पर्यावरण मुकदमों की डायरी: दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए अवैध ईंट भट्टों को बंद करने का निर्देश

पर्यावरण से संबंधित मामलों में सुनवाई के दौरान क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें-
पर्यावरण मुकदमों की डायरी: दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए अवैध ईंट भट्टों को बंद करने का निर्देश
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दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण को देखते हुए एनजीटी ने दिया बागपत में अवैध ईंट भट्टों को बंद करने का निर्देश

एनजीटी ने 15 अक्टूबर 2020 को उत्तर प्रदेश में संबंधित अधिकारियों से अवैध ईंट भट्ठों के संचालन के खिलाफ सतर्कता रखने का निर्देश दिया है। जिससे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ते वायु प्रदूषण को रोका जा सके। यह निर्देश उत्तर प्रदेश के बागपत में अवैध रूप से चल रहे ईंट भट्टों को रोकने के लिए दिया गया है। गौरतलब है कि वहां अवैध रूप से 600 ईंट भट्टे चल रहे थे। 

इस मामले में 14 सितंबर को गाजियाबाद के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट ने अपनी रिपोर्ट सबमिट की थी, जिसमें जानकारी दी थी कि वहां अवैध ईंट भट्टों को बंद कर दिया गया है। मामले की अगली सुनवाई एनजीटी में 11 जनवरी, 2021 को होगी। 

वर्षों से बंद डंप यार्ड पर केएसपीसीबी ने रिपोर्ट सौंपी

केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) द्वारा बंद हो चुके डंप यार्ड पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है। इस रिपोर्ट में वर्षों से पड़े कचरे का किस तरह निपटान किया गया है उसके बारे में जानकारी दी गई है। यह डंप यार्ड केरल के कोल्लम जिले के कुरीपुझा में स्थित है जोकि आवासीय भवनों और दो मंदिरों के बीच स्थित है। साथ ही इस डंप यार्ड का एक हिस्सा अष्टमुडी झील के किनारे स्थित है।

गौरतलब है कि जनता के विरोध के कारण 2012 में इस डंप यार्ड को बंद कर दिया गया था। कोल्लम निगम जिस तरह गैर वैज्ञानिक तरीकों से इस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधा का निर्माण, प्रबंधन और संचालन कर रहा था, उससे याचिकाकर्ताओं को समस्या हुई थी। जिसके चलते यह मामला 2012 में केरल उच्च न्यायालय में दायर किया गया था। जिसे बाद में एनजीटी के पास भेज दिया गया था।

तिरुवनंतपुरम के मुख्य पर्यावरण अभियंता के नेतृत्व में केएसपीसीबी के अधिकारियों ने 8 सितंबर, 2020 को इस साइट का निरीक्षण किया था। रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि कोल्लम निगम के पास इस स्थान पर करीब 16 एकड़ जमीन है। जिसको चारों तरफ से बाड़ लगाकर संरक्षित किया गया है। इस क्षेत्र के पास बहुत से घर और दो मंदिर हैं। जिनमें से एक 50 मीटर के दायरे में है। इस क्षेत्र के लगभग आधे हिस्से पर वर्षों से कचरा भरा हुआ है। जिसे ऊंची दीवारों और बाड़ से सुरक्षित किया गया है। इस कचरे का एक बहुत बड़ा हिस्सा छोटे पौधों से ढका हुआ है जोकि अष्टमुडी झील तक पसरा हुआ है। इस झील को पहले ही रामसर स्थल के रूप में चिन्हित किया हुआ है। 

रिपोर्ट के अनुसार इस डंप यार्ड में ठोस कचरे को ट्रीट करने के लिए मशीने भी लगाई हुई थी, साथ ही इसके एक बड़े हिस्से को ढंका भी हुआ था। इस शेड के पास आंशिक रूप से निर्मित एक सैनिटरी लैंडफिल भी थी। इस सेनेटरी लैंडफिल साइट का काफी हिस्सा सीआरजेड क्षेत्र में भी था जिस वजह से उसका काम पूरा नहीं हुआ था।

22 सितंबर, 2020 को केएसपीसीबी के अधिकारियों ने इस क्षेत्र के 12 स्थानों से जल के नमूने एकत्र किए थे। जिसमें कुएं, मंदिर तालाब और अष्टमुडी झील शामिल थे। जिसके विश्लेषण से पता चला है कि इन स्थानों पर पानी की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है। हालांकि अभी भी इस पानी का उपयोग बिना उपचार के पीने के लिए नहीं क्या जा सकता।

लोनावला में हर रोज उत्पन्न हो रहा है 40 मीट्रिक टन कचरा

 कचरे के निपटान के मामले में लोनावला नगर परिषद द्वारा एनजीटी में एक हलफनामा दायर किया गया है। जिससे जानकारी मिली है कि वरसोली में एक म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट प्लांट स्थापित किया गया था, जोकि 5 अक्टूबर, 2018 से काम कर रहा है। 

लोनावला में हर रोज करीब 40 मीट्रिक टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है। जिसमें से 18 मीट्रिक टन गीला और शेष 22 मीट्रिक टन सूखा कचरा होता है। जिसे अलग करने के लिए वर्सोली में एक सेग्रीगेटर भी लगाया गया है। हलफनामे के अनुसार इसमें से 5 मीट्रिक टन गीले कचरे को बायोगैस संयंत्र के माध्यम ट्रीट किया जा रहा है। जिससे उत्पन्न गैस का उपयोग ऊंजाले के लिए किया जा रहा है। जिसमें से 2 मीट्रिक टन कचरे को कल्चर की मदद से खाद में बदला जा रहा है जिसके लिए पिट कम्पोस्टिंग प्लांट की मदद ली जा रही है।

इसमें से सूखे कचरे को जिसे रीसायकल किया जा सकता है उसे कचरा बिनने वालों की मदद से उठाया जा रहा है। जबकि निष्क्रिय सामग्री को डंप करने के लिए लैंडफिल की जगह का चुनाव कर लिया गया है। उस साइट पर करीब 144000 मीट्रिक टन कचरा पड़ा है जिसमें से 45000 मीट्रिक टन कचरे को ट्रीट किया गया है । जबकि शेष को ट्रीट करने की प्रक्रिया जारी है, जिसे तीन से छह महीने के अंदर निपटा लिया जाएगा।  

हरमू नदी में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए कोर्ट ने दिया सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पर निगरानी रखने का आदेश 

एनजीटी की जस्टिस सोनम फिंटसो वांग्दी की पीठ ने झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) पर नजर रखने को कहा है। जिससे हरमू नदी में अपशिष्ट जल और बिना ट्रीट किए सीवेज को डालने से रोका जा सके। गौरतलब है कि कोर्ट द्वारा यह आदेश हरमू नदी में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के मद्देनजर दिया गया है।

इस मामले में रांची नगर निगम ने एक हलफनामा भी दायर किया है, जिसमें जानकारी दी गई है कि सीवेज और अपशिष्ट जल के उपचार के लिए 9 एसटीपी का काम पूरा हो चुका है। चूंकि यह पूरा मामला हरमू नदी को प्रदूषण मुक्त करने से जुड़ा था, इसलिए इस मामले में 26 अगस्त को एनजीटी ने एसपीसीबी को निर्देश दिया था कि वो इससे जुड़ी सारी  जानकारी कोर्ट के सामने रखे। इसमें यह भी पूछा गया था कि क्या एसटीपी से जो वेस्ट  निकल रहा है वो निर्धारित मानकों के अनुसार है। साथ ही कोर्ट ने नदी जल की गुणवत्ता से जुड़ी एक रिपोर्ट भी प्रस्तुत करने का आदेश दिया था।

इस निर्देश के पालन में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जो हलफ़नामा कोर्ट में दायर किया है उसके अनुसार जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) को छोड़कर सभी मापदंडों का पालन किया जा रहा है। जल में केवल बीओडी का स्तर ही बढ़ा हुआ है। 

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