29 जुलाई, 2019 को एनजीटी का एक आदेश आया था, जिसके बाद से हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मैकलोडगंज और मनाली में होटलों और गेस्ट हाउसों के लिए कोई परमिशन नहीं दी है और न ही कोई नई एनओसी जारी की है| यह जानकारी हिमाचल प्रदेश सरकार की ओर 4 अगस्त, 2020 को एनजीटी में सबमिट एक रिपोर्ट में सामने आई है| जिसे राज्य सरकार की ओर से संयुक्त सचिव (टाउन एंड कंट्री प्लानिंग/ अर्बन डेवलपमेंट) द्वारा कोर्ट में सबमिट किया गया है|
इस मामले में डिवीजनल टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ऑफिस, कुल्लू ने ग्राउंड वेरिफिकेशन किया है| जिसके बाद जानकारी दी है कि मनाली म्युनिसिपेलिटी कौंसिल ने नियमों का कड़ाई से पालन करने के बाद ही निर्माण गतिविधियों को अनुमति प्रदान की है| वहीं मनाली म्युनिसिपेलिटी एरिया में किसी भी प्रकार के वाणिज्यिक भूमि उपयोग को परमिशन नहीं दी है|
जब तक और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और वाटर सप्लाई के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं किए जाते तब तक निर्माण गतिविधियों की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसी तरह, धर्मशाला नगर निगम के आयुक्त ने बताया कि मैकलोडगंज में भी निर्माण गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है।
हालांकि रिपोर्ट के अनुसार धर्मशाला नगर निगम द्वारा 18 वाणिज्यिक इकाइयों को पूरा करने के लिए मंजूरी जारी की गई है| इन इकाइयों ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और वाटर सप्लाई के लिए जरुरी नियमों को पूरा कर लिया है| मनाली में वायु और जल गुणवत्ता पर लगातार निगरानी रखी जाती रही है| नदियों की निगरानी से पता चला है कि वहां जल की गुणवत्ता 'बी' श्रेणी में आती है| वहीं मई 2020 में की गई निगरानी के अनुसार वायु की गुणवत्ता तय मानकों के अनुरूप ही है|
साथ ही रिपोर्ट के अनुसार मनाली में एक वेस्ट टू एनर्जी प्लांट के निर्माण का काम भी चल रहा है| जबकि राज्य में एक कॉमन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) भी है। जिसके नमूने सीमा के भीतर ही पाए गए हैं। धर्मशाला नगर निगम क्षेत्र में 100 फीसदी डोर टू डोर कचरे का कलेक्शन किया जा रहा है। जबकि क्षेत्र में उत्पन्न 50 फीसदी कचरे को स्रोत पर ही अलग कर दिया गया था और बाकी कचरे को प्रोसेसिंग के दौरान अलग किया जा रहा है|
न्यायमूर्ति एस पी वांगड़ी ने बिहार सरकार को उसके 'उदासीन और अस्वीकार्य' रवैये के लिए फटकार लगाई है| मामला बिहार के मुंगेर जिले का है| जहां महानॉय नदी के तट पर अवैध निर्माण किया जा रहा था| इस मामले में महानॉय रिवर सेफ्टी सोसाइटी ने कोर्ट के समक्ष एक अर्जी दाखिल की थी| जिसके अनुसार महानॉय नदी में जिस तरह से गन्दा पानी डाला जा रहा है उसने इस नदी को एक नाले में बदल दिया है| कोर्ट ने इस मामले में बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला मजिस्ट्रेट, मुंगेर से इस मामले की जांच करने और उसके बारे में रिपोर्ट सबमिट करने के लिए कहा है|
गौरतलब है कि इससे पहले ट्रिब्यूनल ने 18 फरवरी, 2019 को एक आदेश जारी किया था| जिसमें कहा था कि मामले में निर्धारण के लिए सबसे पहले प्रश्न यह है कि मुंगेर जिले के टेटिया बम्बर में बीडीओ के ब्लॉक और आंचल कार्यालय का निर्माण नदी की सीमा के भीतर किया गया था या नहीं। इसके अलावा, क्या राज्य सरकार द्वारा नदी के किनारों पर निर्माण के लिए कोई नियम या मानदंड निर्धारित किए थे।
26 अगस्त, 2019 को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार अदालत के समक्ष ऐसे किसी भी नियम को सामने रखने में विफल रही थी। हालांकि एनजीटी के अनुसार बिहार बिल्डिंग बाय-लॉ, 2014 के नियम 22 (2) के तहत इस बारे में कुछ मानदंड निर्धारित किए गए हैं| जिसके अनुसार निर्माण नदी के 100 मीटर के दायरे में किया गया है जो निषिद्ध क्षेत्र है|
राज्य द्वारा फिर से समय मांगा गया और मामले कई बार कोर्ट में आया है और उसे स्थगित करना पड़ा है। ऐसे में एनजीटी ने 31 जुलाई को एक आदेश जारी किया है जिसमे राज्य सरकार को 15 सितंबर से पहले अपनी रिपोर्ट सबमिट करने का अंतिम अवसर दिया है।
संगम विहार में भूजल के अवैध दोहन पर डीपीसीसी ने 5,00,000 रुपए का जुर्माना लगाया है| यह जानकारी दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने एनजीटी में सबमिट अपनी रिपोर्ट में दी है| इस जुर्माने को आरोपी बाबुदीन खान से वसूला गया है|
गौरतलब है कि एनजीटी में बाबूदीन खान के खिलाफ एक शिकायत दर्ज की गई थी कि वो टैंकरों के माध्यम से भूजल को बेच रहा था| कोर्ट ने इस मामले में 22 अगस्त, 2019 को डीपीसीसी और दिल्ली जल बोर्ड को इस मामले पर कार्यवाही करने और उसकी रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट करने का निर्देश दिया था|
इस मामले में डीपीसीसी ने 5 नवंबर, 2019 को एक रिपोर्ट दायर की थी जिसमें कहा था कि बाबूदीन खान के परिसर में एक बोरवेल पाया गया था, लेकिन वो चालू नहीं था| उन्हें यह जानकारी मिली थी कि इस बोरवेल का इस्तेमाल व्यावसायिक उद्देश्य के लिए नहीं किया जा रहा था| डीपीसीसी ने इस मामले में कार्यवाही करते हुए बाबूदीन खान पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए 5,00,000 रुपए का जुर्माना लगाया था|
डीपीसीसी ने 7 नवंबर, 2019 को अदालत को सूचित किया कि उसने इस मामले में आरोपी के खिलाफ जरुरी कार्रवाई की है| हालांकि, इसके बाद भी शिकायतकर्ता ने कहा था कि भूजल का अभी भी अवैध दोहन किया जा रहा है| जिसको देखते हुए 26 दिसंबर, 2019 को इस बोरवेल को पूरी तरह सील कर दिया गया था| जिससे किसी भी उद्देश्य के लिए भूजल का दोहन नहीं किया जा सके।