पुणे के बाणेर गांव में अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधा केंद्र है, जिसके 200 मीटर के दायरे में लगभग 15 आवासीय अपार्टमेंट हैं, यह महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) की रिपोर्ट में कहा गया है। यह रिपोर्ट 19 अक्टूबर, 2020 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की साइट पर अपलोड की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि, ढक कर और छप्पर बनाकर छिद्रों को ढका गया है, ताकि अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधा के घोल भंडारण टैंक जैसे संयंत्र के चलने पर निकलने वाली गंध को नियंत्रित किया जा सके, लेकिन संयुक्त निरीक्षण अधिकारियों को संयंत्र परिसर में और उसके आसपास गंध महसूस हुई।
एनजीटी ने 5 सितंबर, 2019 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) को एक समिति के गठन का निर्देश दिया गया था, जो कि संयंत्र और क्षेत्र का निरीक्षण करके एक रिपोर्ट सौंपेगी।
एमपीसीबी ने 2 दिसंबर, 2015 को ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2000 के तहत मेसर्स नोबल एक्सचेंज एनवायरनमेंट सॉल्यूशन के तहत बाणेर में खाद्य अपशिष्ट घोल की स्थापना और संचालन के लिए अनुमति प्रदान की थी।
बाणेर में अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधा से निकले जैविक अपशिष्ट घोल को पुणे के अंबा, तालुका मावल, में जैव-मीथेन के लिए मेसर्स नोबल एक्सचेंज एनवायरनमेंट सॉल्यूशंस साइट पर ले जाने का प्रस्ताव था।
कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई योजना
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 20 अक्टूबर को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को निर्देश दिया कि पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) के बिना कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई योजना (केएलआईएस) को आगे बढ़ाने में होने वाले नुकसान का आकलन करने के लिए सात सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन करे, साथ ही 2008 से 2017 तक हुए नुकसान की बहाली के उपायों की पहचान करने को आवश्यक बताया है।
संयुक्त समिति द्वारा यह भी जांच की जाएगी कि राहत और पुनर्वास उपायों को अपनाया गया है या नहीं और उन्हें आगे अपनाया जाना आवश्यक है।
एनजीटी ने परियोजना के अधिवक्ता के रुख को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि, केएलआईएस मुख्य रूप से जल आपूर्ति और जल प्रबंधन के लिए थी, जबकि सिंचाई सहायक है - इस प्रकार 2008 से 2017 तक परियोजना के निष्पादन से पहले कोई पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) की आवश्यकता नहीं थी।
अदालत ने कहा कि परियोजना मुख्य रूप से सिंचाई के लिए थी हालांकि पानी की आपूर्ति भी इसमें शामिल है। इस प्रकार, पर्यावरण मंजूरी को इससे हटा दिया गया था। एनजीटी ने कहा जैसा कि परियोजना पूरी हो चुकी है, एकमात्र मुद्दा उपचारात्मक कार्रवाई और भविष्य में अपनाई जाने वाली सावधानियों का है।
केएलआईएस परियोजना के खिलाफ मोहम्मद हयात उद्दीन द्वारा एनजीटी में एक याचिका दर्ज की गई थी, जिसमें निम्न विसंगतियां थीं।
जैवविविधता बोर्ड ने जैव विविधता प्रबंधन समितियों को पूरा करने के लिए एनजीटी से समय बढ़ाने का अनुरोध किया
मेघालय जैव विविधता बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपे अपने हलफनामे में राज्य में जैव विविधता प्रबंधन समितियों (बीएमसी) को पूरा करने और पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (पीबीआर) तैयार करने के लिए 31 मार्च, 2021 तक समय बढ़ाने का अनुरोध किया है। 9 अगस्त, 2019 को एनजीटी के आदेश पर लगाई गई लागत को भी माफ करने का अनुरोध किया।
एनजीटी ने 18 मार्च, 2020 को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे एनजीटी के आदेशों की 9 अगस्त, 2019 और 18 मार्च, 2020 को पारित निर्देशों के अनुपालन और वर्तमान स्थिति के बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करें। आदेश बीएमसी के गठन और पीबीआर की तैयारी से संबंधित है।
रिपोर्ट के माध्यम से अदालत को सूचित किया गया कि 6459 में से लगभग 4850 बीएमसी का गठन किया गया है और बाकी का गठन इस वर्ष के अंत तक किया जाएगा।
हालांकि मेघालय के सभी जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट और अजीबोगरीब स्थलाकृतिक और भौगोलिक परिस्थितियों के सभी जीव-जंतुओं, वनस्पतियों, जलीय जीवन का दस्तावेजीकरण करने वाली पीबीआर की तैयारी करने में अभी समय लगेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के अन्य हिस्सों के लिए सभी पीबीआर की तैयारी को पूरा करने के लिए संक्षिप्त समयरेखा व्यावहारिक और पर्याप्त नहीं थी।
इसके अलावा कोविड-19 महामारी की वर्तमान स्थिति और लगाए गए प्रतिबंधों ने बीएमसी के गठन की गति को भी बाधित किया। राज्य के 6459 गांवों में से प्रत्येक में भ्रमण करना, उनमें से अधिकांश में सड़के दुर्गम हैं और उनमें अधिक समय लगेगा।