एचसीएफ में से - 564 एचसीएफ में बायो मेडिकल कचरे को एकत्र करने के लिए उचित जगह नहीं है।
जहां तक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) का संबंध है, 3620 पीएचसी में से केवल 628 पीएचसी में ही कचरा दबाने के लिए गहरे गड्ढे हैं।
जिला अस्पतालों में ईटीपी निर्माण करने की गति बहुत धीमी थी और इस साल केवल 40 जिला अस्पतालों ने ही ईटीपी का निर्माण किया गया है। 2483 एचसीएफ हैं जिन्होंने बीएमडब्ल्यू नियमों के तहत इजाजत नहीं ली है। इनमें से 441 सरकारी एचसीएफ हैं।
रेडियोधर्मी पदार्थों के निपटान में एक महत्वपूर्ण कमी देखी गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य विभाग को मानक प्रोटोकॉल का विकास करना चाहिए और सभी हितधारकों (स्टेकहोल्डर्स) के लिए क्षमता का निर्माण करना चाहिए।
निरीक्षण समिति की रिपोर्ट में हितधारकों में क्षमता निर्माण पर जोर दिया गया है। अस्पतालों में प्रदूषण एक निरंतर चुनौती है और संक्रमण की प्रकृति और सीमा बदलती रहती है, अभी नई मुसीबत कोविड-19 है। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि क्षमता निर्माण कार्यशालाओं को सभी हितधारकों - डॉक्टरों, पैरामेडिक्स, अन्य अस्पताल कर्मचारियों, प्रयोगशाला कर्मचारियों, रक्त बैंक कर्मचारियों, निजी चिकित्सकों, नर्सिंग होम और एचसीएफ के लिए एक सतत आधार पर आयोजित किया जाना चाहिए।