पर्यावरण मुकदमों की डायरी: छावनी और सैनिक ठिकानों में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए किए गए हैं अनेक उपाय: रिपोर्ट

पर्यावरण से संबंधित मामलों में सुनवाई के दौरान क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें-
पर्यावरण मुकदमों की डायरी: छावनी और सैनिक ठिकानों में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए किए गए हैं अनेक उपाय: रिपोर्ट
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रक्षा मंत्रालय ने पर्यावरण से जुड़े मुद्दों और अपशिष्ट प्रबंधन के मामले में एक रिपोर्ट एनजीटी के सामने प्रस्तुत की है। यह रिपोर्ट सेना और सियाचिन ग्लेशियर के पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के बारे में थी। जिसे एनजीटी द्वारा 11 फरवरी, 2020 को जारी एक आदेश पर कोर्ट में दायर किया गया है।

रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि उत्तर और पूर्व के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भारतीय सेना ने कचरे के निपटान के लिए बड़ी संख्या में पहल की है। लेह और लद्दाख में कचरे को तीन अलग-अलग श्रेणियों में बांटा जा रहा था। इसके साथ ही परीक्षण के तौर पर सियाचिन ग्लेशियर, लेह, पटसियो, कारू, सरचू, पांग और परतापुर की कुछ चुनिंदा पोस्ट पर मनुष्य द्वारा उत्सर्जित किए जा रहे कचरे के निपटान के लिए बायो-डाइजेस्टर लगाए गए हैं।

जबकि गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे और बचे हुए कचरे के निपटान के लिए पशु पालकों और टट्टुओं की मदद ली जा रही है। राशन की पैकिंग के लिए प्लास्टिक की जगह जूट पैकेजिंग और टेट्रा और रीफिल पैक का उपयोग किया जा रहा है। वहीं धातु से बनी बैरल और जेरिकैन की जगह एचडीपीई बैरल / जेरिकैन की मदद ली जा रही है। चूंकि यह वजन में हल्की होती हैं, इस वजह से यह कचरे को कम करने में मददगार हो रही हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि रक्षा अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान (डीआरडीई), ग्वालियर ने मानव अपशिष्ट के निपटान के लिए एक नई तकनीक विकसित की है। जो -40 डिग्री सेल्सियस या उससे कम तापमान पर भी कारगर है। वर्तमान में 60 ऐसी इकाइयों को अलग अलग स्थानों पर लगाया गया है। इसी के साथ अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इसी तरह के बेहतर दक्षता वाले बायो डाइजेस्टर जारी किए जा रहे हैं।

इस रिपोर्ट को 9 नवंबर 2020 को एनजीटी की साइट पर अपलोड किया गया है।

देश के खराब वायु गुणवत्ता वाले सभी शहरों में एनजीटी ने पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर लगाया प्रतिबंध

कोविड-19 महामारी को वायु प्रदूषण और घातक बना सकता है। यह पहला प्रीकॉशनरी प्रिंसिपल पर आधारित आदेश है जो कोविड और वायु प्रदूषण के रिश्ते की संभावना को मान्यता भी देता है। 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केंद्र और राज्य प्राधिकरणों को देशभर में एनसीआर समेत ऐसे सभी शहर जहां वायु गुणवत्ता खराब है या फिर उससे भी बदतर स्थिति में है वहां पर पटाखों की बिक्री और उसके इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगाने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा है कि 9-10 नवंबर की मध्य रात्रि से एक दिसंबर तक पूरी तरह से पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल का यह आदेश एनसीआर में प्रभावी रहेगा। साथ ही यह आदेश देश के अन्य प्रदूषित शहरों पर ( बीते वर्ष नवंबर के आंकड़े के आधार पर) भी लागू होगा। 

कोविड-19 और वायु प्रदूषण के गठजोड़ से स्थिति गंभीर होने के अंदेशे को लेकर एनजीटी ने  09 नवंबर, 2020 को जारी अपने आदेश में कहा है यदि इस आदेश पर किसी राज्य को आपत्ति है तो वह एनजीटी में अपील कर सकता है। अन्यथा एक दिसंबर के बाद इस पर विचार किया जाएगा। एनजीटी ने इस मामले में 5 नवंबर, 2020 को सभी राज्यों व संघ शासित प्रदेशों को आदेश जारी करते हुए अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। 

आदेश में स्पष्ट किया गया है कि ऐसे शहर जहां वायु प्रदूषण मॉडरेट या सामान्य है वहां दीपावली, छठ और क्रिसमस आदि पर्व पर दो घंटे के लिए सिर्फ ग्रीन कैकर्स जलाने या दागने की अनुमति दी जाए। कोविड-19 को बढ़ा सकने वाले वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए यदि प्राधिकरण कोई अन्य उपाय या सख्त कदम उठाना चाहते हैं तो वे अपना कदम भी बढाएं। 

पीठ ने देश के सभी मुख्य सचिव, डीजीपी को सभी जिलाधिकारियों, पुलिस अधीक्षक और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व समितियों को इस संबंध में सर्कुलर जारी करने का आदेश दिया है।  वहीं, सीपीसीबी और राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व समितियों को इस दर्मियान रेग्युलर मॉनिटरिंग करने और उसे वेबसाइट पर सार्वजनिक किए जाने का भी आदेश दिया गया है।  इस मामले पर अगली सुनवाई एक दिसंबर, 2020 को होगी। 

नोएडा की 95 ऊंची इमारतें कर रही थी सीवेज प्रदूषण, एनजीटी ने दिए कार्रवाई के आदेश

6 नवंबर को एनजीटी में जानकारी दी गई है कि नोएडा के सेक्टर 137 में बिना साफ किये सिंचाई नहर में डाले जा रहे सीवेज को रोकने के लिए जरुरी कार्रवाई की गई है। मामला उत्तर प्रदेश का है। इस सीवेज के लिए मुख्य रूप से नोएडा की 95 ऊंची इमारतों को जिम्मेदार माना गया है। जिनके सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) ठीक से काम नहीं कर रहे थे। इनके अलावा कुछ अन्य स्थानों से भी सीवेज प्रदूषण हो रहा था।

नोएडा के लिए वकील ने कहा है कि 95 में से केवल 57 इमारतों का ही निरीक्षण किया गया है। जिसमें भी कई कमियां सामने आई हैं। जिसके विषय में जरुरी कार्रवाई शुरू कर दी गई है।

इस बाबत दिल्ली जल बोर्ड के वकील ने कहा है कि उनकी ओर से कार्रवाई की गई है। हालांकि, खोड़ा नगर परिषद, माकनपुर के मामले में पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) और सचिव शहरी विकास, उत्तर प्रदेश की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। वहीं ईडीएमसी के वकील का कहना है कि डेयरियों को शिफ्ट करने का प्रस्ताव रखा गया है, लेकिन जमीन के अभाव में ऐसा कर पाना संभव नहीं है। जिसपर एनजीटी ने असंतोष व्यक्त किया है।

इस मामले में एनजीटी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि प्रदूषण को रोकने के लिए नियमों का पालन किया जाना चाहिए और उसका उल्लंघन करने वालों पर रोक लगाई जानी चाहिए। साथ ही उनपर जुर्माना भी होना चाहिए। जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और श्यो कुमार सिंह की पीठ ने निर्देश दिया है कि नोएडा में ऊंची इमारतों के निर्माण के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए और सीपीसीबी, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नोएडा के जिला मजिस्ट्रेट की संयुक्त समिति के द्वारा तीन महीने के अंदर मुआवजे की राशि तय की जानी चाहिए। 

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