मध्य प्रदेश में सभी अस्पतालों और चिकित्सा सुविधाओं से हर दिन कुल 17.8 टन बायो मेडिकल वेस्ट उत्पन्न हो रहा है| यह जानकारी एमपीपीसीबी ने एनजीटी के समक्ष प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में दी है| जिसे 03 सितंबर, 2020 को कोर्ट की वेबसाइट पर डाला गया है| साथ ही इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस कचरे में से 17.6 टन कचरे का हर दिन (टीपीडी) निपटारा किया जा रहा है|
रिपोर्ट के अनुसार राज्य में बायो मेडिकल कचरे के निपटान के लिए कुल 12 सुविधाएं (सीबीडब्लूटीएफ) मौजूद हैं| जो की एक क्लस्टर की तरह काम करती हैं| जिसमें हर सीबीडब्ल्यूटीएफ ऑपरेटर, बायोमेडिकल कचरे को उसके उत्पन्न होने के स्थान से उसके निपटारे की जगह तक ट्रांसपोर्ट करता है| रिपोर्ट के अनुसार जो निपटान सुविधाएं हैं उनकी कुल स्थापित क्षमता 40.8 टन प्रति दिन (टीपीडी) है, जबकि इन सुविधाओं में एकत्र और उपचारित कुल कचरे की मात्रा 17.6 टीपीडी ही है।
यह भी बताया गया है कि कचरे को इकठ्ठा करने के लिए प्रयोग किए जा रहे सभी वाहन जीपीएस से जुड़े हैं। साथ ही राज्य कचरे की हैंडलिंग पर कड़ी निगरानी रख रहा है| जो भी संसथान नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं उनपर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत तय मानकों के आधार पर कार्रवाही की जा रही है| अब तक नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ 84 मामले दर्ज किए गए हैं। इसके साथ ही जानकारी मिली है कि सभी 12 सीबीडब्ल्यूटीएफ ऑपरेटरों ने उत्सर्जन की निगरानी के लिए ऑनलाइन निगरानी प्रणाली भी स्थापित की है|
गाजियाबाद में कचरा प्रबंधन के मामले में कोई खास प्रगति नहीं हुई है| जिसे देखते हुए एनजीटी ने अधिकारियों के उदासीन रवैये और ढिलाई पर रोष व्यक्त किया है| मामला उत्तर प्रदेश के इंदिरापुरम, वसुंधरा और वैशाली क्षेत्रों में कचरा प्रबंधन से जुड़ा है|
मामला सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 की अवहेलना से जुड़ा है| जानकारी मिली है कि इन क्षेत्रों से उत्पन्न होने वाला कचरा शक्ति खंड में डंप किया जा रहा था, जिससे हवा की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा था| आरोप लगाया गया है कि 20 अक्टूबर, 2017 को इस डंप पर कचरा जलने से काफी बड़ी आग देखी गई थी| साथ ही यह भी बताया गया है कि यहां कचरे की छंटाई नहीं की जा रही थी और न ही नॉन-डिग्रेडेबल कचरे की रीसाइक्लिंग हो रही थी|
अधिकारियों द्वारा ट्रिब्यूनल को सौंपी गई रिपोर्ट से पता चला है कि यहां कचरे का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन नहीं हो रहा था| जिसके कारण पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है| 28 अगस्त को गाजियाबाद के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा एक रिपोर्ट सबमिट की गई थी, जिसमें भी कोई सार्थक प्रगति नहीं दिख रही है। एनजीटी ने 2 सितंबर को दिए अपने आदेश में कहा है कि 27 अगस्त को गाजियाबाद नगर निगम ने जो रिपोर्ट सबमिट की है वो भी बस खानापूर्ति ही है|
ऐसे में एनजीटी ने निर्देश दिया है कि इस मामले में सख्त कदम उठाए जाएं और जितना जल्दी हो उसपर एक रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट करें| इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस वी एस राठौर की अध्यक्षता वाली निरीक्षण समिति से अनुरोध किया है कि वह इस मामले को देखें और इसपर अपनी स्वतंत्र रिपोर्ट दें। इस मामले की अगली सुनवाई 19 जनवरी, 2021 को की जाएगी।
राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (आरएसपीसीबी) ने मेसर्स महादेव स्टोन कंपनी के मामले में अपनी रिपोर्ट एनजीटी में सबमिट कर दी है| इस रिपोर्ट में उसने जानकारी दी है कि पिछले निरीक्षण में यह कंपनी पर्यावरण के अनुकूल पाई गई थी| मामला खसरा नंबर 1328, तहसील रामगढ़, जिला अलवर, राजस्थान का है|
इससे पहले, 16 मार्च को आरएसपीसीबी द्वारा किए निरिक्षण में इसके स्टोन क्रशर को पर्यावरण के अनुकूल नहीं पाया था। जिस कारण स्टोन क्रेशर को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। जिसमें उसे वायु अधिनियम की धारा 31 ए के तहत उसकी अनुमति रद्द करने की चेतावनी दी गई थी|
एसपीसीबी के अधिकारियों ने 16 जून को फिर से इस यूनिट का दौरा किया था। निरीक्षण के दौरान, यह देखा गया कि यूनिट ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए, जरुरी कमियों को सुधार लिया था और उसके द्वारा वायु में छोड़ा जा रहा पार्टिकुलेट मैटर (एसपीएम) का स्तर भी नियंत्रण में था।
एनजीटी ने मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अवैध स्टोन क्रशर के खिलाफ की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है| मामला मध्य प्रदेश में सागर जिले के पामखेड़ी गांव का है| कोर्ट के अनुसार एसपीसीबी को अपनी रिपोर्ट 19 अक्टूबर, 2020 तक सबमिट करनी है|
कोर्ट में यह मामला लिधोराहाट और उसके आसपास के गांवों में हो रहे अवैध खनन को लेकर सामने आया था| जिसमें आवेदक ने कहा था अवैध खनन के चलते इस इलाके में सड़कें क्षतिग्रस्त हो गई हैं और इससे नागरिकों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है|
इस मामले पर गठित एक संयुक्त जांच समिति ने कहा था कि एमपीपीसीबी की सहमति के बिना पामखेडी गांव में केवल एक स्टोन क्रशर स्थापित किया गया था। इस यूनिट को एयर एक्ट, 1981 के प्रावधानों के तहत बंद करने का निर्देश जारी किया गया था। इसके बाद इस यूनिट को बंद कर दिया गया था और इसकी बिजली सप्लाई भी काट दी गई थी।