नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों का पालन करने के साथ-साथ तय समय सीमा के भीतर आवश्यक सीवेज प्रबंधन प्रणालियों की स्थापना सुनिश्चित करने के लिए कहा है। साथ ही कोर्ट ने 31 मार्च, 2023 को दिए अपने आदेश में प्रदूषण को रोकने के लिए जरूरी उपाय करने का भी निर्देश दिया है।
मुख्य सचिव के अनुसार इसके लिए कम से कम 1,000 करोड़ रुपये की रिंग-फेंस राशि को अलग रखा जाना है। साथ ही इस राशि को "नॉन लैप्सेबल" रखा जाना चाहिए। वहीं कोर्ट का निर्देश है कि सात शहरी स्थानीय निकायों में वर्षों से जमा कचरे को बिना किसी देरी के ट्रीट किया जाना चाहिए।
अगली रिपोर्ट में इस बात का जिक्र होना चाहिए कि कोई कचरा शेष नहीं बचा है। साथ ही कोर्ट ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और प्रस्तावित एसटीपी के बीच तत्काल कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करने की बात कही है।
पीठ ने आशा व्यक्त की है कि छत्तीसगढ़ नए दृष्टिकोण और कड़ी निगरानी के जरिए इस मामले में जरूरी उपाय करेगा। पीठ ने यह भी उम्मीद जताई है कि सरकार वर्षों से जमा कचरे के साथ-साथ बिना प्रोसेस कचरे और तरल अपशिष्ट के उत्पादन और उपचार के बीच जो अंतर की खाई है उसे जल्द से जल्द भर देगा।
हैदराबाद विश्वविद्यालय परिसर में किया जा रहा सीवेज का निपटान, समिति ने की एसटीपी के निर्माण की सिफारिश
ग्रेटर हैदराबाद में केंद्रीय विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित जल निकायों में दूषित सीवेज का निपटान किया जा रहा है। यह जानकारी 3 जनवरी, 2023 को एनजीटी के आदेश पर गठित संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में दी है। मामले तेलंगाना के ग्रेटर हैदराबाद का है।
इस मामले में हैदराबाद विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉक्टर देवेश निगम ने एनजीटी के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत में उन्होंने बताया कि तेलंगाना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और तेलंगाना इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (टीआईएमएस) के साथ आस-पास की कॉलोनियों से भी दूषित सीवेज और मेडिकल वेस्ट केंद्रीय विश्वविद्यालय के परिसर में डाला जा रहा है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए एनजीटी ने एक संयुक्त समिति का गठन किया था। इस समिति को मामले की जांच करने के साथ, इससे जुड़ी जानकारियां एकत्र करने और की गई कार्रवाई पर दो महीनों के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।
इस बारे में हैदराबाद विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने संयुक्त समिति को जानकारी दी है कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के परिसर में चार जल निकाय मौजूद हैं। इनमें मोर झील, चिलाकला कुंटा, गुंडला कुंटा और गुनेरू कुंटा शामिल हैं।
समिति का कहना है कि मयूर झील में जल प्रदूषण का मुख्य स्रोत नाले से छोड़ा जा रहा सीवेज है साथ ही आवासीय कॉलोनी क्षेत्र से केंद्रीय विश्वविद्यालय परिसर में चार नाले जाते हैं। इतना ही नहीं तेलंगाना इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (टीआईएमएस) से निकलने वाला घरेलू सीवेज भी मोर झील में मिल रहा है।
समिति ने यह भी देखा कि गोपनपल्ली गांव से निकलने वाला दूषित सीवेज विश्वविद्यालय परिसर में मिल रहा है और वो दो जगहों पर नालागंदला झील में भी मिल रहा है।
ऐसे में संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि हैदराबाद मेट्रो जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड को हैदराबाद विश्वविद्यालय के परिसर में जा रहे दूषित सीवेज को रोकने के लिए आवश्यक उपाय करने चाहिए। इसके लिए बोर्ड आवासीय क्षेत्रों से आने वाले दूषित सीवेज के उपचार और निपटान के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण करेगा।
जानिए क्योंझर स्लरी पाइपलाइन प्रोजेक्ट मामले में एनजीटी ने क्या दिया निर्देश
एनजीटी ने निर्देश दिया है कि संयुक्त समिति द्वारा दायर रिपोर्ट में दी गई सिफारिशों को लौह अयस्क स्लरी पाइपलाइन परियोजनाओं के संबंध में ध्यान में रखा जाए। 29 मार्च 2023 को दिया यह निर्देश ओडिशा में क्योंझर जिले से जुड़ा है। गौरतलब है कि क्योंझर के जोड़ा ब्लॉक में होते औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ एनजीटी में एक अर्जी दाखिल की गई थी।
जानकारी दी गई है कि सुना नदी प्रदूषित हो चुकी है क्योंकि नदी तल पर स्लरी पाइप लगाई जा रही है, जिसके लिए भारी मशीनरी का उपयोग किया जा रहा है। बताया गया है कि इस तरह स्लरी की लगातार खुदाई और औद्योगिक कचरे के निपटान से सीवेज और नदी प्रणाली में रूकावट आ जाएगी।
इस तरह खनिज और स्लरी के डाले जाने से बैतरणी एवं अन्य नदियां दूषित हो जाएंगी। शिकायतकर्ता का कहना है कि लोहे के पाइप के जरिए पारादीप पोर्ट ट्रस्ट को लौह पाउडर का निर्यात किया जाएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अधिसूचित यह लौह अयस्क घोल पाइपलाइन परियोजनाएं हरित श्रेणी के अंतर्गत रखी गई हैं।
बीआरपीएल और एएमएनएस की दो लौह अयस्क स्लरी पाइपलाइनों को 2013 और 2014 में चालू किया गया था और इन्होने कई स्थानों पर प्रमुख नदियों और धाराओं को पार किया था। इन पाइपलाइनों की क्रॉसिंग साइटों पर न तो जल मार्ग में कोई बाधा और न ही कोई प्रतिकूल प्रभाव देखा गया। रिपोर्ट में समिति ने लौह अयस्क स्लरी पाइपलाइनों के पर्यावरण अनुकूल संचालन के लिए कुछ बिन्दुओं की सिफारिश की है।
इनमें जल संसाधन विभाग को यह सुनिश्चित करना शामिल है कि लौह अयस्क स्लरी पाइपलाइन परियोजनाओं को नदी/नाले को पार करने के लिए स्वीकृत तरीकों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए और यदि किसी भी उल्लंघन का पता चलता है तो उसकी सूचना उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा आवश्यक कार्रवाई के लिए दी जा सकती है।
साथ ही जल संसाधन विभाग द्वारा ऐसी परियोजनाओं को अनुमति देते समय राज्य की जल नीति के अनुसार जब प्रवाह कम होता है उस अवधि के दौरान भी सभी धाराओं/नदियों और नालों में पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। साथ ही प्राथमिकता के आधार पर जल आवंटन जरूरी है।