नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पाया है कि आगरा विकास प्राधिकरण (एडीए) ने आवश्यक बुनियादी ढांचे के बिना कॉलोनियों को स्थापित करने की अनुमति दी है। ऐसे में कोर्ट ने प्राधिकरण को दो करोड़ रुपए के मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया है। इस राशि का उपयोग पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के लिए किया जाएगा।
गौरतलब है कि आगरा के शमशाबाद रोड इलाके में एक बिल्डर द्वारा विकसित हाउसिंग कॉलोनी 'नालंदा टाउन' से खुले में छोड़े जा रहे सीवेज को रोकने में राज्य अधिकारियों की विफलता के खिलाफ एनजीटी में एक आवेदन दायर किया गया था।
इस सीवेज की मात्रा 1.45 लाख लीटर प्रतिदिन होने का अनुमान है। शिकायत में कहा गया है कि इस तरह की विफलता के लिए आगरा विकास प्राधिकरण (एडीए) मुख्य रूप से जिम्मेवार है।
गौरतलब है कि 22 फरवरी, 2022 को संयुक्त समिति की एक रिपोर्ट में स्वीकार किया गया था कि सीवेज का उपचार नहीं किया जा रहा था और उसे जमीन पर छोड़ दिया गया था और यह सीवेज एक नाले में भी जा रहा था। साथ ही वहां सीवर लाइन भी नहीं थी।
वहीं उत्तर प्रदेश शहरी विकास के प्रमुख सचिव द्वारा 12 दिसंबर, 2022 को दायर एक रिपोर्ट में कहा था कि आगरा में नालंदा टाउन कॉलोनी में अपेक्षित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित किया गया है।
ऐसे में डेवलपर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उसपर खुले में सीवेज डालने पर 2.14 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। अदालत ने कहा है कि प्रस्तुत आंकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि यमुना नदी या इससे जुड़े नालों में 85 एमएलडी से अधिक सीवेज डाला जा रहा है। कोर्ट का कहना है कि बिना बुनियादी ढांचे के कॉलोनियों की स्थापना की अनुमति देना सतत विकास के सिद्धांत के भी खिलाफ है।
पर्यावरण को देखते हुए महेंद्रगढ़ में सीमित की जानी चाहिए स्टोन क्रशरों की संख्या: एनजीटी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और सुधीर अग्रवाल की पीठ ने निर्देश दिया है कि हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले में स्टोन क्रशरों की संख्या को "उचित रूप से कम" किया जाए ताकि यह वहन क्षमता के भीतर हो और सीपीसीबी द्वारा सुझाई उचित परस्पर दूरी को बनाए रखा जा सके।
साथ ही जैसा कि 26 अक्टूबर, 2021 को दिए एनजीटी के आदेश में उल्लेख किया गया है, किसी भी स्टोन क्रशिंग इकाई को क्षेत्र में तब तक संचालित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जब तक कि वहां का वायु गुणवत्ता सूचकांक मध्यम यानी 200 से नीचे न हो।
कोर्ट ने पहले किए उल्लंघनों के लिए मुआवजे की वसूली और उपचारात्मक कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है। साथ ही अवैध रूप से संचालित स्टोन क्रशरों को नियमों के पालन तक और वहन क्षमता की सीमा तक प्रतिबंधित करने का निर्देश दिया है।
क्षेत्र से वायु गुणवत्ता के आंकड़ों को हासिल करने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को उपयुक्त स्थानों पर कम से कम 5 और सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन (सीएएक्यूएमएस) स्थापित करने के लिए कहा गया है। एनजीटी ने प्रदूषणकर्त्ता द्वारा भुगतान के सिद्धांत के आधार पर क्षेत्र में संचालित प्रत्येक स्टोन क्रशर के खिलाफ 20 लाख रुपये की दर से अंतरिम मुआवजा भी तय किया है।
क्षेत्र से वायु गुणवत्ता के आंकड़ों को हासिल करने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को उपयुक्त स्थानों पर कम से कम 5 और सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन (सीएएक्यूएमएस) स्थापित करने के लिए कहा गया है। एनजीटी ने प्रदूषणकर्त्ता द्वारा भुगतान के सिद्धांत के आधार पर क्षेत्र में संचालित प्रत्येक स्टोन क्रशर के खिलाफ 20 लाख रुपये की दर से अंतरिम मुआवजा भी तय किया है। इस मुआवजे को पर्यावरण की बहाली के लिए उपयोग किया जाएगा।
अंतिम मुआवजा महेंद्रगढ़ के जिलाधिकारी, हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव, सीपीसीबी, वन विभाग और डीएफओ की संयुक्त समिति द्वारा तय किया जाएगा। जिन इकाइयों की गैर-अनुपालन के रूप में पहचान की गई है, उन्हें तुरंत बंद किया जा सकता है। वहीं जिन इकाइयों की पहचान नहीं की गई है, लेकिन वे मानदंडों का उल्लंघन कर रही हैं, उन पर भी तत्काल अनुपालन होने तक बंद करने की कार्रवाई की जा सकती है।
वहीं 18 जनवरी, 2023 के एनजीटी के आदेश में कहा गया है कि जिन इकाइयों को संचालित करने की अनुमति दी जानी है, उनका निर्धारण वहन क्षमता के संबंध में किया जाना चाहिए। अदालत ने पाया है कि "वायु गुणवत्ता के मामले में क्षेत्र की नकारात्मक वहन क्षमता के बावजूद, वहां बड़ी संख्या में स्टोन क्रशरों को जारी रखने की अनुमति दी जा रही है।"