एनजीटी ने 28 सितंबर, 2020 को एक निर्देश जारी किया है, जिसमें पर्यावरण मंत्रालय को 31 दिसंबर, 2020 से पहले पश्चिमी घाट में मौजूद पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ईएसए) की अधिसूचना को अंतिम रूप देने के लिए कहा है।
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, सोनम फेंटसो वांग्दी और विशेषज्ञ नागिन नंदा की पीठ ने कहा है कि चूंकि राज्यों ने कुछ क्षेत्रों को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र से बाहर रखने के लिए कहा है, इसलिए इसमें देरी किए जाने का कोई औचित्य नहीं है| गौरतलब है कि एनजीटी का यह आदेश पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ईएसए) की अधिसूचना को अंतिम रूप देने में जारी देरी के मद्देनजर दिया गया है जोकि पिछले आठ वर्षों से लंबित है।
अदालत ने कहा कि 'विकास' की आवश्यकता का दावा करने वालों द्वारा इसके अधिक से अधिक बहिष्कार की मांग की गई है, जबकि 'पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता' ऐसी मांगों को स्वीकार करने की अनुमति नहीं देती है।
एनजीटी ने 22 नवंबर, 2019 के अपने आदेश में निर्देश दिया था कि समयसीमा का पालन किया जाना चाहिए। उस सुनवाई के दौरान इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) डिवीजन के सलाहकार, एमओईएफ और सीसी से जुड़े व्यक्ति मौजूद थे| इस आदेश में कहा गया था कि इस मामले पर सुनवाई जारी है और इसे 31 मार्च से पहले सकारात्मक रूप से अंतिम रूप दे दिया जाएगा।
अदालत ने पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वो इस मामले में अपनी रिपोर्ट दायर करे और मामले की अगली सुनवाई 11 फरवरी, 2021 से पहले की जाएगी।
एचआईएल लिमिटेड ने एनजीटी के समक्ष जो रिपोर्ट पेश की है उसमें जानकारी दी है कि झारखंड सरकार द्वारा जो एस्बेस्टस खानों पर जो रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है उसमें कई खामियां हैं| यह खानें पश्चिम सिंहभूम में चाईबासा की रोरो पहाड़ियों पर स्थित हैं|
इस रिपोर्ट के अनुसार 9 अगस्त को जो सरकारी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है, उसमें गलत जानकारी दी गई है| रिपोर्ट के अनुसार एचआईएल द्वारा इन एस्बेस्टस खानों की बहाली के लिए जरुरी कदम नहीं उठाए गए हैं| साथ ही पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को रोकने के लिए सुरक्षा उपायों को नहीं अपनाया गया था| उदाहरण के लिए इन खानों से एस्बेस्टस धूल का प्रदूषण जारी था जिसके चलते स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा था और तालाबों और नदियों का पानी दूषित हो गया था|
रिपोर्ट में कहा गया है कि एस्बेस्टस खानों को 1983 में बंद कर दिया गया था, साथ ही जिन्हें 1984 में एचआईएल ने सरेंडर कर दिया था| जिसपर 1985 में बिहार सरकार की स्वीकृति भी मिल गई थी| इसके बाद बिहार सरकार ने इस फिर से पट्टे पर देने के लिए खदान का नाम भी बदल दिया था।
एचआईएल के अनुसार उसने इन खानों को बिहार सरकार (अब झारखंड) को क़ानूनी तौर पर सौंप दिया था| 1985 के बाद जब खानों का समर्पण कर दिया था, उसके बाद खानों पर केवल बिहार सरकार का अधिकार था। इसलिए उसे प्रदूषक नहीं कहा जा सकता है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने बाओजिनिम सिटीजन फोरम द्वारा नॉर्थ गोवा के बाओजिनिम तालुका में कचरा प्रबंधन की सुविधा के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया है।
अपील गोवा अपशिष्ट प्रबंधन निगम के पक्ष में दी गई पर्यावरण मंजूरी (ईसी) के खिलाफ थी। जो 6 जनवरी, 2020 को उत्तरी गोवा के बाओजिनिम तालुका में 250 टन प्रतिदिन (टीपीडी) कचरा प्रबंधन सुविधा की स्थापना के लिए दी गई थी।
यह कहा गया था कि परियोजना स्थल ठोस कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के तहत निर्धारित स्थल-चयन के मानदंडों के विरुद्ध है। बस्ती से परियोजना स्थल की दूरी 200 से 500 मीटर होनी चाहिए, जबकि इस मामले में निकटतम बस्ती केवल 35 मीटर की दूरी पर है।
एनजीटी ने 24 सितंबर के अपने फैसले में कहा कि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कचरे का प्रबंधन वैज्ञानिक तरीके से किया जाना चाहिए। इस जगह का चयन 2006 में किया गया था, इसे राज्य द्वारा लागू मानदंडों और भूमि अधिग्रहण नियमों के अनुसार किया गया था, जिसे उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा। बफ़र ज़ोन को बनाए रखा गया और सार्वजनिक सुनवाई विधिवत आयोजित की गई। जगह का चयन करते समय वहा पहले से मौजूद, किसी तरह का कोई निर्माण नहीं देखा गया था। पर्यावरण मंजूरी शर्तों के उल्लंघन के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की गई थी।
एनजीटी के न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और सोनम फेंटसो वांग्दी ने कहा कि - अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा आवश्यक है और जगह का विधिवत चयन किया गया है। जिस उद्देश्य के लिए अधिग्रहण किया गया था, इसे बरकरार रखा गया है। पर्यावरण की मंजूरी देने में कोई गलती नहीं हुई है।
इस बात की आवश्यकता थी कि पर्यावरण मंजूरी की शर्तों का अनुपालन किया जाना चाहिए और सभी पर्यावरण सुरक्षा उपायों का विधिवत निरीक्षण किया जाना चाहिए, जिसकी निगरानी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) द्वारा की जानी चाहिए।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 24 सितंबर को कहा कि ऐसा कोई साक्ष्य, जानकारी या सामग्री नहीं है जो ये स्पष्ट कर दे कि गोवा के उस्गाओ, ग्राम टिस्क में स्थित मद्रास रबड़ फैक्ट्री (एमआरएफ) में सर्वेक्षण संख्या 259 के अनुसार पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन हो रहा है।
सर्वेक्षण संख्या 259 पर एमआरएफ के निर्माण को रोकने के लिए एनजीटी के समक्ष दायर याचिका के जवाब में यह आदेश आया। अन्य दायर याचिकाएं खंडरदर नदी के तटबंध से अतिक्रमण हटाकर आर्द्रभूमि (वेटलैंड) नियमों के अनुसार आर्द्रभूमि को बनाए रखने के लिए थीं। याचिका में नदी के पास एमआरएफ द्वारा बनाए गए एक चेक डैम को भी ध्वस्त करने के लिए गुहार लगाई गई थी।
राज्य के अधिकारियों ने ट्रिब्यूनल को सूचित किया कि आर्द्रभूमि (वेटलैंड) नियमों या वन कानून का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। यह परियोजना किसी भी जल निकाय के बफर जोन के भीतर नहीं है और यह जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (जेडएलडी) परियोजना है। यह परियोजना संचालन में रही है और यहां किसी भी तरह का कोई प्रदूषण कभी नहीं पाया गया।
परियोजना के विस्तार का असर नदी या किसी अन्य आर्द्रभूमि (वेटलैंड) पर भी नहीं पड़ेगा। आर्द्रभूमि के संरक्षण के मुद्दे से स्वतंत्र रूप से निपटा जा रहा था और परियोजना के आसपास के 10 आर्द्रभूमि को खदानपुर नदी सहित संरक्षित आर्द्रभूमि के रूप में अधिसूचित किए जाने की संभावना है, जिसे एनजीटी को पहले ही सूचित किया गया था।
एनजीटी ने अपील को खारिज कर दिया और कहा कि ऐसा कोई साक्ष्य, जानकारी या सामग्री नहीं है जिसमें वेटलैंड नियमों का उल्लंघन हो रहा हो। किसी भी जल निकाय को नुकसान या पर्यावरणीय मानदंडों के उल्लंघन का कोई भी साक्ष्य नहीं है।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने 28 सितंबर को इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट पर एनजीटी के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है| जिसमें सिफारिश की गई है कि केवल गाजियाबाद के लोनी में ही नहीं पूरे देश में इलेक्ट्रॉनिक कचरे की मात्रा को देखते हुए उत्पादकों को पकड़ा जा सकता है| उसके अनुसार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा ऐसा उत्पादकों की जिम्मेवारी निर्धारित करने वाले खंड (इपीआर) के तहत किया जा सकता है|
रिपोर्ट में देश भर में बढ़ते इलेक्ट्रॉनिक कचरे का डंपिंग के लिए उत्पादकों को जिम्मेवार माना है| जिसके अनुसार इलेक्ट्रॉनिक कचरे का डंपिंग और चैनलाइजेशन के लिए इसका सही तरह से संग्रह न करना जिम्मेवार है, जिसके लिए ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के तहत उत्पादकों की विफलता भी जिम्मेवार है| पॉलीक्लोरिनेटेड बाइफिनाइल्स (पीसीबी) वेस्ट के निपटान के लिए सीपीसीबी एक पायलट फाइन पलवराइजेशन यूनिट या फिर किसी अन्य तकनीक पर आधारित इकाई स्थापित कर सकता है, जिससे उसका निपटान किया जा सके|
रिपोर्ट ने ट्रिब्यूनल को सूचित किया है कि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) और लोनी के अधिकारियों ने उस क्षेत्र का निरीक्षण किया था| जिस क्षेत्र पर जीडीए के मास्टर प्लान के खिलाफ अवैध ई-कचरा उद्योग लगाए गए थे। सर्वेक्षण में 80 अवैध इकाइयों की पहचान की गई है और उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश टाउन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट 1973 की संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई की गई है।
साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लोनी में लगाई गई यह अनधिकृत इकाइयां केवल जलाने, नक़्क़ाशी करने या गलाने में लगे छोटे उद्योग थे।