सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई, 2020 को दिल्ली में फैल रहे बायोमेडिकल कचरे पर एक आदेश जारी किया| जिसमें निर्देश दिया गया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के विभिन्न अस्पताल कोरोना और अन्य बायोमेडिकल वेस्ट का किस तरह प्रबंधन कर रहे हैं, उस पर चर्चा के लिए एक बैठक आयोजित की जाए। बैठक में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) और पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण, दिल्ली नगर निगम और केंद्र एवं दिल्ली सरकार के संबंधित विभागों के अधिकारी और प्रतिनिधि शामिल होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अस्पतालों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया| जिसमें उनसे यह सुनिश्चित करने के लिए कहा जाए कि बायो मेडिकल वेस्ट को खुले में न डंप किया जाए|
सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश दिल्ली में खुले में फेंके जा रहे बायोमेडिकल वेस्ट की शिकायत के बाद आया है| जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि कोरोना रोगियों के कारण उत्पन्न हो रहे वेस्ट को भी अन्य वेस्ट के साथ खुले में फेंक दिया गया था| जिसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं| जबकि इस तरह के कचरे को पूरी तरह जलाकर नष्ट करने के बाद ठीक से निपटान करना जरुरी है|
बायोमेडिकल वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रूल्स, 2016 के तहत, वेस्ट के मामले में कोई भी अस्पताल केवल राज्य प्रदूषण बोर्ड द्वारा स्वीकृत सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा प्रदान कर रहे ठेकेदार के साथ कॉन्ट्रेक्ट कर सकता है। जिसमें यह ठेकेदार अस्पतालों से कचरे को इकट्ठा करेगा और उसके निपटान का प्रबंधन करेगा।
ऐसे में कोर्ट ने आदेश दिया है कि 2016 के नियमों के अनुसार बायोमेडिकल वेस्ट के मामले में बार-कोड प्रणाली का पूरी तरह इस्तेमाल किया जाना चाहिए| जो नियमों में तो है पर उसे पूरी तरह लागू नहीं किया गया है| इसकी मदद से कचरे को उत्पन्न होने से लेकर, एकत्र, संसाधित और रीसायकल करने तक ट्रैक किया जा सकता है|
दिल्ली में रेलवे ट्रैक के पास कचरा फेंका जा रहा है जिसपर रोक लगाई जानी चाहिए| सुप्रीम कोर्ट के अनुसार रेलवे विभाग और नगर निगम की लापरवाही के चलते ऐसा हो रहा है| जिससे रेल की पटरियों के कूड़े का ढेर लगता जा रहा है| सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि इस मामले में उचित कार्रवाई की जानी चाहिए| और उससे जुड़ा एक्शन प्लान कोर्ट में भी सबमिट किया जाए|
गोवा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनजीटी के समक्ष रिपोर्ट दायर की है| मामला गोवा के बिचोलिम तालुका में अवैध रूप से किए जा रहे लेटराइट पत्थरों के खनन का है|
इस मामले में कर्चिरेम और ओना गांव में लेटराइट पत्थर खदानों की वर्तमान स्थिति को जांचने के लिए इस साइट का निरीक्षण किया गया था। जांच से पता चला है कि कर्चिरेम गांव में एक लेटराइट पत्थर की खदान को हाल ही में चालू किया गया था| इस खदान में पत्थरों के जल्द ही काटे जाने और वाहनों के निशान के सबूत मिले हैं।
जबकि कर्चिरेम गांव में अन्य खदान चालू हालत में नहीं थी और वह आंशिक रूप से बारिश के पानी से भरी हुई पाई गई थी। वहीं ओना गांव में लेटराइट पत्थर की खदानों तक पहुंच का सड़क मार्ग सुलभ नहीं था। बिचोलिम के तहसीलदार के एक प्रतिनिधि ने बताया कि यहां साइट बंद हैं। 16 मार्च की इस रिपोर्ट को 23 जुलाई को एनजीटी की साइट पर अपलोड किया गया है|