तीन साल बाद भी ठन्डे बस्ते में बरसाती नाले में सीवर का मुद्दा, एनजीटी ने पूछा क्यों न लगाया जाए जुर्माना

अदालत ने अधिकारियों से अगली सुनवाई से पहले इस मामले में अपना तर्क पेश करने को कहा है कि पर्यावरण मानदंडों के उल्लंघन के मुद्दे पर उनपर जुर्माना क्यों नहीं लगाया जाए
तीन साल बाद भी ठन्डे बस्ते में बरसाती नाले में सीवर का मुद्दा, एनजीटी ने पूछा क्यों न लगाया जाए जुर्माना
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 26 फरवरी, 2024 को दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) द्वारा बरसाती पानी की निकासी से जुड़ी सीवर लाइन की समस्या को हल करने में लग रही देरी पर असंतोष व्यक्त किया है।

अदालत ने अधिकारियों से अगली सुनवाई से पहले इस मामले में अपना तर्क पेश करने को कहा है कि पर्यावरण मानदंडों के उल्लंघन के मुद्दे पर उनपर जुर्माना क्यों नहीं लगाया जाए। इस मामले में अगली सुनवाई छह मई, 2024 को होनी है।

अदालत का कहना है कि, ''तीन साल से अधिक का समय बीत चुका है लेकिन अब तक स्थिति में सुधार लाने के लिए कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई है।'' कोर्ट ने अधिकारियों से चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।

गौरतलब है कि आवेदक ने अपनी शिकायत में कहा था कि पिछले तीन वर्षों से मालवीय नगर से ग्रेटर कैलाश तक गुजरने वाले बरसाती नाले में सीवेज बह रहा है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) ने एक सीवर लाइन को बरसाती पानी के नाले से जोड़ दिया था। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी खतरा पैदा हो गया है।

एनजीटी का कहना है कि 24 फरवरी, 2024 को दिल्ली जल बोर्ड द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है कि अभी भी सीवेज मालवीय नगर से ग्रेटर कैलाश (शाहपुर जाट) तक गुजरने वाले बरसाती नाले में बह रहा है।

चेन्नई में चितलापक्कम झील पर अतिक्रमण के मुद्दे में अधिकारियों को भेजे गए नोटिस

चेन्नई की चितलापक्कम झील पर अतिक्रमण से जुड़ा मामला 26 फरवरी 2024 को एनजीटी के समक्ष आया था।

इस मामले में अदालत ने तमिलनाडु के जल संसाधन विभाग के साथ-साथ तमिलनाडु राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कांचीपुरम के जिला कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट के साथ राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है।

एनजीटी की प्रधान बेंच ने इस मामले में आगे की उचित कार्रवाई के लिए मामले को एनजीटी की दक्षिणी बेंच को ट्रांसफर कर दिया है। मामले में अगली सुनवाई 15 अप्रैल, 2024 को होगी।

गौरतलब है कि यह आवेदन 11 जनवरी, 2024 को झील पर होते अतिक्रमण को लेकर 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में प्रकाशित एक खबर के आधार पर दायर किया गया है। इस खबर के मुताबिक दक्षिण चेन्नई में मौजूद चितलापक्कम झील, जो करीब 53 एकड़ में फैली हुई थी। वो अतिक्रमण के चलते अब घटकर 47 एकड़ रह गई है।

झील के पश्चिमी किनारे पर छह एकड़ जमीन पर अतिक्रमणकारियों ने कब्जा कर लिया है और वहां घर बना लिए हैं। खबर में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि मद्रास हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद कई अतिक्रमणकारियों पर ध्यान नहीं दिया गया है और पहचाने गए 403 अतिक्रमणों में से अधिकारियों ने अब तक केवल 74 को ही हटाया है।

अदालत के आदेश का पूरी तरह से पालन करने और सभी अतिक्रमणों को साफ करने के बजाय, जल संसाधन विभाग शेष क्षेत्र को बहाल करने पर 25 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है, जिसकी मदद से अतिक्रमणों को वैध बनाया जा रहा है।

सुवर्णरेखा से बड़े पैमाने पर हो रहा अवैध बालू खनन, पुलिस की भी है मिलीभगत

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की प्रधान बेंच ने सुवर्णरेखा नदी में बड़े पैमाने पर होते अवैध रेत खनन के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया है। मामला झारखंड में जमशेदपुर के पूर्वी सिंहभूम के सिदगोड़ा का है।

24 दिसंबर, 2023 को प्रभात खबर में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक, सुवर्णरेखा नदी से निकले गए बालू का ट्रैक्टरों की मदद से परिवहन किया जा रहा है। इतना ही नहीं वहां नावों की मदद से नदी के गहरे हिस्सों से भी अवैध रेत खनन किया जा रहा है। इस रेत को 3500 से 4000 रुपए की दर से बेचा जाता है। यह भी कहा गया है कि यह गतिविधि पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत से चल रही है।

ऐसे में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 26 फरवरी को मामले के पर्यावरणीय प्रभावों को ध्यान में रखते हुए झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पूर्वी सिंहभूम जमशेदपुर के उपायुक्त और जिला मजिस्ट्रेट को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया है। इस मामले पर अगली सुनवाई पांच मई 2024 को एनजीटी की पूर्वी बेंच के समक्ष होगी।

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